ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी | सकल ताड़ना के अधिकारी || प्रेमानन्द जी महाराज से समझें इस रामचरितमानस की चौपाई का सही अर्थ
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के सुंदरकांड की यह चौपाई – “ढोल, गवार, शुद्र, पशु, नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी” – अक्सर विवाद और भ्रम का विषय रही है। इसके शाब्दिक अर्थ को बिना गहरे अध्ययन के समझे, कुछ लोग इसे नारी और अन्य वर्गों के प्रति अपमानजनक समझते हैं। परंतु जब इस चौपाई की सही व्याख्या की जाती है, तो तुलसीदासजी का वास्तविक उद्देश्य और संदेश स्पष्ट हो जाता है।
महाराज प्रेमानंद जी महाराज की व्याख्या:
प्रेमानंद जी महाराज ने रामचरितमानस की इस चौपाई की सूक्ष्म व्याख्या करते हुए कहा है कि महापुरुषों के वचनों को केवल शाब्दिक रूप में समझने की बजाय, हमें उनके गहरे अर्थ को समझने की आवश्यकता है। उन्होंने इस चौपाई में प्रयुक्त शब्दों के सही अर्थ और संदर्भ पर प्रकाश डाला है।
1. ढोल (ड्रम): महाराज जी कहते हैं कि रामचरितमानस की इस चौपाई में ढोल का मतलब केवल उसे पीटना नहीं होता, बल्कि ढोल को सही ताल देने से ही वह संगीत उत्पन्न करता है। ढोल को पीटना एक रूपक है कि उसे सही रूप से बजाया जाना चाहिए, तभी वह मधुर संगीत उत्पन्न करेगा। इसका सीधा अर्थ यह नहीं है कि ढोल को मारना है, बल्कि यह दर्शाता है कि उसे सही दिशा और ताल देना आवश्यक है।
2. गंवार (अशिक्षित व्यक्ति): रामचरितमानस की इस चौपाई में गंवार शब्द का अर्थ उस व्यक्ति से है जो विवेकहीन या अशिक्षित हो। यहाँ ‘ताड़ना’ का मतलब उसकी देखरेख और दिशा-निर्देश देना है, ताकि वह सही तरीके से कार्य कर सके। इसका उद्देश्य उसे शारीरिक रूप से दंडित करना नहीं है, बल्कि उसकी अज्ञानता के कारण उस पर ध्यान रखना है, ताकि वह गलती न करे। विवेकहीन व्यक्ति को कार्य सौंपने के बाद उस पर नजर रखना चाहिए ताकि वह गलती से गलत दिशा में न चला जाए।
3. शूद्र (सेवा करने वाला वर्ग): शूद्र का तात्पर्य वर्ण व्यवस्था में सेवा करने वाले वर्ग से है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की इस चौपाई में शूद्र का तात्पर्य किसी नीच या अपमानजनक वर्ग से नहीं लिया, बल्कि यह शास्त्र के अनुसार अपने कर्तव्यों का पालन करने वाला व्यक्ति है। शूद्र का उत्पत्ति श्री भगवान के चरणों से मानी जाती है, जो उसे पवित्रता और सम्मान का प्रतीक बनाती है। यहाँ ताड़ना का अर्थ उसके कर्तव्यों पर नजर रखना और उसे उचित मार्गदर्शन देना है, न कि उसे दंडित करना।
4. नारी (स्त्री): नारी को तुलसीदासजी ने ‘रत्न’ कहा है, और उसे ‘ताड़ना’ शब्द का मतलब उसकी सुरक्षा और देखरेख है, न कि उसे पीटना या अपमानित करना। महाराज जी ने स्पष्ट किया कि स्त्री को ताड़ना का अर्थ उसकी गरिमा और मर्यादा की रक्षा करना है। भारतीय संस्कृति में नारी को विशेष स्थान दिया गया है, और उसका अपमान करने से रावण और दुर्योधन जैसे व्यक्तियों का पतन हुआ। स्त्री को ताड़ना का अर्थ उसे सुरक्षा प्रदान करना और उसकी महत्ता को समझना है।
शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ:
महाराज जी ने रामचरितमानस की इस चौपाई में ‘ताड़ना’ शब्द के अलग-अलग संदर्भों में उपयोग की भी व्याख्या की है। जैसे ‘कनक’ (सोना) का एक अर्थ सोना होता है और दूसरा धतूरा नामक विषैला पौधा। उसी प्रकार से ताड़ना शब्द का उपयोग हर स्थान पर पीटने के अर्थ में नहीं किया गया है। ढोल को पीटना सही ताल देना होता है, गंवार को ताड़ना उसकी देखरेख करना है, शूद्र को ताड़ना उसे मार्गदर्शन देना है, और नारी को ताड़ना उसकी सुरक्षा करना है।
नारी का विशेष स्थान और सुरक्षा:
महापुरुषों ने नारी को बुद्धि और सामर्थ्य स्वरूपा माना है। स्त्री का अपमान करने से किसी भी समाज या परिवार का पतन हो सकता है। रामायण और महाभारत के उदाहरण जैसे सीता और द्रौपदी के साथ अपमानजनक व्यवहार करने वाले रावण और दुर्योधन का विनाश इसी कारण हुआ। इस प्रकार, ताड़ना का मतलब स्त्री के प्रति देखभाल और उसकी गरिमा की रक्षा है।
निष्कर्ष:
गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रामचरितमानस की इस चौपाई में दिए गए शब्दों का शाब्दिक अर्थ लेना उचित नहीं है। यहाँ हर शब्द का गहरा अर्थ और संदर्भ है। ढोल को सही ताल देना, गंवार को सही मार्गदर्शन देना, शूद्र को कर्तव्यों का पालन कराना और नारी की रक्षा करना – यही इस चौपाई का वास्तविक उद्देश्य है। गोस्वामी जी ने समाज के हर वर्ग को सही दिशा में कार्य करने और एक-दूसरे की गरिमा को बनाए रखने का संदेश दिया है।
इसलिए, महाराज प्रेमानंद जी महाराज के इस सूक्ष्म विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस चौपाई का अर्थ समाज के सभी वर्गों के प्रति सहानुभूति, देखभाल और सुरक्षा की भावना है, न कि अपमान या तिरस्कार की।