Shree Yantra : श्री यंत्र क्या होता है? जाने इसे घर में लगाने के अद्भुत फायदे और नियम

Shree Yantra : श्री यंत्र क्या होता है? जाने इसे घर में लगाने के अद्भुत फायदे और नियम

Shree Yantra : श्री यंत्र क्या होता है? जाने इसे घर में लगाने के अद्भुत फायदे और नियम

श्री यंत्र (Shree Yantra) का नाम सुनते ही ज्यादातर लोग इसे महालक्ष्मी का प्रतीक मानते हैं, जिसे घर में धन और समृद्धि के लिए स्थापित किया जाता है। लेकिन श्री यंत्र इससे कहीं ज्यादा गहरा और महत्वपूर्ण है। यह यंत्र न केवल आर्थिक उन्नति का प्रतीक है, बल्कि इसके पीछे एक गूढ़ आध्यात्मिक विज्ञान छिपा है। श्री यंत्र को देवी ललिता महा त्रिपुरा सुंदरी का रूप माना जाता है, जो सृष्टि की रचनाकार हैं। इसके साथ ही, यह यंत्र संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति, पालन और विनाश की प्रक्रिया को दर्शाता है।

श्री यंत्र क्या है?

श्री यंत्र (Shree Yantra) एक विशेष प्रकार का ज्यामितीय उपकरण है, जिसे देवी ललिता त्रिपुरा सुंदरी की आराधना के लिए उपयोग किया जाता है। यह यंत्र नौ त्रिकोणों से मिलकर बना होता है, जो ब्रह्मांड की शक्तियों का प्रतीक हैं। इसके मध्य में एक बिंदु होता है, जिसे ‘बिंदु’ कहा जाता है। यह बिंदु ब्रह्मांडीय ऊर्जा का स्रोत होता है, जहां मां ललिता स्वयं विराजमान होती हैं। यह यंत्र हमारे भीतर की सकारात्मक ऊर्जा को जागृत करता है और नकारात्मकता को दूर करता है।

 श्री यंत्र (Shree Yantra) का आध्यात्मिक महत्व

श्री यंत्र (Shree Yantra) का आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। इसे देवी ललिता त्रिपुरा सुंदरी का स्वरूप माना जाता है, जो सम्पूर्ण सृष्टि की रचनाकार हैं। श्री यंत्र का आकार और संरचना देवी के शक्तिशाली रूप को दर्शाते हैं, जो न केवल भौतिक समृद्धि, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करते हैं। इस यंत्र की साधना से व्यक्ति अपने जीवन में संतुलन स्थापित कर सकता है और कठिनाइयों से पार पा सकता है।

श्री यंत्र को देवी के श्री चक्र के रूप में भी जाना जाता है, जो नवदुर्गा के नौ रूपों और ब्रह्मांड की शक्तियों का प्रतीक है। इसके नौ आवरणों में हर एक आवरण का अपना विशेष महत्व होता है, और यह ब्रह्मांड की शक्तियों का प्रतीक हैं।

 श्री यंत्र की संरचना

श्री यंत्र (Shree Yantra) की संरचना को ध्यान से समझना जरूरी है, क्योंकि इसके हर भाग का विशेष महत्व होता है। श्री यंत्र में नौ त्रिकोण होते हैं, जो आपस में इस प्रकार जुड़े होते हैं कि वे 43 छोटे त्रिकोणों का निर्माण करते हैं। यह त्रिकोण ब्रह्मांडीय शक्तियों और देवी के अलग-अलग रूपों का प्रतीक होते हैं। श्री यंत्र के नौ चक्र या आवरण होते हैं:

  1. त्रैलोक्य मोहन चक्र: यह सबसे बाहरी चक्र है और इसे तीनों लोकों को मोहित करने वाला माना जाता है।
  2. सर्व सौभाग्य दायक चक्र: यह व्यक्ति को सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करता है।
  3. सर्वसिद्धि प्रदायक चक्र: यह चक्र जीवन में सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने में मदद करता है।
  4. सर्व संक्षोभण चक्र: यह चक्र मन की अशांति को दूर करके स्थिरता प्रदान करता है।
  5. सर्वारोग्य प्रदायक चक्र: यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का प्रतीक है।
  6. सर्व संपत्ति प्रदायक चक्र: यह व्यक्ति को भौतिक संपत्ति और समृद्धि प्रदान करता है।
  7. सर्ववश्य करण चक्र: यह व्यक्ति को दूसरों पर वशीकरण का अधिकार प्रदान करता है।
  8. सर्वरोग हर चक्र: यह चक्र सभी रोगों और बीमारियों को दूर करता है।
  9. सर्वानंद मय चक्र: यह अंतिम और सबसे आंतरिक चक्र है, जो परम आनंद का प्रतीक होता है।

