ओशो (Osho) द्वारा सुनाई गई अद्भुत कहानी | दुनिया की सबसे शांत जगह

ओशो कि कहानी

ओशो (Osho) द्वारा सुनाई गई अद्भुत कहानी | दुनिया की सबसे शांत जगह

विश्व का सबसे शांतिपूर्ण स्थान कहाँ है? यह बौद्ध कहानी आपके प्रश्न का उत्तर प्रदान करती है, जिसे ओशो (Osho Rajneesh) ने अपने एक व्याख्यान में सुनाया था।
 
जब भी हम हमारे जीवन से परेशान होते हैं तो हम एक ऐसी जगह की तलाश में होते हैं जहां जाकर हमें शांति प्राप्त हो, हमारा तनाव दूर हो जाए |
ऐसी कई जगह हमें मिल भी जाती हैं लेकिन इन जगहों से हम जब वापस अपनी जगह आते हैं तो फिर वही तनाव, फिर वही चिंताएं, और वही परेशानियां हमें घेर लेती हैं | ऐसे में सवाल उठता है की दुनिया में क्या कोई ऐसी जगह है जहां मिला आनंद और शांति सदा के लिए हो, एक ऐसी जगह जहां जाने के बाद भौतिक जगत की बड़ी से बड़ी चिंता भी दूर हो जाए, एक ऐसी जगह जो हो दुनिया की सबसे शांत जगह |

ओशो द्वारा सुनाई गई अद्भुत कहानी | दुनिया की सबसे शांत जगह

आपके इसी सवाल का जवाब यह कहानी देती है, जो कि ओशो जी द्वारा अपने एक प्रवचन में सुनाई गई|

यह कहानी एक अमेरिकी  मनोवैज्ञानिक के बारे में बताती हैं, जो पूरब आना चाहता था विपस्सना ध्यान सीखने के लिए।

बौद्धों के ध्यान का बर्मा के रंगून में सबसे बड़ा विपस्सना स्कूल है तो उसने तीन सप्ताह की छुट्टी ले ली। वह अमेरिकन बड़ी तैयारियां करके रंगून पहुंचा। यात्रा शुरू करने से पहले ही उसके मन में कई कल्पनाओं ने घर बना लिया था और ये कल्पनाएं आश्रम आते आते बहुत बड़ी हो गई थी | उसे लगने लगा मानो की जहां वो जा रहा है वो जगह दुनिया की सबसे शांत जगह होगी इसलिए ऐसी जगह इतना बड़ा विपस्सना आश्रम खोला गया है | उसकी कल्पना में आश्रम एक पहाड़ की तलहटी और घने वृक्षों की छाया में स्थित था | जहां पास में झरने बह रहे थे, पक्षी चह चहा रहे थे और फूल खिल रहे थे | वह सोच रहा ये तीन सप्ताह आनंद से गुजारूंगा। आखिरकार कुछ दिन के लिए ही सही लेकिन न्यूयॉर्क के पागलपन से पीछा छूटा

लेकिन जब उसकी टैक्सी जा कर आश्रम के सामने रुकी तो उसने सिर पीट लिया। वह रंगून के बीच बाजार में था, मछली बाजार में। वदबू ही वदबू और उपद्रव ही उपद्रव, सब तरफ शोरगुल, कहीं मक्खियां भिनभिना रही हैं, कहीं कुत्ते भौंक रहे हैं, आदमी सौदा कर रहे हैं, स्त्रियां भागी जा रही हैं, और बच्चे चीख रहे हैं।

उसमें कहा, यह आश्रम की जगह है?

उसका मन तो हुआ कि इसी वक्त सीधा वापिस लौट जाऊं। लेकिन तीन दिन तक कोई लौटने के लिए हवाई जहांज भी न था तो उसने सोचा अब आ ही गया हूं तो कम से कम इन सदगुरु के दर्शन तो कर ही लूं! ना जाने किस सदगुरु ने यहां आश्रम खोल रखा है ? यह कोई जगह है आश्रम खोलने की?

