योग के प्रकार और लाभ : स्वामी विवेकानन्द

योग के प्रकार और लाभ : स्वामी विवेकानन्द

योग के प्रकार और लाभ : स्वामी विवेकानन्द

योग के प्रकार और लाभ  : स्वामी विवेकानन्द, भारतीय संस्कृति और धार्मिक तत्त्वों के प्रचारक थे जिन्होंने योग के महत्व को प्रमुखता दी और योग के प्रकारों और उनके लाभ को बताया। योग भारतीय दर्शन और विज्ञान का महत्वपूर्ण हिस्सा है और अनुभव की एक प्रक्रिया के रूप में माना जाता है जो मन, शरीर और आत्मा के संयोग से उन्नति और शांति प्राप्त करने का उपाय है।

योग के प्रकार और लाभ : स्वामी विवेकानन्द

योग के प्रकार और लाभ : स्वामी विवेकानन्द

स्वामी विवेकानन्द ने योग के प्रकार और लाभ में अपनी कई पुस्तकों में विस्तार से बताया है, जिनमें से मुख्य 4 प्रकार निम्नलिखित हैं:

1) राज योग

2) ज्ञान योग

3) भक्ति योग

4) कर्म योग

राज योग क्या है?

  राज योग –  स्वामी विवेकानन्द ने राज योग को एक महत्वपूर्ण योग के रूप में प्रमुखता से प्रचारित किया था। उन्होंने राज योग को एक पूर्ण आध्यात्मिक प्रयास के रूप में प्रस्तावित किया था जिसमें ध्यान और मन के नियंत्रण पर  मुख्यतः ध्यान दिया जाता है।

स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, राज योग का लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार और आत्मा की प्राप्ति है। इसे शांत मन और नियमित ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। राज योग में ध्यान को महत्व दिया जाता है, जिससे मन को शांत, स्थिर और एकाग्रता प्राप्त होती है।

ज्ञान योग क्या है?

  ज्ञान योग-  स्वामी विवेकानन्द ने ज्ञान योग को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति और आत्म-सम्यक्ता के माध्यम से मुक्ति की प्राप्ति का मार्ग बताया। ज्ञान योग के माध्यम से साधक को अध्यात्मिक सत्य की पहचान होती है और उसे स्वयं की आत्मा से परिचित कराया जाता है।

स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, ज्ञान योग का मुख्य उद्देश्य आत्मा  की प्राप्ति है। इसके लिए, विवेकानन्द ने ध्यान, स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन), चिन्तन (मनन), सत्य की अनुभूति, और आत्म-ज्ञान के अभ्यास को महत्वपूर्ण माना।  साधक ज्ञान योग के माध्यम से अपनी सत्य स्वरूप आत्मा की पहचान करता है और सच्चिदानंद की अनुभूति को प्राप्त करता है।

भक्ति योग क्या है?

भक्ति योग- स्वामी विवेकानन्द ने भक्ति योग को आत्मा के साथ भगवान की प्रेम भावना और संबंध का मार्ग बताया। भक्ति योग के माध्यम से साधक अपनी हृदय भावना और प्रेम के माध्यम से अपने ईश्वर के साथ एकात्मता की अनुभूति करता है।

 स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, भक्ति योग में साधक को अपने ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम की भावना विकसित करने की अपेक्षा होती है। भक्ति योग के माध्यम से साधक अपने मन को पवित्र करता है और आत्मा के साथ ईश्वर की आत्मा में एकता की अनुभूति करता है।

कर्म योग क्या है?

कर्म योग-  स्वामी विवेकानन्द ने कर्म योग को कर्म के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति और समर्पण का मार्ग बताया। वह इसे एक सकर्मी और निष्कर्मी योग के रूप में व्यक्त करते थे।

 कर्म योग के माध्यम से साधक को कर्म में समर्पित रहने की इच्छा होती है। यदि हम निष्कर्मी बनने का चुनाव करते हैं, तो हमें कर्म में भी समर्पित रहना चाहिए और अपने कर्तव्यों को निष्कामता के साथ करना चाहिए | 

उन्होंने कहा था कि सही तरीके से कर्म करने के माध्यम से हम अपने मन को शुद्ध करके और आत्मा की दिशा में अग्रसर होकर आत्मा की प्राप्ति कर सकते हैं। स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, कर्म योग साधक को कर्म की अनासक्ति, स्वाधीनता, और स्वयं की सेवा में समर्पण का मार्ग प्रदान करता है। इसके माध्यम से साधक कर्म में समुचित कर्मफल की चिंता किए बिना निष्काम भाव से कर्म करते हैं और आत्मा की प्राप्ति और आत्म-उन्नति का मार्ग अपनाते है