 श्री यंत्र की साधना

श्री यंत्र (Shree Yantra) की साधना बहुत ही प्रभावी और शक्तिशाली मानी जाती है। यह साधना तीन मुख्य भागों में विभाजित होती है: मंत्र, तंत्र, और यंत्र। इन तीनों का सही ढंग से प्रयोग करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और शांति आती है।

– मंत्र: श्री यंत्र की साधना में मंत्रों का विशेष महत्व होता है। पंचदशी मंत्र और षोडशी मंत्र प्रमुख होते हैं, जो देवी ललिता त्रिपुरा सुंदरी को समर्पित होते हैं। इन मंत्रों का सही ढंग से उच्चारण करना जरूरी होता है, जिससे व्यक्ति देवी की कृपा प्राप्त कर सके।

– तंत्र: श्री यंत्र की साधना में तंत्र विधियों का भी विशेष महत्व है। इसमें विभिन्न आचारों का पालन किया जाता है, जैसे कि वामाचार और दक्षिणाचार। इन तंत्रों के माध्यम से देवी की पूजा की जाती है और उन्हें प्रसन्न किया जाता है।

– यंत्र: श्री यंत्र स्वयं देवी का भौतिक रूप है। इसे सोने, चांदी या तांबे की धातु पर अंकित किया जाता है और इसे घर या कार्यस्थल पर स्थापित किया जाता है। श्री यंत्र की स्थापना से पहले इसे शुद्ध किया जाता है और फिर विशेष पूजा की जाती है।

 श्री यंत्र का प्रभाव

श्री यंत्र की साधना से व्यक्ति के जीवन में अनेक सकारात्मक बदलाव आते हैं। यह न केवल आर्थिक समृद्धि लाता है, बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार करता है। श्री यंत्र की ऊर्जा से घर या कार्यस्थल की नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और वहां की ऊर्जा शुद्ध होती है।

श्री यंत्र को सही दिशा में स्थापित करना जरूरी होता है। इसे उत्तर-पूर्व दिशा में रखा जाना चाहिए, जो कि समृद्धि और शांति की दिशा मानी जाती है। श्री यंत्र की पूजा प्रतिदिन की जानी चाहिए और इसे नियमित रूप से जल और फूलों से अर्पित किया जाना चाहिए।

 श्री यंत्र का वैज्ञानिक पहलू

श्री यंत्र न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है। इसकी ज्यामितीय संरचना और त्रिकोणीय रूप ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रवाह को दर्शाते हैं। जब इसे सही दिशा और विधि से स्थापित किया जाता है, तो यह सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाता है और व्यक्ति के जीवन में संतुलन लाता है।

श्री यंत्र कहाँ से और कैसे खरीदें 

श्री यंत्र (Shree Yantra) खरीदते समय यह महत्वपूर्ण है कि इसे हमेशा एक विश्वसनीय और प्रमाणित स्रोत से ही लिया जाए, ताकि इसकी शुद्धता और ऊर्जा बनी रहे। यदि आप इसे ऑनलाइन खरीदना चाहते हैं, तो mygyanalaya.in एक भरोसेमंद वेबसाइट है जहाँ से आप श्री यंत्र को सुरक्षित और प्रमाणित रूप में प्राप्त कर सकते हैं।

 श्री यंत्र की स्थापना

श्री यंत्र की स्थापना के लिए शुभ समय और दिन का चयन किया जाता है। इसे आमतौर पर शुक्रवार या पूर्णिमा के दिन स्थापित किया जाता है, जब चंद्रमा की ऊर्जा अपने पूर्ण प्रभाव में होती है। स्थापना से पहले श्री यंत्र को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है और फिर पूजा की जाती है।

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 निष्कर्ष

श्री यंत्र केवल एक साधारण यंत्र नहीं, बल्कि यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड की शक्तियों का प्रतीक है। यह देवी ललिता महा त्रिपुरा सुंदरी का स्वरूप है, जो समृद्धि, शांति, और ज्ञान का प्रतीक है। श्री यंत्र की साधना से व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक, शारीरिक और आर्थिक उन्नति प्राप्त कर सकता है। इसकी सही दिशा और विधि से पूजा करने पर व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मकता दूर होती है।

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