श्रीमद् भागवत गीता कैसे पढ़ें? गीता पढ़ने के जरूरी नियम | How to Read Bhagavad Gita अक्सर लोग मुझसे यह सवाल पूछते हैं, “क्या गीता …Read More
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श्रीमद्भगवद्गीता का पूरा सार समझा देंगे ये 10 श्लोक | Shrimad Bhagwat Geeta ke Shlok in Hindi
श्रीमद्भगवद्गीता का पूरा सार समझा देंगे ये 10 श्लोक | Shrimad Bhagwat Geeta ke Shlok in Hindi श्रीमद्भागवत गीता, (Shrimad Bhagwat Geeta ke Shlok in …Read More
Read MoreBhagavad Gita 2.63 || अध्याय ०२ , श्लोक ६३ – श्रीमद्भगवत गीता
Bhagavad Gita 2.63 || क्रोध से भ्रम पैदा होता है , भ्रम से बुद्धि भ्रष्ट होती है| जब बुद्धि भ्रष्ट होती है तब…..
Read MoreBhagavad Gita 2.15 || अध्याय ०२ , श्लोक १ ५ – श्रीमद्भगवत गीता
Bhagavad Gita 2.15 || हे अर्जुन ! जो पुरुष सुख तथा दु;ख मे विचलित नहीं होता और इन दोनों मे समभाव रखता है, वह…..
Read MoreBhagavad Gita 4.13 || अध्याय ०४ , श्लोक १३ – भगवद गीता
Bhagavad Gita 4.13 || प्रकृति के तीनों गुणों (सत्व ,रज ,तम )और उनसे सम्बद्ध कर्म के अनुसार मेरे द्वारा मानव समाज के चार विभाग (ब्राहमण ,वैश्य ,क्षत्रिय ,शूद्र ) रचे गए…
Read MoreBhagavad Gita 3.6 || अध्याय ०३, श्लोक ०६ – भगवद गीता
Bhagavad Gita 3.6 ||` भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों को मन के द्वारा नियंत्रित करता है और कर्म योग का आचरण करता है, वही सर्वोत्तम है। इसका अर्थ है कि हम अपनी इन्द्रियों को…
Read MoreBhagavad Gita 6.6 || अध्याय ०६ , श्लोक ०६ – भगवद गीता
Bhagavad Gita 6.6 : भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं, जीवन में कुछ भी सार्थक करने के लिए मन पर नियंत्रण होना चाहिए। हर व्यक्ति के लिए यह दो संभावना है या तो मन पर उसका नियंत्रण होगा या फिर मन का नियंत्रण उस पर होगा, या तो तुम मन के सेवक होंगे या फिर मन तुम्हारा सेवक होगा। अब यह…Read More
Read MoreBhagavad Gita 2.48 || अध्याय ०२ , श्लोक ४८ – भगवद गीता
Bhagavad Gita 2.48 : भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, कार्य करते समय कभी भी आसक्ति भाव मन में मत रखो। बिना आसक्ति भाव के कार्य करने का अर्थ है कि, कार्य करते समय उससे किसी भी तरह के फल की आशा मत रखो | तुम…Read More
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