घर में गणेश जी की मूर्ति रखने से पहले, कुमार विश्वास की बताई ये 6 बातें जरूर जान लो
गणेश चतुर्थी का पर्व हमारे देश में श्रद्धा और उत्सव का प्रतीक है। इस अवसर पर घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। कुमार विश्वास जी ने अपने व्याख्यान में गणपति जी की मूर्ति और उसकी प्राण प्रतिष्ठा का गहरा महत्व बताया है। यह केवल एक मिट्टी की आकृति नहीं होती, बल्कि यह मूर्ति जब घर में स्थापित की जाती है, तो उसमें जीवन का संचार होता है।
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Toggle1. मूर्ति की मोल-भाव और भावनाओं का स्थान
कुमार विश्वास जी ने बड़ी सरलता से बताया कि जब लोग घर में गणेश जी की मूर्ति लेने जाते हैं, तो अक्सर मोलभाव करते हैं। “भैया ये गणपति कितने के हैं?” यह सवाल कई बार सुनने को मिलता है। परंतु, यह ध्यान देना चाहिए कि इस मोलभाव का संबंध सिर्फ मूर्ति की भौतिक कीमत से होता है, न कि उसमें स्थापित की जाने वाली आस्था से। जब गणपति घर में आते हैं और उनकी पूजा की जाती है, तो वह महज मिट्टी की मूर्ति नहीं रह जाती। वह घर का सदस्य बन जाते हैं, और उनके विदाई के समय सभी की आँखों में आँसू आ जाते हैं।
2. मूर्ति से प्राण प्रतिष्ठा का महत्व
भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ पत्थरों में प्राण प्रतिष्ठित किए जाते हैं। कुमार विश्वास ने वाल्मीकि रामायण का संदर्भ देकर बताया कि श्रीराम “विग्रहवान धर्म” हैं। अर्थात् धर्म का मूर्त स्वरूप। जब हम मूर्त को उपासना योग्य बनाते हैं, तो उसमें भावनाएँ जुड़ जाती हैं। घर में गणेश जी की मूर्ति भी यही दर्शाती है – एक ऐसा माध्यम, जो हमें उस अदृश्य शक्ति से जोड़ती है। मूर्तिकार द्वारा बनाई गई इस आकृति में तब तक कोई विशेषता नहीं होती, जब तक उसमें प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती।
3. गणपति विसर्जन का भावनात्मक पहलू
जब हम गणेश जी की मूर्ति को विसर्जित करते हैं, तो यह क्षण अत्यधिक भावनात्मक होता है। यह सिर्फ मूर्ति का विसर्जन नहीं, बल्कि एक ऐसे सदस्य की विदाई होती है, जो हमारे घर के हर क्षण का साक्षी रहा। कुमार विश्वास जी ने कहा कि विसर्जन के समय हर घर आंसुओं से भरा होता है क्योंकि लोग मूर्ति में स्थापित भगवान गणेश से इतना जुड़ जाते हैं कि विदाई सहन करना मुश्किल हो जाता है।
4. प्राचीन भारतीय परंपरा: पत्थरों में प्राण प्रतिष्ठा
भारत की एक अनोखी परंपरा रही है जिसमें पत्थरों में प्राण प्रतिष्ठित किए जाते हैं। कुमार विश्वास ने कहा कि लोग पत्थरों में प्राण डालने की प्रक्रिया को समझते हैं, जबकि पश्चिमी संस्कृति इस अद्वितीय परंपरा को समझने में असमर्थ है। उदाहरण के लिए, एक साधारण पत्थर, जो नदी की धारा से घिस कर आया है, उसे जब मंदिर में प्रतिष्ठित किया जाता है, तो वह परिवार का मंगलकारी बन जाता है। यह एक ऐसी परंपरा है, जो केवल भारत में देखने को मिलती है।
5. मूर्ति के प्रकार और विसर्जन का कारण
कुमार विश्वास जी ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी मूर्तियों का विसर्जन नहीं होता। कुछ मूर्तियों में विधिवत पूजा और प्राण प्रतिष्ठा की जाती है, जैसे कि मंदिरों में स्थापित मूर्तियाँ, जो स्थायी होती हैं। लेकिन गणेश चतुर्थी पर स्थापित गणपति की मूर्तियाँ कुछ दिनों के लिए होती हैं। इसलिए उनका विसर्जन किया जाता है, जबकि संकटमोचन जैसे मंदिरों में स्थापित मूर्तियों का विसर्जन नहीं होता।
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6. आध्यात्मिकता और धार्मिकता का भेद
कुमार विश्वास जी के अनुसार, आध्यात्मिकता और धार्मिकता में अंतर है। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि भगवान की मूर्ति के साथ जब इंसान की संगति हो जाती है, तो वह 24 घंटे आध्यात्मिक हो जाता है। उन्होंने लड्डू गोपाल का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे हमारी माताएं भगवान को एक सदस्य की तरह देखती हैं, उनके भोजन, वस्त्र, और सुख की चिंता करती हैं। यह धार्मिकता नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता है, जो व्यक्ति को भगवान के साथ जोड़ती है।
निष्कर्ष
कुमार विश्वास जी के अनुसार, घर में गणेश जी की मूर्ति केवल एक आकृति नहीं है, बल्कि यह हमारी भावनाओं, आस्थाओं और परंपराओं का प्रतीक है। गणेश चतुर्थी पर स्थापित की जाने वाली मूर्तियाँ हमारे जीवन में भगवान गणेश को आमंत्रित करने और उनके आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक माध्यम हैं। जब विसर्जन का समय आता है, तो यह एक भावनात्मक विदाई होती है, जो हमें सिखाती है कि भगवान हमारे साथ हैं, चाहे वह मूर्ति के रूप में हों या हमारे हृदय में।