अंदर गया तो बड़ा हैरान हुआ। सांझ का वक्त था और कोई दो सौ कौए आश्रम पर लौट रहे थे, क्योंकि सांझ को बौद्ध भिक्षु भोजन करके उनको कुछ फेंक देते होंगे गेहूं चावल इत्यादि। कौओं की काऊ काऊ ने हर तरफ चीख-चीत्कार मचा रखा है। वह बोला छी कैसी जगह है और यहीं भिक्षु ध्यान करते हैं।

वहीं उसने देखा कोई भिक्षु टहल रहा है, जैसा बौद्ध टहल कर ध्यान करते हैं। कोई वृक्ष के नीचे शांत बैठा ध्यान कर रहा है। युवक खड़ा हो कर एक क्षण देखता रहा, बात कुछ समझ ना आयी, बड़ी विरोधाभासी लगी। लेकिन भिक्षुओं के चेहरों पर बड़ी शांति भी थी। जैसे यह सब कुछ हो ही नहीं रहा है, या जैसे ये कहीं और हैं, किसी और लोक में हैं, जहां ये सब खबरें नहीं पहुचतीं अगर पहुंचती हैं तो कोई विक्षेप नहीं है। इन भिक्षुओं के चेहरों को देख कर उसने सोचा तीन दिन तो रुक ही जाऊं।

वह गुरु के पास गया और गुरु से पूछा यह क्या मामला है? यह कहां जगह चुनी आपने? 

तो गुरु ने कहा : रुको, तीन सप्ताह बाद अगर तुम फिर यही प्रश्न पूछोगे तो उत्तर दूंगा। तीन सप्ताह रुक गया। पहले तो तीन दिन के लिए रुका, लेकिन तीन दिन में लगा कि बात में कुछ तो दम है। एक सप्ताह रुका तो धीरे-धीरे पता चला, यह बात कुछ अर्थ नहीं रखती कि बाजार में शोरगुल हो रहा है, ट्रक जा रहे हैं, कारें दौड़ रहीं, कौए कांव-कांव कर रहे, कुत्ते भौंक रहे हैं या मक्खियां भिनभिना रहीं, ये सब बातें कुछ अर्थ नहीं रखतीं। तुम कहीं दूर लोक में जाने लगे। तुम कहीं भीतर उतरने लगे, कोई चीज रुकावट नहीं बनती।

दूसरे सप्ताह होते-होते तो उसे याद ही नहीं रहा। तीसरे सप्ताह तो उसे ऐसे लगा कि अगर ये कौए यहां न होते, ये कुत्ते यहां न होते, यह बाजार न होता, तो शायद ध्यान हो ही नहीं सकता था। क्योंकि इसके कारण एक पृष्ठभूमि बन गयी। तब उसने गुरु को कहा कि मुझे क्षमा करें। मैंने जो शिकायत की थी वह ठीक न थी। वह मेरी जल्दबाजी थी।

गुरु ने जवाब दिया, बहुत सोच कर ही यह आश्रम यहां बनाया है। सब जान कर ही यहां बनाया है। अगर शांत जगह आश्रम होता, कुछ ऐसा होता ही नही जिससे मन भटकता हो, तो तुम कैसे जान पाते की तुम ध्यान के सही रास्ते पर हो |
योग बाहरी अस्थिरता, अशांति और तनाव के बाद भी स्वयं को आंतरिक रूप से आनंदमय और शांत बनाने के लिए है |

योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।

“चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है”।

विपस्सना का प्रयोग ही यही है, जहां बाधा पड़ रही हो वहा बाधा के प्रति प्रतिक्रिया न हो। प्रतिक्रिया शून्य हो जाये, तो चित शांत हो ही जाता है। जिसके बाद मिलती है दुनिया की सबसे शांत जगह जो कहीं बाहर नहीं तुम्हारे अंदर ही है|

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