देवी की उत्पत्ति कैसे होई? सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने समझाया
सद्गुरु बताते हैं की नवरात्रि का पर्व केवल देवी दुर्गा की पूजा का अवसर नहीं है, बल्कि यह एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा का समय है। इस दौरान हमें देवी के जन्म और उनके अस्तित्व के पीछे की शक्तियों को समझने का एक अनूठा मौका मिलता है। सद्गुरु जी के अनुसार, देवी का जन्म ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों से हुआ है। आइए, इस विषय को गहराई से समझते हैं।
देवी का स्वरूप: सद्गुरु
सद्गुरु की व्याख्या में, देवी केवल एक कण नहीं हैं। वह उन तीन मूल शक्तियों का संगम हैं, जो सृष्टि के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। देवी का स्वरूप उस आकाश की तरह है, जो इस अस्तित्व की मूल शक्तियों को थामे हुए हैं। इन तीन शक्तियों का संगम ही देवी का जन्म है, जो जीवन और सृष्टि का आधार है।
सृष्टि की रचना:
सृष्टि का निर्माण ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों के माध्यम से हुआ है। ये तीनों देवता विभिन्न गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं:
1. ब्रह्मा: सृष्टि के निर्माता।
2. विष्णु: पालनहार।
3. महेश (शिव): संहारक।
जब सृष्टि में विनाशकारी शक्तियां बढ़ने लगीं, तब इन तीनों ने मिलकर एक दीर्घ श्वास ली और अपनी ऊर्जा का मिश्रण किया। इस प्रक्रिया के फलस्वरूप देवी का जन्म हुआ। यह कथा एक लोककथा की तरह है, जो भौतिक विज्ञान की जटिलताओं को सरलता से समझाने का प्रयास करती है। जहां ये तीनों देवता प्रतीक के रूप में है।
स्त्री गुण और संस्कृति
हमारी संस्कृति में स्त्री गुण को विशेष महत्व दिया गया है, लेकिन आधुनिक युग में यह गुण कहीं खो गया है। सद्गुरु जी बताते हैं कि जब पुरुष गुण की प्रधानता होती है, तब केवल भरण-पोषण का ध्यान रखा जाता है। यह आवश्यक है कि समाज में स्त्री गुण को भी स्थान मिले, ताकि सभ्यता का विकास हो सके।
स्त्री गुण का महत्व
स्त्री गुण केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है; यह एक ऊर्जा है जो जीवन के सभी पहलुओं में प्रकट होती है। जब स्त्री गुण प्रभाव में होता है, तभी समाज में प्रेम, संगीत और कला का विकास होता है। यह एक ऐसा गुण है, जो जीवन को समावेशिता के रूप में देखता है।
नवरात्रि: देवी की आराधना का समय
नवरात्रि का पर्व देवी की पूजा और उनके गुणों की पहचान का समय है। इस दौरान भक्तगण देवी के विभिन्न स्वरूपों की आराधना करते हैं। देवी की उपासना से न केवल आस्था की वृद्धि होती है, बल्कि आत्मिक शुद्धि और जागृति भी होती है।
उपासना विधि
1. पूजन की तैयारी: घर को स्वच्छ करना और देवी के प्रतीक का निर्माण करना।
2. भोजन: व्रति का पालन करना और विशेष रूप से शुद्ध आहार लेना।
3. जागरण: देवी की आराधना के समय जागरण करना, भक्ति गीत गाना और ध्यान करना।
देवी का संदेश
सद्गुरु जी का संदेश स्पष्ट है: समाज में स्त्री गुण का महत्व समझना आवश्यक है। नवरात्रि का यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हमें न केवल देवी की आराधना करनी चाहिए, बल्कि अपने अंदर के स्त्री गुण को पहचानने और बढ़ाने की भी आवश्यकता है।
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निष्कर्ष
नवरात्रि का पर्व देवी की आराधना का समय है, जो हमें जीवन के गहरे अर्थ और सृष्टि की रचना की समझ देता है। यह समय है अपने भीतर के स्त्री गुण को पहचानने और उसे सम्मानित करने का। जब हम देवी के गुणों को अपनाते हैं, तब हम अपने जीवन में परिवर्तन लाते हैं और समाज को नई दिशा देने का कार्य करते हैं।
इस नवरात्रि, आइए हम सभी मिलकर देवी की आराधना करें और अपने अंदर के स्त्री गुण को पहचानें। सद्गुरु जी के विचारों को अपनाते हुए हम एक बेहतर समाज की स्थापना की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।