सीता हरण नहीं यह था रावण का “सबसे बड़ा पाप” | Ram Katha

Ram Katha

सीता हरण नहीं यह था रावण का सबसे बड़ा पाप | Ram Katha 

आखिर क्या था रावण (Ravana) का वह सबसे बड़ा पाप जिसकी वजह से ब्राह्मण और सबसे बड़ा शिव भक्त होने के बाद भी भगवान राम ( Lord Shree Ram) ने रावण का वध कर दिया| क्या वह पाप रावण द्वारा मां सीता का हरण करना था या वृद्ध जटायु को मारना या देवताओं को बंदी बनाना या फिर दूत बन कर आए हनुमानजी के साथ दुर्व्यवहार करना |
जवाब है, इनमें से कुछ भी नहीं | जो असली पाप रावण ने किया वो इन समस्त पापों से थोड़ा भिन्न है जो आपको इस कथा में बताया जा रहा है|

रावण वध के बाद क्या हुआ- 

भगवान राम ( Lord Shree Ram) द्वारा रावण का वध किया जा चुका था| चारों तरफ जय श्री राम के नारे गूंज रहे थे| यह दृश्य कैलाश पर विराजित मां पार्वती और भगवान शिव देख रहे थे| यह सब देख मां पार्वती के मन में शंका उठी और उन्होंने भगवान शिव से यह सवाल पूछा   “प्रभु, रावण जो आपका सबसे बड़ा भक्त है, जिसने आपको प्रसन्न करने के लिए 10 बार अपना शीश दान कर दिया, एक इतना बड़ा भक्त जिसने आपको साथ ले जाने के लिए पूरा कैलाश पर्वत उठा लिया, एक इतना बड़ा भक्त जिसने आपको प्रसन्न करने के लिए शिव तांडव स्त्रोत की रचना कर दी| रावण के इतने सारे अच्छे कर्मों के बाद भी आपने अपने भक्त की सहायता क्यों नहीं की| ऐसा कौनसा पाप था जिसकी वजह से उसे सबसे बड़ा शिव भक्त होने के बाद भी इतनी बड़ी सजा मिली”| 

भगवान शिव मुस्कुराए और कहा तुमने सच कहा प्रिय, रावण से बड़ा मेरा कोई भक्त नहीं था, लेकिन यह भी सच है की इस के उपरांत उसने अपने जीवन में कई पाप कर्म किए|

भक्ति से मिली शक्ति को उसने अच्छे कार्यों में लगाने के स्थान पर उसने इन शक्तियों का अहंकार कर लिया और इसी अहंकार ने उससे कई पाप कर्म करवाए|
अक्सर व्यक्ति सोचता है की उसके द्वारा किए अच्छे कर्म, बुरे कर्मों का नाश कर देते हैं, परंतु यह आधा सत्य है|

हमारे द्वारा किए गए उत्तम कार्य बुरे कर्मों को काट तो देते हैं लेकिन ऐसा तब ही संभव है जब हमें हमारे द्वारा किए गए बुरे कर्मों को लेकर प्रायश्चित हो|
इसी प्रायश्चित की कमी रावण में सदैव से थी जिसकी वजह से उसके बड़े बड़े अच्छे कर्म भी बुरे कर्मों को ना काट सके|

परंतु रावण एक ज्ञानी व्यक्ति था उसे भलीभांति ज्ञान था की क्या करना पुण्य है और क्या करना पाप है| इसके पश्चात भी उसमें इन सब कर्मों को किया| अनजाने में किए गए पाप कर्म के प्रायश्चित स्वत ही होने लगता है पंरतु ज्ञान होने की बाद भी अगर कोई पाप कर्म करता है तो उसका अहंकार उसको प्रायश्चित नहीं करने देता| उसकी अंतरात्मा चाहे कितना भी पुकारे कि यह पाप कर्म है परंतु उसका अहंकार उसे समझाता रहता है की, नहीं जो तूने किया वो ही सबसे उचित था| अन्य सभी गलत हैं परंतु तू सही है| यही अहंकार व्यक्ति को अंधकार की  ओर ले जाता है और उसके बाद जो होता है वह तुम्हारे सामने है|

जब कोई व्यक्ति एक पाप कर्म कर देता है तो उसका अहंकार उसके पाप को सही साबित करवाने के लिए और भी कई पाप कर्म करवा देता है| पाप कर्म से अर्थ है ऐसे कर्म जो मानवता की सीमा को तोड़ कर किए गए हों| इसलिए एक बार जब मानवता की कोई सीमा टूट जाती है तो फिर उसका उस काल में दुबारा जुड़ना असंभव हो जाता है| इसके बाद आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए इस तरह के पाप कर्म सामान्य होने लगते हैं|

रावण ने अपने जीवन काल में कई पाप कर्म किए जिनमें मां सीता का हरण करना सबसे बड़ा पाप था परंतु इससे भी बड़ा पाप यह था एक साधु, एक सन्यासी का रूप लेकर इस पाप को करना | उसके द्वारा किया यह पाप कर्म भविष्य में कई पापों को जन्म देगा|
साधु और संन्यासियों का भोजन, दान में आई भिक्षा पर निर्भर होता है| रावण के इस पाप के बाद, भविष्य में साधु संतों पर लोगो का विश्वास कम होगा जिससे संन्यासियों का जीवन यापन करना कठिन हो जाएगा| धर्म का पाठ पढ़ाने वाले, ज्ञान का मार्ग दिखाने वाले, साधु और संन्यासियों में कमी आयेगी| चारों तरफ अधर्म की वृद्धि होगी|

रावण के इस कृत्य को देख भविष्य में कई अन्य दुराचारी भी साधु और संतो का भेष बना कर पाप कर्म करेंगे, भोली भाली जनता के विश्वाश का लाभ उठाएंगे | इसी वजह से रावण का वध करना अति आवशयक हो जाता है|जिससे लोगो को स्मरण रहें की इस तरह के पाप कर्म का फल क्या होता है| यह कह भगवान शिव ध्यान में लीन हो गए|

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