हे अर्जुन ! जो पुरुष सुख तथा दु;ख मे विचलित नहीं होता और इन दोनों मे समभाव रखता है, वह निश्चित रूप से मुक्ति के योग्य है |
हमें सुख या फिर दुख में कभी इतना नहीं डूबना चाहिए की हम इस सत्य से ही दूर हो जाएं की जो यह सुख या फिर दुख है यह परिवर्तनशील है |
इसलिए जीवन में जब भी सुख आए तो उसके चलते हमें अहंकार में नहीं आना चाहिए ना ही हमें अन्य व्यक्तियों को नीच दृष्टि से देखना चाहिए |
इसी तरह जब जीवन में सुख आए तो हमें उसके चलते कभी भी पूर्णतः हताश नहीं होना चाहिए ना ही इसके चलते अन्य सुखी लोगो से घृणा करनी चाहिए |
क्योंकि जैसा भगवान श्री कृष्ण ने बताया यह सब छनिक मात्र हैं और माया का एक भाग है |
दुख और सुख व्यक्ति के जीवन के बाहरी पहलू हैं, जिन पर हमारा कभी भी पूर्णतया नियंत्रण नहीं हो सकता परंतु हम चाहे तो दोनो ही परिष्ठियों में अनादमय और शांत रह सकते हैं क्योंकि भीतर से हम अपने आप को कैसा रखना चाहते हैं यह हम निर्भर करता है |इसलिए दोनो में हमने एक ही भाव रखना चाहिए जो है कृष्णा भक्ति का भाव |
|| जय श्री कृष्णा |