‘आदिपुरुष’ बनाने वालों को कोर्ट की फटकार, खुल गई पोल | High Court on Adipurush

High Court on Adipurush

‘आदिपुरुष’ बनाने वालों को कोर्ट की फटकार, खुल गई पोल | High Court on Adipurush

High Court on Adipurush : ‘आदिपुरुष’ को लेकर इलाहबाद हाईकोट ने तगड़ी फटकार लगाई है और फिल्म निर्माताओं से कहा गया है कि ,रामायण, भगवद गीता, गुरु ग्रंथ साहिब और जो अन्य ऐसे ग्रंथ हैं जिनमें लोगो की श्रद्धा है आप उन ग्रंथों को तो कम से कम छोड़ दीजिए|
इसके साथ सेंसर बोर्ड को भी तगड़ी फटकार लगाई गई है और कोर्ट द्वारा कहा गया की सेंसर बोर्ड का काम क्या है| क्या आज सेंसर बोर्ड अपनी जिम्मेदारियां भूल चुका है|कोर्ट द्वारा यह फटकार आदिपुरुष बनाने वालो को क्यों लगाई गई ये अभी तक आप सभी को पता लग गया होगा कि किस तरह से Creative Liberty के नाम पर कितनी सारी गलतियाँ आदिपुरुष में की गई हैं, किस तरह से हमारे इतिहास हमारे धार्मिक ग्रंथों के साथ छेड़छाड़ की गई है|

‘आदिपुरुष’ बनाने वालों को कोर्ट की फटकार, खुल गई पोल | High Court on Adipurush

‘आदिपुरूष’ के लेखक कहते हैं की यह फिल्म हमने युवाओं को ध्यान में रख कर बनाई है, तो आप से पूछना चाहूंगा कि आप क्या चाहते हैं भारत का युवा इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करें जैसी आपकी फिल्म में की गई है|

दरअसल सबसे बड़ी गलती आपने यही कर दी की आपने फिल्म बनाते समय यह अपने दिमाग में रखा की आज का युवा कैसा है, अगर आप फिल्म बनाते समय यह अपने दिमाग में रखते की आज का युवा  कैसा होना चाहिए तो आप ना तो रामायण के साथ कोई छेड़छाड़ करते और ना ही इस फिल्म का इतना विरोध होता जितना आज हो रहा है|

अगर मैं अपनी बात बताऊं तो जब मैं यह सब देख रहा था की किसी ने रामायण पर फिल्म बनाई है और उसका इतना विरोध हो रहा है तो शुरू में मुझे थोड़ा खराब लगा की शायद फिल्म बनाने वालों का इरादा सही था, वो आज की पीढ़ी तक रामायण पहुंचाना चाह रहे थे लेकिन अनजाने में उनसे ऐसी गलती हो गई जिसकी वजह से उन्हें यह सब झेलना पड़ रहा है|

लेकिन इसके बाद मैने आदिपुरुष  के राइटर मनोज मुंतासिर के कुछ इंटरव्यूज देखें|
जिसके बाद यह कहा जा सकता है की रामायण पर फिल्म बनाने के लिए जो पवित्रता चाहिए, जो इरादा चाहिए, और जो ईमानदारी चाहिए जैसी की रामनंदसागर जी ने दिखाई थी,…वो इस फिल्म को बनाने के पीछे नहीं थी और यही वो सबसे बड़ा कारण था जिसने इस 700 करोड़ की फिल्म को डुबा दिया|

चलिए अब थोड़ी आदिपुरुष बनाने वालों की पोल खोलते हैं|

फिल्म बनाने से पहले आदिपुरुष लेखक मनोज मुंतासिर कहते हैं, आदिपुरुष 1% भी रामायण से अलग नहीं है|
उन्हें लगता है की शायद सनातनी रामायण भूल चुके हैं| वो जैसा दिखाएंगे हम वैसा ही मान लेंगे लेकिन आज भी बच्चे बच्चे को रामायण की इतनी जानकारी तो है कि वो आदिपुरुष  में गलतियां ढूंढ सकें| इसलिए जब यह फिल्म रिलीज होती है तो एक बड़ा विवाद खड़ा हो जाता है|
ऐसे में मनोज अपनी बात से पूरा पलट जाते हैं और कहते हैं कि यह रामायण नहीं आदिपुरुष है जो की रामायण से प्रेरित है इसलिए आप इसे रामायण समझ कर ना देखें|

ये वहीं मनोज हैं जिन्होंने अपना नाम मनोज शुक्ला से मनोज मुंतासिर इसलिए कर लिया क्योंकि मनोज शुक्ला में इन्हें वजन नहीं लगा| इसलिए अब आप समझ सकते हैं की आदिपुरुष में उन्होंने इतने बदलाव क्यों किए| धार्मिक ग्रंथों के तथ्य को बदलने से इन्हें फर्क नहीं पड़ता लेकिन जब इलाहबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया जाता है तो इन्हें बुरा लग जाता है जैसा की खुद इन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा है|

आदिपुरुष फिल्म देखने और मनोज मुंतासिर की बातें सुनने के बाद लगता है इनका इतिहास थोड़ा कमजोर है तो मनोज जी आपको कुछ बातें मैं बता देता हूं जिससे आज आपका व आप जैसे लोगो के मन का अंधकार थोड़ा दूर हो जाए|

दरअसल प्रयागराज का असली नाम प्रयाग ही था जिसे लेकर पुराणों में कहा गया है.. 
“प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।” — अर्थात प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है । इस जगह का नाम प्रयाग इसलिए पड़ा क्योंकि मान्यताओं के अनुसार सृष्टि निर्माण के बाद प्रथम यज्ञ इसी भूमि पर किया गया | इसलिए प्रयाग का ‘प्र’ शब्द यहां प्रथम को दर्शाता है और ‘याग’ शब्द यज्ञ को| इसके बाद 1575 में अकबर द्वारा इसका नाम इलाहबाद करवा दिया गया| जो मनोज जी को शायद पसंद आया हो लेकिन योगी जी और जो सच्चे सनातनी है उन्हें यह नाम पसंद नही आया जिसके चलते इसका नाम फिर से प्रयागराज कर दिया गया|
जिसमें हो सकता है मनोज जी को शायद वजन ना लग रहा हो लेकिन सत्य यही है|