सद्गुरु ने बताया भगवान शिव की भक्ति करने का सही तरीका
भगवान शिव की भक्ति : सद्गुरु के अनुसार, भगवान शिव एक रहस्यमय ऊर्जा का प्रतीक हैं, जो सृष्टि को चलायमान रखती है। यह ऊर्जा हर जीव के भीतर है और हमें जीवन जीने की शक्ति देती है। वैज्ञानिक आज भी इस अज्ञात शक्ति का नाम नहीं खोज पाए हैं, परंतु प्राचीन ऋषि और संत इसे “शिव” कहते आए हैं। यह न केवल जीवित प्राणियों में कार्य करती है, बल्कि निर्जीव वस्तुओं को भी चलायमान बनाए रखती है।
भगवान शिव की यह शक्ति हमारी सांसों, हृदय की धड़कनों, और शारीरिक गतिविधियों में प्रकट होती है। इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सद्गुरु कहते हैं कि शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि वो ऊर्जा हैं जो सबकुछ संचालित करती है। भगवान शिव की पूजा का यही अर्थ है कि हम उस ऊर्जा के साथ जुड़ें और उसकी महत्ता को समझें।
महाशिवरात्रि: चेतना का पर्व
सद्गुरु के अनुसार, महाशिवरात्रि केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि चेतना को जागृत करने का अवसर है। यह रात ध्यान और साधना के लिए सबसे उपयुक्त होती है, जब ग्रहों की स्थिति से ऊर्जा का प्रवाह हमारे भीतर तेजी से होता है। इस दिन साधना करके हम अपनी प्राण ऊर्जा को जागृत कर सकते हैं और शिव तत्व से जुड़ सकते हैं।
महाशिवरात्रि को लेकर कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जैसे इस दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया था। दूसरी कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर संसार की रक्षा की थी। यह रात शिव की शक्ति और त्याग का प्रतीक है, जो हमें आत्मचिंतन और ध्यान की ओर प्रेरित करती है।
उपवास का महत्व
सद्गुरु बताते हैं कि महाशिवरात्रि पर उपवास करने से शरीर की शुद्धि होती है। उपवास न केवल शारीरिक शुद्धि का साधन है, बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करता है। उपवास के दौरान जब शरीर हल्का होता है, तब मन ध्यान की गहराई में उतरने के लिए अधिक सक्षम हो जाता है। यह दिन साधना के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, इसलिए इस दिन विशेष रूप से उपवास करने की सलाह दी जाती है।
ध्यान: ऊर्जा को जागृत करने का साधन
महाशिवरात्रि की रात को जागरण और ध्यान का विशेष महत्व है। सद्गुरु कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति प्रतिदिन ध्यान नहीं कर पाता, तो कम से कम महाशिवरात्रि की रात को अवश्य ध्यान करना चाहिए। यह रात ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करने और उसे जागृत करने का एक अद्वितीय समय होता है। ध्यान के माध्यम से हम अपने भीतर की ऊर्जा को शिव तत्व से जोड़ सकते हैं, जिससे जीवन में शांति और सामंजस्य आता है।
ओम नमः शिवाय मंत्र का जप
महाशिवरात्रि के दिन “ओम नमः शिवाय” मंत्र का उच्चारण अत्यंत प्रभावकारी माना जाता है। सद्गुरु के अनुसार, इस मंत्र का जप ऊर्जा को उच्चतर स्तर पर ले जाता है। “ओम” ध्वनि ब्रह्मांड की ध्वनि है, जो प्रेम और शांति का प्रतीक है। “नमः शिवाय” में पांच अक्षर होते हैं, जो पाँच तत्वों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – का प्रतिनिधित्व करते हैं।
जब हम इस मंत्र का जप करते हैं, तब ब्रह्मांड में मौजूद इन तत्वों में संतुलन पैदा होता है, जो हमारे जीवन में शांति और सामंजस्य लाता है। यह संतुलन हमें परमानंद की ओर ले जाता है, जो शिव का साक्षात्कार है।
शिवलिंग पर बेलपत्र क्यों चढ़ाते हैं?
सद्गुरु के अनुसार, शिवलिंग शिव की निराकार ऊर्जा का प्रतीक है। शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पण करने का धार्मिक महत्व है। बेलपत्र त्रिगुणों का प्रतीक है – तमस, जो जड़ता का प्रतीक है; रजस, जो गतिविधियों का प्रतीक है; और सत्व, जो सकारात्मकता, रचनात्मकता और शांति का प्रतीक है।
जब हम शिवलिंग पर बेलपत्र अर्पण करते हैं, तो हम इन तीनों गुणों को शिव तत्व को समर्पित करते हैं। इसका अर्थ है कि हम अपने भीतर की नकारात्मकता, गतिविधियों की अशांति और सृजनात्मकता को शिव को अर्पित कर देते हैं, जिससे हमें शांति और स्वतंत्रता प्राप्त होती है। यह उपासना हमें मानसिक शांति और आंतरिक शुद्धि की ओर ले जाती है।
शिव के प्रति समर्पण का अर्थ
सद्गुरु कहते हैं कि भगवान शिव की भक्ति केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है। यह उस अज्ञात ऊर्जा के प्रति समर्पण है, जो हर चीज को चलायमान रखती है। जब हम शिव की उपासना करते हैं, तब हम उस स्रोत के करीब पहुंचते हैं, जो हमें जीवन में शांति, आनंद और संतुलन प्रदान करता है।
शिवरात्रि पर ध्यान, उपवास, और मंत्रोच्चारण के माध्यम से हम इस ऊर्जा को जागृत कर सकते हैं और शिव तत्व से जुड़ सकते हैं। सद्गुरु के अनुसार, शिव की साधना हमें जीवन की उच्चतम स्थिति तक ले जा सकती है, जहाँ हम आत्मज्ञान और मुक्ति का अनुभव कर सकते हैं।bb