कबीर दास के दोहे, जो आपका जीवन बदल देंगे | हिन्दी अर्थ सहित

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित

कबीर दास के दोहे, जो आपका जीवन बदल देंगे | अर्थ सहित 

यहाँ पर कबीर दास के  दोहे अर्थ सहित बताएं जा रहे हैं जिन्हें अगर आप अपने जीवन में उतारते हैं | तो यह कबीर दास के दोहे आपको भक्ति के मार्ग पर प्रसक्त करेंगे जिससे आपका जीवन पूरी तरह से बदल जाएगा | कबीर दास के दोहे आपके जीवन में एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार करंगे |

ये हैं वो कबीर दास के दोहे जिन्हें आप को जरूर पढ़ना चाहिए और समय लेकर गहराई से समझना चाहिए |

1 ) माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर | कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।|         

भावार्थ – कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं की हाथ में कितनी ही बार माला क्यों ना फेर, तुम्हारे मन का फेर अर्थात मन में उठने वाली जो विचारों की लहर है, जो तरह तरह की चिंताएं हैं वो शांत नहीं होने वाली | इसलिए अच्छा यही है की हाथ से माला छोड़ के अपने मन में बनाने वाली विचारों की माला को टटोलो उसे जानो और समझो क्योंकि यही वो तरीका है जो तुम्हें ईश्वर तक पहुंचने में सहायता करेगा जिसके लिए तुम हर दिन माला जपते हो |

2) दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय।
जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय॥

भावार्थ – कबीर दास जी इस दोहे में समझाते हैं की दुख में तो ईश्वर को याद सभी करते हैं, सभी ईश्वर को पुकारते हैं, और जैसे ही सुख मिलता है सब ईश्वर को भूल कर भोगविलास में लग जाते हैं |
लेकिन जब दुख आता है तो फिर सब को ईश्वर याद आ जाता है |जब सुखी थे अगर तब ही ईश्वर को याद कर लिया होता, ईश्वर की भक्ति कर ली होती तो फिर दुख आता ही नहीं , क्योंकि एक बार अगर आपका ध्यान आपका मन ईश्वर में स्थित हो गया तो फिर फर्क नहीं पड़ता की आसपास अच्छा हो रहा है या बुरा हो रहा है |

3) माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।
आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।

भावार्थ – कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं मनुष्य पूरा जीवन अपनी तृष्णाओं अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में लगा रहता, मन तो चंचलता के कारण इस माया के पीछे भागता रहता है और सोचता है की एक दिन ऐसा आएगा जब उसकी सब इच्छाए पूरी हो जाएंगी सब तृष्णाऐ संतुष्ट हो जाएंगी ,परंतु सत्य यह है की एक दिन तुम्हारे इस शरीर का अंत हो जाएगा परंतु तुम्हारी इच्छाऐ , तुम्हारी तृष्णा का कभी अंत नहीं होगा | इसलिए समय रहते मनुष्य को ईश्वर की भक्ति कर लेनी चाहिए क्योंकि मात्र यही एक रास्ता है जो समस्त इच्छाओं और  तृष्णा को संतुष्ट कर सकता है| 

 4) जब मैं था तब हरि नाहीं, अब हरि हैं मैं नाँहिं |
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि ।

भावार्थ –  कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि जब मैं था अर्थात जब मेरा अहंकार था, जब मेरा मैं, मेरे शरीर, मेरे मन, मेरे रिश्तों, मेरे समाज और परिवार तक सीमित था जब हरी मुझसे दूर थे और जब हरी मिले हैं तो मेरा यह, मैं रूपी अहंकार अब समाप्त हो गया | ज्ञान रूपी दीपक ने मेरे अंदर का सारा अज्ञान का अंधकार समाप्त कर दिया है |

5) मेरा मुझमें कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा ।
तेरा तुझको सौंपता, क्या लागै है मेरा॥  

भावार्थ – यहां कबीर दास जी उस मनुष्य के भाव को कह रहे हैं जो पूर्णता भक्ति के मार्ग पर लग गया है जो की कहता है ईश्वर मेरे पास ऐसा कुछ नहीं जो मेरा हो, जो कुछ भी मेरे पास है वो सब तेरे द्वारा ही दिया गया है सब कुछ तेरा ही है | यह सब कुछ मैं तुझे ही समर्पित करता हूं |

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