अगस्त्य मुनि कौन थे? सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने बताए इनसे जुड़े 5 रहस्यमयी स्थान

अगस्त्य मुनि कौन थे? सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने बताए इनसे जुड़े 5 रहस्यमयी स्थान

अगस्त्य मुनि कौन थे? सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने बताए इनसे जुड़े 5 रहस्यमयी स्थान 

अगस्त्य मुनि कौन थे : सद्गुरु जग्गी वासुदेव बताते हैं साधना और योग के गहरे रहस्य सदियों से भारत की संस्कृति का अभिन्न अंग रहे हैं। इन रहस्यों को जन-जन तक पहुँचाने में प्राचीन ऋषियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्हीं में से एक महान ऋषि थे अगस्त्य मुनि। ‘ सद्गुरु ‘ के अनुसार, अगस्त्य मुनि न केवल योग और ध्यान के गहरे रहस्यों को समझते थे, बल्कि उन्होंने अपने ज्ञान से दक्षिण भारत को आध्यात्मिकता का एक महान केंद्र बनाया। इस लेख में, हम उन पाँच रहस्यमयी स्थानों के बारे में जानेंगे जो अगस्त्य मुनि से जुड़े हैं और उनके पीछे की कहानियाँ।

1. कान्ति सरोवर – यहाँ होई थी अगस्त्य मुनि को ज्ञान की प्राप्ति

सद्गुरु के अनुसार, केदारनाथ से लगभग छह से सात किलोमीटर दूर स्थित कांति सरोवर वह स्थान है जहाँ योग विज्ञान की पहली दीक्षा दी गई थी। इसे कृपा की झील भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर आदि योगी ने पहली बार अपने ज्ञान को लोगों के साथ साझा किया। यह वह स्थान था जहाँ सप्त ऋषियों को योग की प्रारंभिक साधनाएँ सिखाई गईं। सद्गुरु कहते हैं कि यह स्थान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ योग विज्ञान का बीज बोया गया था, जो आगे चलकर पूरे भारत में फैला।

2. बी आर हिल्स और डोडा पेड़ – 6000 साल पुराना साक्ष्य

बी आर हिल्स, जो कर्नाटक के जामराज नगर जिले में स्थित है, एक विशेष स्थान है जहाँ एक विशाल डोडा पेड़ खड़ा है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार, इस पेड़ को अगस्त्य मुनि ने 6000 साल पहले लगाया था। यह पेड़ अपनी आयु और विशालता से आज भी लोगों को चमत्कृत करता है। यह स्थान हमें यह सिखाता है कि कैसे अगस्त्य मुनि ने न केवल मानव जाति बल्कि प्रकृति के साथ भी अपनी साधना और ऊर्जा को साझा किया।

3. कावेरी नदी का मध्य बिंदु – लिंग की प्राण प्रतिष्ठा

कावेरी नदी के मध्य बिंदु पर अगस्त्य मुनि ने एक लिंग की प्राण प्रतिष्ठा की थी, जिसे आज भी “कावेरी की नाभि” के रूप में देखा जाता है। यह लिंग पारंपरिक मिश्रण और रेत से बना हुआ था, और आज भी शारीरिक और ऊर्जा के स्तर पर पूरी तरह से सुरक्षित है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार, यह स्थान अगस्त्य मुनि की साधना और उनके द्वारा प्रकृति में स्थापित ऊर्जा का प्रतीक है।

4. कैलाश पर्वत – अगस्त्य मुनि की अंतिम साधना

सद्गुरु बताते हैं कि अगस्त्य मुनि ने अपने जीवन के अंतिम समय में कैलाश पर्वत के दक्षिणी हिस्से में अपनी ऊर्जा का निवेश किया। उन्होंने अपना सूक्ष्म शरीर कैलाश में छोड़ दिया और स्वयं को शिव के साथ एकाकार किया। कैलाश को सद्गुरु एक विशाल आध्यात्मिक पुस्तकालय की तरह मानते हैं, जहाँ अगस्त्य मुनि और अन्य योगियों की ऊर्जा आज भी गूंजती है।

5. विन्ध्याचल पर्वत – क्रोध और समाधान

एक कथा है की अगस्त्य मुनि की दक्षिण यात्रा के दौरान विन्ध्याचल पर्वत से सामना हुआ। विन्ध्याचल ने हिमालय से अपनी तुलना करते हुए क्रोध प्रकट किया कि कैसे उसे हिमालय से छोटा माना गया। सद्गुरु जग्गी वासुदेव बताते हैं कि अगस्त्य मुनि ने विन्ध्याचल के इस क्रोध को शांति में बदल दिया। उन्होंने विन्ध्याचल से कहा कि वह झुके रहें और जब वह लौटेंगे, तब उनकी समस्या का समाधान करेंगे। लेकिन अगस्त्य मुनि ने कभी वापसी नहीं की, और इस प्रकार विन्ध्याचल हमेशा झुके रहे। यह घटना हमें यह सिखाती है कि कैसे अगस्त्य मुनि ने पर्वतों और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित किया।

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अगस्त्य मुनि का योगदान और उनकी धरोहर

अगस्त्य मुनि न केवल एक महान योगी थे, बल्कि उन्होंने दक्षिण भारत में योग और अध्यात्म का प्रसार किया। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के अनुसार, उन्होंने 700 से अधिक आश्रमों की स्थापना की, जहाँ लोगों को साधना और योग सिखाया गया। उनकी ऊर्जा और ज्ञान की गहराई आज भी दक्षिण भारतीय अध्यात्म का प्रमुख स्त्रोत है। सद्गुरु मानते हैं कि अगस्त्य मुनि का योगदान महामानवीय था, और उन्होंने अध्यात्म को हर इंसान की जीवनशैली का हिस्सा बना दिया।

सद्गुरु के अनुसार, अगस्त्य मुनि का जीवन और उनकी साधना अद्वितीय है। उन्होंने न केवल भौतिक संसार से परे जाकर ध्यान और योग के रहस्यों को समझा, बल्कि उन्हें जन-जन तक पहुँचाया। उनके द्वारा स्थापित स्थान आज भी आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र बने हुए हैं। उनके योगदान के कारण दक्षिण भारत एक आध्यात्मिक धरोहर का केंद्र बना।

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