मोक्ष और मुक्ति में क्या अंतर है? Difference between Moksha and Mukti
एक आम सवाल जो अक्सर हर एक साधक के मन में आता है की मोक्ष (Moksha) और मुक्ति (Mukti) में अंतर क्या है? यहाँ पर आपके इसी प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास किया जा रहा है। आशा करते हैं की इस उत्तर से आप जरूर संतुष्ट होंगे।
मोक्ष (Moksha) क्या है?
मोक्ष (Moksha) शब्द भारतीय दर्शन और धर्मशास्त्रों में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मोक्ष का तात्पर्य है जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति और अंततः परम आनंद की प्राप्ति। यह जीवन के दुखों से स्थायी मुक्ति की स्थिति है, जहाँ व्यक्ति माया और संसार के बंधनों से परे जाकर आत्मा की शुद्ध अवस्था में पहुँचता है।
दुख और मोक्ष (Moksha) का संबंध
मोक्ष (Moksha) को सही ढंग से समझने के लिए पहले दुख का विश्लेषण करना आवश्यक है। संसार में सभी व्यक्ति किसी न किसी रूप में दुख का सामना करते हैं। यह दुख हमारे जन्म से ही प्रारंभ होता है। कबीरदास जी ने लिखा है:
_”कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंसा हम रोए”_
यानी जीवन में दुखों की शुरुआत जन्म से ही हो जाती है। तुलसीदास जी ने भी कहा:
_”जनमत मरत दुसह दुख होई”_
यानी जन्म और मृत्यु के बीच का संपूर्ण जीवन दुखों से भरा हुआ होता है। गीता में बताया गया है कि जब व्यक्ति संसारिक विषयों के प्रति आसक्त हो जाता है, तब उसकी इच्छाएं और कामनाएं उत्पन्न होती हैं। इन्हीं कामनाओं से क्रोध और अन्य नकारात्मक भावनाएं जन्म लेती हैं, जो हमें निरंतर दुखी बनाए रखती हैं।
गीता में कहा गया है कि:
_”विषयों का चिंतन करने वाले मनुष्यों की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से कामना उत्पन्न होती है, फिर कामना से क्रोध उत्पन्न होता है।”_
मुक्ति (Mukti) क्या है?
मुक्ति (Mukti) का अर्थ है किसी बंधन या कठिनाई से छुटकारा पाना। साधारणतया, मुक्ति किसी न किसी प्रकार की कठिनाई या पीड़ा से अस्थायी रूप से छुटकारा पाने को कहा जा सकता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, मुक्ति (Mukti) दो प्रकार की होती है:
1. अनित्य या क्षणिक मुक्ति (Mukti): यह अस्थायी मुक्ति (Mukti) है, जैसे नींद के दौरान दुखों से राहत मिलना या ध्यान की अवस्था में क्षणिक शांति प्राप्त करना। लेकिन यह स्थायी नहीं होती। जब व्यक्ति जागृत होता है, तब फिर से कर्म बंधन और दुखों का सामना करना पड़ता है।
2. नित्य या पूर्ण मुक्ति (Mukti): इसे मोक्ष कहा जाता है। यह स्थिति तब आती है जब व्यक्ति सदा के लिए दुखों से मुक्त हो जाता है और अंतहीन आनंद का अनुभव करता है।
मोक्ष (Moksha) की आवश्यकता क्यों है?
जीवन में हर व्यक्ति दुखों से मुक्ति और आनंद की प्राप्ति चाहता है। चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक, सभी अपने जीवन में शांति और सुख की तलाश में रहते हैं। यही कारण है कि मोक्ष की प्राप्ति सभी के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
मनुष्य जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसा हुआ है। इस संसार में जो भी दुख हैं, वे माया और कर्म बंधनों के कारण होते हैं। व्यक्ति अपने अच्छे और बुरे कर्मों के आधार पर स्वर्ग, नरक, या फिर मनुष्य योनि में जन्म लेता रहता है। यह चक्र निरंतर चलता रहता है। वेदों के अनुसार, कर्म ही मनुष्य के इस चक्र में बंधे रहने का मूल कारण है।
कर्म और मोक्ष का संबंध
वेद और उपनिषदों में कहा गया है कि जब तक व्यक्ति अपने कर्मों से बंधा रहता है, तब तक उसे पुनर्जन्म लेना पड़ता है। माया के तीन गुणों – सात्विक, राजस, और तामस – के आधीन रहकर व्यक्ति कर्म करता है और इस प्रकार कर्मों का बंधन बढ़ता रहता है। जब व्यक्ति इन सभी कर्मों और बंधनों से मुक्त हो जाता है, तभी उसे मोक्ष (Moksha) प्राप्त होता है।
माया से मुक्ति (Mukti) क्या है?
कुछ विद्वान मानते हैं कि जब व्यक्ति माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है, तब उसे मोक्ष (Moksha) प्राप्त होता है। माया वह शक्ति है जो इस संसार को चलाती है और व्यक्ति को भ्रम में रखती है। माया के तीन गुण (सात्विक, राजस, और तामस) व्यक्ति को भौतिक इच्छाओं और बंधनों में उलझाए रखते हैं। जब व्यक्ति इन गुणों से परे जाता है, तब वह माया से मुक्त हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है।
मोक्ष और अध्यात्म
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, मोक्ष (Moksha) जीवन की सर्वोच्च स्थिति मानी जाती है। इसमें व्यक्ति ईश्वर या परम तत्व से एकाकार हो जाता है। तुलसीदास, सूरदास, मीरा, और प्रह्लाद जैसे महान भक्तों ने मोक्ष की अवस्था को इसी जीवन में प्राप्त किया। उन्होंने अपने जीवन के दौरान ही ईश्वर से मिलन का अनुभव किया और मृत्यु के बाद परमगति को प्राप्त हुए।
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निष्कर्ष
मोक्ष (Moksha) की अवस्था किसी बाहरी भौतिकता से परे है। यह जीवन की ऐसी अवस्था है जहाँ व्यक्ति सभी दुखों से मुक्त होकर सच्चे आनंद और शांति का अनुभव करता है। माया, कर्म और संसार के बंधनों से पूरी तरह से मुक्त होना ही मोक्ष है। मोक्ष का अनुभव किसी भी व्यक्ति द्वारा इस जीवन में ही प्राप्त किया जा सकता है, और मृत्यु के बाद व्यक्ति परमगति को प्राप्त करता है।