Ramkrishna Paramhans Story : एक बार एक अमीर सेठ खूब सारे पैसे लेकर स्वामी विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस (Ramkrishna Paramhans) जी के पास आता है और वह सारे के सारे पैसे रामकृष्ण जी के चरणों में बिखेर देता है | जिसे देख रामकृष्ण (Ramkrishna Paramhans) जी कहते हैं बेटा इस धन की यहां कोई आवश्यकता नहीं है इसलिए तुम यह सारा धन यहां से ले जा सकते हो, यह देख सेठ खुश हो जाता है और कहता है वहा महाराज जी वाह मैंने तो आपके सिर्फ किस्से ही सुने थे आज देख भी लिया आप कितने बड़े त्यागे हैं |
आज के समय में जब लोग लोभ और लालच में डूबे हुए हैं ऐसे में आप जैसे त्यागी से मुलाकात हो जाना वाकई मेरे लिए एक बहुत ही बड़े सौभाग्य की बात हैं और आप त्यागी ही नहीं मेरी नजरों में महात्यागी हो| ये सारी बात सुन कर संत रामकृष्ण परमहंसजी (Ramkrishna Paramhans) मुस्कुराते हैं और कहते हैं, बेटा किसने कहा में त्यागी हूं , मैं तो बहुत बड़ा लोभी, मुझ जैसा लोभी शायद ही तुम्हें मिल सके |
मेरी नजर में असली त्यागी तुम हो और सिर्फ तुम्हें नहीं मुझे तो ज्यादातर लोग त्यागी ही दिखाई पड़ते हैं | आज इस उम्र में भी लगभग ना के बराबर लोग मुझे मिलें हैं जो लोभी हों |
यह सुन उस सेठ का दिमाग चकराने लगता है और वो सोचने लगता है, मैं और त्यागी, और यह पुराने और कुछ कपड़ों में बैठा संत जिसने इतना सारा धन ठुकरा दिया वो लोभी, सेठ को यह बात समझ ना आई और अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए वो संत से पूछता है महाराज ये आप कैसी बात कर रहे हैं मेरी यह अल्प बुद्धि इसे समझ नहीं पा रही, कृपा करके मुझे समझाए कि आखिर कैसे आप अपने आप को लोभी और मुझे त्यागी कह रहे हैं |
यह सुन रामकृष्ण परमहंस जी कहते हैं, उस एक परमात्मा जिसे सब अलग अलग नामों से पुकारते हैं जिसने यह सारा संसार रचा हैं उसके आगे इन कुछ कागज के टुकड़ों का क्या मूल्य है जरा बताओ,
जबाव है, कुछ भी नहीं, इसलिए मैं उस परमात्मा को ही भोगना अपना परम आनंद समझता हूं और में उसी को बटोरने में लगा हूं| अब तुम ही बताओ कौन ज्यादा बड़ा भोगी है, मैं या तुम |
तुम उस सर्वशक्तिमान परमात्मा को त्याग कर उसकी रची माया में ध्यान लगाए बैठे हो और मैं इस माया को त्याग कर इसके रचियता में ध्यान लगाए बैठा हूं, तो अब तुम खुद ही मुझे बताओ की कौन है महत्यागी मैं या तुम, किसने ज्यादा बड़ा त्याग किया हुआ है, मैंने या तुमने | बताओ जरा कौन है महत्यागी जो परमात्मा का त्याग करे बैठा है या वो जो इस तुच्छ माया का त्याग करे बैठा है…तुम ही बताओ |
मेरी नजर में महात्यागी तो तुम ही हो, जो हीरे को छोड़ कर इन कंकड़ पत्थर को बीन रहे हो,
जो बेकार है उसे संभाल रहे हो और जो सार्थक है उसे गवां रहे हो | यह सब सुन कर सेठ कुछ नहीं बोला, उसने अपना सारा धन उठाया और अपने घर के तरफ चल दिया यह सोचते हुए की उसने अपने पूरे जीवन में क्या गवाया और क्या पाया | उसका जीवन अभी तक घाटे में रहा या फिर फायदे में|
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आपको भी यही सलाह है आप सभी लोभी बने ना की त्यागी, लेकिन लोभ भी उसका करें जो सर्वोत्तम है जिसके आगे फिर कुछ बचता नहीं लोभ करने को, उसके लोभी बने |