हिंदू धर्म में अंतर्जातीय विवाह (Intercaste Marriage in Hinduism) करना कितना सही कितना गलत | जानें क्या कहते हैं धर्म ग्रंथ और इतिहास
आज हम एक ऐसे विषय पर चर्चा करेंगे जो आज के समय में बेहद महत्वपूर्ण है – हिन्दू धर्म में अंतर्जातीय विवाह (Intercaste Marriage in Hinduism) और इसके प्रति समाज की मानसिकता। लेकिन इस चर्चा में उतरने से पहले, आइए एक छोटे से प्रयोग के बारे में जानते हैं जो समाज की मानसिकता को समझने में मदद करेगा।
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Toggleवैज्ञानिक प्रयोग और सामाजिक मानसिकता
एक बार वैज्ञानिकों ने पांच बंदरों को एक बड़े पिंजरे में रखा, जिसके बीच में एक सीढ़ी पर केले रखे गए थे। जब भी कोई बंदर केले खाने के लिए ऊपर चढ़ता, बाकी बंदरों पर एकदम ठंडा पानी छिड़क कर सजा दी जाती थी। यह प्रक्रिया कई बार दोहराई गई, जिससे बंदरों ने ऊपर चढ़ना बंद कर दिया। यदि कोई बंदर चढ़ने की कोशिश करता, तो बाकी बंदर सजा से बचने के लिए उसे नीचे उतार कर पीट देते।
धीरे-धीरे सभी बंदरों को एक-एक करके नए बंदरों से बदला गया, और सजा की प्रक्रिया बंद हो गई। फिर भी, नए बंदर पुराने बंदर को देख कर बिना कारण के ऊपर चढ़ने वाले बंदर को पीटते रहे, क्योंकि यह व्यवहार उनके लिए “सामान्य” हो गया था, भले ही उन्हें सजा के बारे में पता न हो और न ही उन्हें कभी सजा दी गई थी।
हमारे समाज की वर्तमान स्थिति
आज हमारे हिन्दू समाज की मानसिकता भी कुछ ऐसी ही हो गई है। हम कई प्रथाओं का पालन करते हैं बिना यह जाने कि उन्हें प्रारंभ करने का मूल कारण क्या है। जैसे कि ब्राह्मण की शादी ब्राह्मण से और क्षत्रिय की शादी क्षत्रिय से होनी चाहिए, लेकिन क्यों? यह सवाल शायद ही कोई पूछता है। यह प्रथाएं कब और क्यों बनीं, और क्या वे आज के समय में प्रासंगिक हैं? आइए जानते हैं।
जाति व्यवस्था का मूल स्वरूप – वर्ण व्यवस्था
हिन्दू धर्मग्रंथों में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख मिलता है, लेकिन इसका मूल अर्थ आज की जाति व्यवस्था (Intercaste Marriage in Hinduism) से बिल्कुल अलग है। भगवद्गीता के चौथे अध्याय, श्लोक 13 में कहा गया है कि वर्ण व्यक्ति के गुण और कर्म पर आधारित होता है, न कि जन्म पर। अर्थात, कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र बन सकता है।
चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश: | तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् || 4.13||
मनु स्मृति के अध्याय 10, श्लोक 65 कहता है की कोई भी व्यक्ति अपने कर्म के आधार पर एक वर्ण से दूसरे वर्ण में जा सकता है।
शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्। क्षत्रियाज जातमेवं तु विद्याद् वैश्यात् तथैव च ॥ 10.65 ॥
इतिहास के उदाहरण
Intercaste Marriage in Hinduism : ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो कई उदाहरण मिलते हैं जहाँ लोगों ने अपने कर्मों के आधार पर अपना वर्ण बदला है। रावण, जो एक ऋषि का पुत्र था, अपने कर्मों के कारण राक्षस कहलाया। विश्वामित्र पहले क्षत्रिय थे, लेकिन तपस्या के बल पर ब्राह्मण बने। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई एक ब्राह्मण की बेटी थीं, लेकिन अपने शौर्य और पराक्रम के कारण क्षत्रिय का दर्जा प्राप्त किया।
प्राचीन समाज में विवाह की प्रथा
अगर हम प्राचीन भारतीय समाज की बात करें, तो शादी का आधार (Intercaste Marriage in Hinduism) जन्म आधारित जाति नहीं, कर्म और गुण आधारित वर्ण हुआ करता था। किसका क्या वर्ण है यह गुरुजनों द्वारा गुरुकुल में गतिविधियां और व्यवहार देख कर निर्धारित किया जाता था। उस समय विवाह में सबसे महत्वपूर्ण बात यह मानी जाती थी कि वर और वधू का स्वभाव और रुचियां मेल खाती हों। विवाह का उद्देश्य दो समान विचारधारा वाले लोगों का मिलन था, ताकि वे एक-दूसरे के सुख-दुख को समझ सकें और जीवन में साथ दे सकें। विवाह के समय वर्ण इसलिए देखा जाता था क्योंकि वर्ण व्यक्ति के गुण और कर्म को बताता था और इसका जन्म से कोई संबंध नहीं था। इसलिए उस समय वर्ण मिलान होना प्रासंगिक था।
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वर्तमान समय में अन्तर्जातीय विवाह की आवश्यकता
आज के समय में, जब दुनिया तेजी से बदल रही है और लोग विभिन्न क्षेत्रों में आगे बढ़ रहे हैं, जाति के आधार पर विवाह का बंधन लोगों की खुशियों में बाधा बन सकता है। क्योंकि यह सिर्फ जन्म को दर्शाती है ना की कर्म या गुण को। यदि दो लोग एक-दूसरे को समझते हैं, एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और एक-दूसरे के सपनों का समर्थन करते हैं, तो उनकी जाति क्या है, इससे क्या फर्क पड़ता है? आप स्वयं सोचिए…
समाज में बदलाव की आवश्यकता
हमारे समाज को अब उस पुरानी मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है, जहाँ जाति के नाम पर लोगों को बांटा जाता है। ऑनर किलिंग जैसी घटनाएँ इस बात का प्रमाण हैं कि हमारी सोच अभी भी कितनी संकीर्ण है। हमें यह समझना होगा कि प्रेम और सहमति पर आधारित विवाह ही सफल होते हैं, न कि समाज के थोपे गए नियमों पर। एक सफल विवाह का अर्थ मात्र जीवन भर साथ रहना नहीं बल्कि जीवन भर सुखपूर्वक साथ रहने से है।
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निष्कर्ष
आइए हम सब मिलकर अपनी सोच को बदलें और एक ऐसे समाज का निर्माण करें जहाँ व्यक्ति की पहचान उसके कर्म और गुणों से हो, न कि उसकी जाति से। अन्तर्जातीय विवाह को स्वीकार कर हम न केवल समाज को मजबूत बनाएंगे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और समावेशी वातावरण भी प्रदान करेंगे।
अन्तर्जातीय विवाह (Intercaste Marriage in Hinduism) ही वह चीज है जो हिन्दू समाज के बीच जाति का भेद खत्म करके समाज में एकता कायम कर सकती है। अगर आप यहाँ बताई गई बातों से सहमत है तो इस ब्लॉग को अन्य लोगों तक साझा करके जागरूकता फैलाने में सहायता प्रदान करें।
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