ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए? भारत के महान संत रमण महर्षि का जवाब | What to Think During Meditation
ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए : ध्यान एक ऐसा अभ्यास है जो व्यक्ति को उसके आंतरिक अस्तित्व से जोड़ता है। इसे गहराई से करने पर हम अपने वास्तविक स्वरूप के करीब पहुँच सकते हैं। हालांकि, ध्यान के दौरान विचारों की एक श्रेणी अक्सर हमें भटकाने का काम करती है। जब भी हम ध्यान करते हैं, विचारों का आना स्वाभाविक है, और यह हमें ध्यान से दूर ले जाता है। ऐसी स्थिति में रमण महर्षि का मार्गदर्शन और सद्गुरु की ईशा क्रिया का उदाहरण हमें ध्यान के पथ पर वापस लाने में मदद कर सकता है।
विचारों से भटकने पर वापसी
ध्यान के दौरान यदि आप महसूस करें कि आप अपने मूल विचार से भटक गए हैं, तो रमण महर्षि के अनुसार, धैर्य के साथ अपने मूल प्रश्न पर लौट आना चाहिए। जब आप अपने आप को विचारों में उलझा हुआ पाते हैं, तो बिना किसी तनाव के धीरे-धीरे अपनी चेतना को फिर से “मैं कौन हूँ?” पर केंद्रित करें। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, और बार-बार इस भटकाव से वापस लौटने का अभ्यास ही ध्यान को गहराई प्रदान करता है।
ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए?
ईशा क्रिया की तरह प्रारंभ
ध्यान की शुरुआत आप सद्गुरु की ईशा क्रिया की तरह कर सकते हैं। यह क्रिया आपको ध्यान के गहरे स्तर तक पहुँचने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करती है। इसके अनुसार, जब आप साँस लेते हैं, तो अपने भीतर यह विचार लाएँ, “मैं यह शरीर नहीं हूँ” और जब आप साँस छोड़ते हैं, तो यह सोचें, “मैं यह मन भी नहीं हूँ” यह विचार प्रक्रिया तार्किक रूप से सटीक है क्योंकि:
– शरीर को हमने भोजन के माध्यम से एकत्रित किया है, जो बाहरी स्रोतों से आया है।
– हमारे मन में उत्पन्न होने वाले विचार भी बाहरी सूचनाओं और अनुभवों से प्रभावित होते हैं।
इसलिए, रमण महर्षि के आत्म-विचार सिद्धांत से पहले, इस क्रिया के माध्यम से आप स्वयं को शरीर और मन से अलग कर सकते हैं। यह पहली स्थिति ध्यान की शुद्धता की ओर एक कदम है।
आत्मा और मन-शरीर से दूरी
अब जब आपने अपने आप को मन और शरीर से अलग समझ लिया है, तो सवाल उठता है कि ध्यान क्यों कर रहे हैं?
1. मानसिक शांति के लिए: अगर आपका उद्देश्य केवल मानसिक शांति प्राप्त करना है, तो शरीर और मन से दूरी बनाना ही पर्याप्त है। जब आप यह समझ लेते हैं कि आपके सारे दुःख और चिंताएँ आपके शरीर, विचारों और मन से उत्पन्न हो रहे हैं, तो इस दूरी के साथ आप मानसिक शांति पा सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण चरण है, क्योंकि हमारे दैनिक जीवन के अधिकांश तनाव और कष्ट हमारे विचारों और शरीर की अस्थिरता से उत्पन्न होते हैं।
2. भौतिक जगत से परे कुछ पाने की चाह: यदि आपका ध्यान इससे भी गहरे स्तर पर जाने के लिए है—यानी, भौतिक जगत से परे कुछ जानने या अनुभव करने की आकांक्षा रखते हैं—तो आपको शरीर और मन से दूरी बनाकर आत्म-विचार के अगले स्तर पर जाना होगा। यहाँ से रमण महर्षि का मूल विचार “मैं कौन हूँ?” सामने आता है।
“मैं कौन हूँ?” का अनुसंधान
रमण महर्षि के अनुसार, ध्यान का असली उद्देश्य आत्मा की खोज है। जब आप शरीर और मन से परे जाकर यह सवाल पूछते हैं, “अगर मैं यह शरीर और मन नहीं हूँ, तो मैं कौन हूँ?” तब एक और चुनौती उत्पन्न होती है—आपका “मैं” लगातार किसी न किसी विचार या अहंकार से जुड़ने की कोशिश करेगा। इसका सामना करने के लिए, महर्षि “नेति नेति” (यह भी नहीं, वह भी नहीं) का उपयोग करने का सुझाव देते हैं।
ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए?
जब भी कोई जवाब आए, जैसे “मैं यह विचार हूँ,” “मैं यह भावना हूँ,” या “मैं यह शरीर हूँ,” तो आपको तुरंत यह मानना होगा कि आप वह नहीं हैं। यहाँ तक कि यह “सवाल पूंछने वाले”, “जवाब ढूँढने वाले”, “जवाब देने वाले” और “जवाब पाने वाले” भी आप नहीं हैं। यह आत्म-विचार की प्रक्रिया आपको अंततः हर विचार, पहचान और अनुभव से परे शून्यता में ले जाती है, जहाँ आप अपने वास्तविक स्वरूप को जानने के करीब पहुँचते हैं।
शून्यता में उतरना और ध्यान की गहराई
“मैं कौन हूँ?” का नियमित और धैर्यपूर्ण अनुसंधान आपको धीरे-धीरे आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाएगा। जब आप निरंतर यह क्रिया करते हैं, तो आपके भीतर एक शून्यता उत्पन्न होती है। यह शून्यता विचारों, भावनाओं, और भौतिक पहचान से मुक्त होती है, और यही वह अवस्था है, जहाँ आत्मा की सच्ची पहचान उजागर होती है।
ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए?
ध्यान की यह गहन अवस्था आपके दैनिक जीवन में भी शांति और स्थिरता लाएगी। आप न केवल अपने विचारों और मन से दूर हो जाएँगे, बल्कि आप अपने वास्तविक स्वरूप के करीब आ जाएँगे। यह शून्यता आत्म-साक्षात्कार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जहाँ से आप अपनी आत्मा की शुद्धता और शांति का अनुभव कर सकते हैं।
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निष्कर्ष
ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए : ध्यान के दौरान विचारों का आना स्वाभाविक है, और हमें उनसे भटकने की आवश्यकता नहीं है। रमण महर्षि के अनुसार, आत्म-विचार के माध्यम से हम धीरे-धीरे इन विचारों के स्रोत तक पहुँच सकते हैं और उन्हें समझ सकते हैं। सद्गुरु की ईशा क्रिया की तरह मन और शरीर से दूरी बनाकर हम ध्यान की पहली स्थिति में पहुँचते हैं। इसके बाद आत्म-विचार की प्रक्रिया हमें आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाती है।
इस पूरी प्रक्रिया का अभ्यास करने से हम अपने भीतर शांति और स्थिरता का अनुभव कर सकते हैं। ध्यान का यह मार्ग केवल मानसिक शांति नहीं, बल्कि आत्मा की खोज और आत्म-साक्षात्कार की गहराई तक पहुँचाने वाला है।
ध्यान करते समय क्या सोचना चाहिए?
रमण महर्षि की विधि सरल और गहन है, और यह हमें जीवन के अंतिम सत्य की ओर मार्गदर्शन करती है। नियमित अभ्यास से हम अपने ध्यान को और भी गहरा कर सकते हैं और अपने अस्तित्व की वास्तविकता का अनुभव कर सकते हैं।
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