गीत में वर्णित कर्म योग क्या है? प्रेमानंद जी महाराज का जवाब | Karma Yoga in Bhagavad Gita

गीत में वर्णित कर्म योग क्या है? प्रेमानंद जी महाराज का जवाब | Karma Yoga in Bhagavad Gita

गीत में वर्णित कर्म योग क्या है? प्रेमानंद जी महाराज का जवाब | Karma Yoga in Bhagavad Gita

Karma Yoga in Bhagavad Gita : प्रेमानंद जी महाराज द्वारा कर्म योग पर दिए गए इस प्रवचन में श्रीमद्भगवद्गीता के आधार पर कर्म योग का महत्व समझाया गया है। कर्म योग का अर्थ है बिना फल की अपेक्षा के अपने कर्तव्यों को निभाना। यह विचार गीता के प्रमुख उपदेशों में से एक है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्धभूमि में समझाया था। प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि हर व्यक्ति कर्म करता है, लेकिन उसकी सहज प्रवृत्ति होती है कि वह अपने कर्मों के परिणाम की अपेक्षा करे। लेकिन यदि वह समान भाव से कर्म करे, तो धीरे-धीरे कर्म योग की ओर बढ़ सकता है।

कर्म योग का वास्तविक अर्थ

गीता में कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपने सभी कर्म भगवान को समर्पित करते हुए निष्काम भाव से करने चाहिए। फल की इच्छा रखना मानवीय स्वभाव है, लेकिन यदि हम अपने मन में समानता का भाव रखें, यानी सुख-दुख, लाभ-हानि, विजय-पराजय में समान रहें, तो निष्काम भाव जागृत हो सकता है। कर्म करने में हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन उसके परिणाम हमारे वश में नहीं होते। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था, “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” अर्थात हमें कर्म करने का अधिकार है, लेकिन उसके फल पर हमारा कोई अधिकार नहीं है।

Karma Yoga in Bhagavad Gita

महाराज जी के अनुसार, हम अक्सर उन्नति, विजय, लाभ और सुख की आशा में कर्म करते हैं। लेकिन यदि हमें दुख या हानि मिलती है, तो उसे भगवान का विधान मानकर संतोष धारण करना चाहिए। इस प्रकार का अभ्यास धीरे-धीरे हमें कर्म योग की ऊंचाई पर ले जाता है। कर्म योग की पूर्णता तब होती है, जब हम यह समझ लेते हैं कि हमारे कर्म तीन गुणों से प्रेरित होकर होते हैं। यह ज्ञान हमें यह सिखाता है कि हम केवल साक्षी हैं, और कर्मों का परिणाम भगवान की इच्छा पर निर्भर होता है।

कर्म को भगवान को समर्पित करना

प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि चाहे हम सकाम कर्म कर रहे हों या निष्काम, हर कर्म को भगवान को समर्पित करने से हमें शांति और संतोष की प्राप्ति होती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, “ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्परा:” अर्थात अपने सभी कर्मों को भगवान के चरणों में समर्पित करो। चाहे व्यापार हो, नौकरी हो, खेती हो, खाना बनाना हो, हर एक कर्म भगवान को अर्पित करने से वह पवित्र हो जाता है। इस प्रकार कर्म योग से जो बंधन मुक्त कराने वाला ज्ञान प्राप्त होता है, उसे भगवान की कृपा से बहुत जल्द प्राप्त किया जा सकता है।

महाराज जी कहते हैं कि “सकाम” कर्म हमारे स्वभाव में होता है, लेकिन यदि हम हर कार्य को भगवान को समर्पित कर दें, तो धीरे-धीरे हम कर्म योग की ओर बढ़ते हैं। जब कोई व्यक्ति हर कर्म को भगवान को अर्पित करके करता है, तो उसमें समानता का भाव आ जाता है। फिर उसे लाभ या हानि, सुख या दुख में कोई विशेष अंतर नहीं लगता, क्योंकि वह मानता है कि यह सब भगवान की इच्छा से हो रहा है।

Karma Yoga in Bhagavad Gita

कर्म योग से भगवत प्राप्ति

महाराज जी बताते हैं कि कर्म योग करने से हमें भगवत प्राप्ति हो सकती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि कर्म योग से मनुष्य अपने कर्मों के बंधन से मुक्त हो सकता है और भगवत प्राप्ति की ओर बढ़ सकता है। इसके लिए हमें हर कर्म में भगवान को देखने की आवश्यकता है। महाराज जी कहते हैं, अपने सभी कर्म भगवान को समर्पित कर दो, और नाम जप करते रहो, तो कर्म योग से आपकी सद्भावना और सद्गुण जागृत हो जाएंगे।”

महाराज जी समझाते हैं कि जीवन में सत्संग और संत समागम का महत्व बहुत बड़ा है। सत्संग से मनुष्य के जीवन में परिवर्तन आता है, और वह गलत कामों से दूर होकर परमात्मा की ओर अग्रसर होता है। सत्संग का लाभ वह होता है जो बड़े-बड़े व्रत और यज्ञों से भी प्राप्त नहीं होता। भगवान की चर्चा और संत समागम से मनुष्य की वासनाओं का नाश होता है, और वह भगवत प्राप्ति के मार्ग पर चलता है।

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कर्म योग के लाभ

Karma Yoga in Bhagavad Gita : महाराज जी कहते हैं कि कर्म योग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह व्यक्ति को मोह और माया से मुक्त करता है। जब हम कर्म को भगवान को समर्पित कर देते हैं, तो हमारा मन शांत हो जाता है, और हमें किसी भी प्रकार की चिंता या दुख नहीं होता। हमें समझना चाहिए कि जो कुछ भी होता है, वह भगवान की इच्छा से होता है, और हमें केवल अपने कर्म करते रहना चाहिए। इसी निष्काम भाव से किए गए कर्म से हमें भगवत प्राप्ति होती है, और यह जीवन के सभी दुखों से मुक्ति का मार्ग बनता है।

Karma Yoga in Bhagavad Gita

कर्म योग का अभ्यास करने से व्यक्ति धीरे-धीरे अपने अहंकार और इच्छाओं से मुक्त होता है। इसके लिए हमें सत्संग, नाम जप, और भगवान के प्रति समर्पण का अभ्यास करना चाहिए। कर्म योग के बारे में और अधिक जानकारी के लिए नीचे दी गई पुस्तकें अवश्य पढ़ें।