Raman Maharshi in Hindi : मन को नियंत्रित कैसे करें? अचूक उपाय | How to Control Mind

Raman Maharshi in Hindi : मन को नियंत्रित कैसे करें? अचूक उपाय | How to Control Mind

Raman Maharshi in Hindi : मन को नियंत्रित कैसे करें? अचूक उपाय | How to Control Mind

रमण महर्षि (Raman Maharshi in Hindi) की शिक्षाओं में मन को नियंत्रित (Control Mind) करने का जो तरीका बताया गया है, वह एक गहन और सूक्ष्म आत्म-अन्वेषण की प्रक्रिया पर आधारित है। यह तरीका हमें यह समझने का अवसर प्रदान करता है कि मन किस प्रकार से विचारों और बाहरी उत्तेजनाओं के प्रति प्रतिक्रिया करता है और कैसे हम उन पर विजय पा सकते हैं। रमण महर्षि का दृष्टिकोण सरल है, परंतु इसका अभ्यास गहन आत्मचिंतन और अनुशासन की मांग करता है।

रमण महर्षि (Raman Maharshi in Hindi) के अनुसार, जब भी कोई विचार उत्पन्न होता है, व्यक्ति को उसे नकारने के बजाय यह देखना चाहिए कि वह विचार किसके लिए उत्पन्न हो रहा है। विचार का स्रोत कौन है? जैसे ही कोई विचार उठे, व्यक्ति को तुरंत आत्म-खोज की प्रक्रिया में जुट जाना चाहिए और पूछना चाहिए, “यह विचार किसके लिए है?” इसका उत्तर आएगा, “मेरे लिए”। इसके बाद, व्यक्ति को यह खोज करनी चाहिए कि “मैं कौन हूँ?”। इस प्रक्रिया को रमण महर्षि ‘आत्म-विचार’ कहते हैं, जो व्यक्ति को विचारों के स्रोत की ओर ले जाता है और मन को उसकी जड़ों में वापस ले आता है।

जब मन अपने स्रोत में लौटता है, तो विचार स्वतः ही शांत हो जाते हैं। नियमित अभ्यास से मन इस प्रक्रिया में कुशल हो जाता है, और यह स्रोत में ही स्थिर हो जाता है। इस स्थिति में, मन की चंचलता समाप्त हो जाती है, और व्यक्ति आंतरिक शांति और स्थिरता का अनुभव करता है। रमण महर्षि (Raman Maharshi in Hindi) बताते हैं कि जब मन बाहर की ओर जाता है, तो नाम और रूप प्रकट होते हैं, लेकिन जब यह हृदय में स्थित होता है, तो नाम और रूप विलुप्त हो जाते हैं। यह प्रक्रिया “अंतर्मुखी” होना कहलाती है, जिसमें व्यक्ति बाहरी चीजों से हटकर अपनी आंतरिक दुनिया में स्थिर होता है। इसके विपरीत, जब मन बाहर की ओर चलता है, तो इसे “बाह्यमुखी” होना कहा जाता है।

रमण महर्षि (Raman Maharshi in Hindi) के अनुसार, जब मन हृदय में स्थित होता है, तो “मैं” का विचार, जो सभी विचारों का मूल है, समाप्त हो जाता है और शुद्ध अस्तित्व का अनुभव होता है। यह अनुभव व्यक्ति को अहंकार से परे ले जाता है और उसे एक अद्वितीय शांति और आनंद की अनुभूति कराता है। इस अवस्था में व्यक्ति कोई भी कार्य बिना अहंकार और स्वार्थ के करता है, और उसके लिए सब कुछ शिव स्वरूप के रूप में प्रकट होता है।

रमण महर्षि (Raman Maharshi in Hindi) से पूछा गया कि क्या मन को नियंत्रित (Control Mind) करने के और भी उपाय हैं। इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि आत्म-विचार के अलावा कोई और उपाय स्थायी रूप से मन को नियंत्रित (Control Mind) नहीं कर सकता। अन्य उपायों से मन अस्थायी रूप से नियंत्रित हो सकता है, परंतु जैसे ही वे उपाय समाप्त होते हैं, मन फिर से चंचल हो जाता है। प्राणायाम, जो श्वास को नियंत्रित करने की एक विधि है, से मन अस्थायी रूप से स्थिर हो सकता है, लेकिन जब श्वास फिर से सामान्य हो जाता है, तो मन पुनः सक्रिय हो जाता है।

रमण महर्षि बताते हैं कि मन और प्राण दोनों का स्रोत एक ही है। मन का पहला विचार ‘मैं’ का होता है, जो अहंकार का प्रतीक है। इसी स्रोत से श्वसन भी आरंभ होता है। इसलिए, जब मन स्थिर होता है, तो श्वास भी नियंत्रित हो जाता है, और जब श्वास नियंत्रित होता है, तो मन भी स्थिर हो जाता है। लेकिन यह स्थिति अस्थायी होती है। समाधि और जाग्रत अवस्था में जब मन स्थिर होता है, तो श्वास भी नियंत्रित रहता है, परंतु यह ईश्वरीय इच्छा के अनुसार चलता है ताकि शरीर जीवित रह सके।

रमण महर्षि (Raman Maharshi in Hindi) ने यह भी स्पष्ट किया कि प्राणायाम मन को स्थिर करने में सहायक हो सकता है, लेकिन यह मन का पूर्ण नाश नहीं कर सकता। इसी प्रकार मूर्ति पूजा, ध्यान, मंत्र जाप और आहार नियम भी मन को स्थिर करने में मदद करते हैं, लेकिन इनसे मन का स्थायी नाश नहीं होता। यह उपाय मन को एक स्थान पर केंद्रित करने में सहायक होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हाथी की सूंड को एक जंजीर से बांध दिया जाए तो वह केवल उसी जंजीर को पकड़ कर चलता है।

रमण महर्षि के अनुसार, जब मन असंख्य विचारों में बंटा रहता है, तो वह कमजोर होता है। लेकिन जब विचारों को केंद्रित किया जाता है, तो मन शक्तिशाली हो जाता है और आत्म-विचार करना सरल हो जाता है। मन का स्वभाव चंचल होना है, इसलिए उसे नियंत्रण में लाने के लिए उसे आत्म-अन्वेषण और आत्म-विचार की दिशा में मोड़ना आवश्यक है। इसके साथ ही सात्विक आहार भी आत्म-विचार की साधना में सहायक हो सकते हैं।

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रमण महर्षि (Raman Maharshi in Hindi) की इस विधि से यह स्पष्ट होता है कि मन को स्थायी रूप से नियंत्रित करने का सबसे उपयुक्त उपाय आत्म-विचार ही है। यह न केवल मन को नियंत्रित (Control Mind) करता है, बल्कि व्यक्ति को उसके वास्तविक स्वरूप का अनुभव कराने में भी सक्षम होता है।

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