प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन : घर के मंदिर में कितनी मूर्ति रखनी चाहिए, सिर्फ एक या अनेक?
हमारे भारतीय घरों में पूजा स्थल (मंदिर) की स्थापना एक धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है। प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि यह न केवल आस्था और विश्वास का प्रतीक है, बल्कि परिवार में शांति, समृद्धि और मानसिक संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है। घर के मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ रखना एक महत्वपूर्ण कार्य होता है, लेकिन क्या सभी देवी-देवताओं को एक ही स्थान पर रखा जा सकता है? या इसे शास्त्रों के अनुसार कैसे स्थापित करना चाहिए? इन सवालों का उत्तर प्रेमानंद जी महाराज के दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करेंगे।
प्रेमानंद जी महाराज का दृष्टिकोण
प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि घर के मंदिर में देवी-देवताओं की स्थापना शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार ही करनी चाहिए। वे कहते हैं कि पूजा स्थल का स्वरूप “पूजा ग्रह” होना चाहिए, न कि एक बड़ा मंदिर। इसका अर्थ यह है कि घर में जो पूजा की जाती है, वह श्रद्धा और आस्था का प्रतीक तो होनी चाहिए, लेकिन इसे शास्त्रीय विधि और मर्यादाओं के अनुसार किया जाना चाहिए।
यदि हम घर के मंदिर में किसी विशेष देवता की पूजा करते हैं, तो हम उसी देवता के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा के लिए शास्त्रों के नियमों का पालन करते हुए ही पूजा कर सकते हैं।
मूर्ति एक रखें या अनेक
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, घर के मंदिर में पूजा करते समय यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम शास्त्रों के अनुसार ही मूर्तियों की स्थापना करें। अगर कोई व्यक्ति भगवान शिव की पूजा करता है, तो वह घर में सिर्फ भगवान शिव की मूर्ति स्थापित कर सकता है, लेकिन इसके साथ ही पंचदेवता (गणेश, कार्तिकेय, नंदी और शिव) की पूजा का पालन करना होगा। यही नियम श्री कृष्ण के लिए भी लागू होता है—जब हम श्री कृष्ण की पूजा करते हैं, तो राधा कृष्ण की पूजा भी उसी के साथ होनी चाहिए।
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, घर के मंदिर में सभी देवी-देवताओं की मूर्तियाँ एक साथ स्थापित करना संभव है, लेकिन इस स्थिति में हर देवी-देवता के लिए अलग स्थान और पूजा विधि निर्धारित की जानी चाहिए। किसी भी देवता का पूजन किसी अन्य देवता के पूजन से मिलाकर नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक देवता का पूजन अलग शास्त्र और विधि के अनुसार होता है। इस प्रकार, मंदिर का निर्माण करते समय यह आवश्यक होता है कि हम शास्त्रों के अनुसार ही पूजा विधि का पालन करें और उसी अनुसार पूजा स्थल को सजाएं।
पूजा के पात्र और भोग की विशेषताएँ
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, घर के मंदिर में पूजा करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि हर देवी-देवता के लिए अलग-अलग भोग और पूजा पात्र का इस्तेमाल किया जाए। प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, पूजा में जो भोग दिया जाता है, वह हर देवता के लिए अलग होना चाहिए। जैसे भगवान शिव के लिए एक अलग पात्र में भोग दिया जाए और भगवान कृष्ण के लिए भोग की एक अलग विधि हो।
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, घर के मंदिर में भोग लगाने के लिए प्रत्येक देवता का पात्र अलग होना चाहिए, ताकि अपवित्रता से बचा जा सके और भोग सही तरीके से पूजा में समर्पित किया जा सके। यही शास्त्रों की मर्यादा है। इसके अलावा, प्रेमानंद जी महाराज ने यह भी बताया कि गृहस्थों के लिए यह एक सुविधा हो सकती है कि वे हर देवता के लिए एक अलग पात्र का इस्तेमाल करें। इससे पूजा के दौरान हर देवता के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त होती है।
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निष्कर्ष
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, घर के मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित करना एक पवित्र कार्य है, लेकिन यह शास्त्रों के अनुसार और मर्यादाओं के पालन के साथ ही किया जाना चाहिए। प्रेमानंद जी महाराज का यह मानना है कि पूजा स्थल को न केवल श्रद्धा से, बल्कि शास्त्रीय विधि से सजाया जाना चाहिए। यह ध्यान रखना जरूरी है कि पूजा स्थल में एक ही देवी-देवता की पूजा की जाए या फिर शास्त्रों के अनुसार पंचदेवता की पूजा की जाए।
घर के मंदिर में एक या अधिक देवी-देवताओं की पूजा की जा सकती है, लेकिन इसके लिए शास्त्रों की मर्यादाओं का पालन करना जरूरी है। यह पूजा के विधियों, पात्रों और भोग की सही तरीके से व्यवस्था करने से ही संभव है कि हमारे घर में शांति, समृद्धि और आस्था का वास हो।
इस प्रकार, जब आप घर में मंदिर बनवाने की योजना बनाते हैं, तो आपको यह समझना चाहिए कि यह कार्य न केवल आस्था और प्रेम का विषय है, बल्कि यह शास्त्रों और परंपराओं का पालन करने का भी एक माध्यम है, जिससे आपके घर में धार्मिक समृद्धि और शांति बनी रहे।