Ramana Maharshi Biography in Hindi :16 साल का लड़का जिसे सब भगवान कहने लगे | रमण महर्षि की जीवनी

Ramana Maharshi Biography in Hindi

रमन महर्षि की जीवनी (Ramana Maharshi Biography in Hindi) गहराई से आत्म-अन्वेषण और मौन साधना की एक अद्वितीय कहानी है। उनका जीवन साधारण व्यक्ति से महान संत बनने की यात्रा को दर्शाता है, जो न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में एक आध्यात्मिक रोशनी बने। रमन महर्षि का जन्म 30 दिसंबर, 1879 को दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरुचुली गांव में हुआ था। उनका नाम वेंकटरमन रखा गया, और उन्होंने अपने पिता सुंदरम् अय्यर और माता अज़गम्मल  के साथ साधारण जीवन बिताया। 

बचपन और प्रारंभिक जीवन

रमन महर्षि का प्रारंभिक जीवन (Ramana Maharshi Biography in Hindi) किसी भी सामान्य बालक की तरह ही था। उन्हें खेलकूद का बेहद शौक था, और वे दोस्तों के साथ खेलते रहते थे। पढ़ाई में उनका मन ज्यादा नहीं लगता था, और उन्हें सोना बहुत पसंद था। एक बार सो जाने के बाद उन्हें उठाना आसान काम नहीं था। उनके पिता, जो पेशे से वकील थे, उन्हें अच्छी शिक्षा देने की कोशिश करते थे, लेकिन वेंकटरमन का मन पढ़ाई में कम ही लगता था। वे एक सामान्य बालक की तरह ही अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे, और कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि आगे चलकर वे एक महान संत बनेंगे।

हालांकि, 16 साल की उम्र में एक घटना ने उनके जीवन (Ramana Maharshi Biography in Hindi) को पूरी तरह बदल दिया। उन्हें अचानक मृत्यु का डर सताने लगा, और उन्होंने महसूस किया कि उनका शरीर मर सकता है, लेकिन वे कौन हैं? यह सवाल उनके अंदर गहराई से उठने लगा। इस सवाल का जवाब खोजने के लिए उन्होंने आत्म-अन्वेषण शुरू किया। वे जमीन पर लेट गए और मानो मृत होने का नाटक करने लगे, परंतु इस प्रक्रिया में वे इतने गहरे ध्यान में चले गए कि उन्होंने अपने शरीर से परे की चेतना का अनुभव किया। यह अनुभव इतना गहरा और अद्भुत था कि उनकी पूरी जीवन दिशा बदल गई।

आध्यात्मिक जागरण

इस घटना के बाद वेंकटरमन पूरी तरह से बदल गए। उनका मन अब न तो खेलकूद में लगता था और न ही पढ़ाई में। वे जब भी मौका पाते, ध्यान में लीन हो जाते और अपने सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते कि “मैं कौन हूँ?”। उनके भाई ने जब उन्हें एक दिन ध्यान में मग्न देखा, तो गुस्से में कहा, “अगर तुम्हें सन्यासी बनना है तो बन जाओ, क्यों फालतू में पढ़ाई का नाटक कर रहे हो?” यह बात वेंकटरमन को सही लगी, और उन्होंने उसी दिन घर छोड़ने का निर्णय लिया।

वे एक पत्र लिखकर घर से निकल पड़े, जिसमें उन्होंने लिखा कि वे एक बड़े उद्देश्य के लिए जा रहे हैं और परिवार को उन्हें ढूंढने में समय और धन बर्बाद नहीं करना चाहिए। उन्होंने अपनी यात्रा तिरुवन्नमलई के अरुणाचलम पर्वत की ओर की, जिसे वे पहले से ही भगवान शिव का निवास मानते थे। इस यात्रा में उन्होंने अपने पास के सारे धन और वस्त्र त्याग दिए और अपना जीवन एक संन्यासी के रूप में शुरू किया। 

अरुणाचलम की यात्रा और साधना

अरुणाचलम पर्वत पहुंचने के बाद रमन महर्षि ने अपना जीवन साधना और ध्यान (Ramana Maharshi Biography in Hindi) में समर्पित कर दिया। वे कभी मंदिरों में तो कभी वृक्षों के नीचे ध्यान में लीन रहते थे। आस-पड़ोस के बच्चे उन्हें अजीब नजरों से देखते और उन पर पत्थर व कचरा फेंकते, लेकिन वे हमेशा शांत रहते। एक बार मंदिर के पुजारी ने उन्हें मंदिर के भूगर्भ में ध्यान करने के लिए जगह दी, ताकि उन्हें परेशान न किया जा सके। 

भूगर्भ में रहते हुए रमन महर्षि ने अत्यधिक कठिनाइयों का सामना किया। वहां कीड़े, चीटियां, और चूहे उनके शरीर को काटते रहते, और उनके शरीर पर गहरे घाव बन गए, जो उनके जीवन के अंत तक बने रहे। लेकिन वे इतने गहरे ध्यान में रहते कि उन्हें अपने शरीर का होश ही नहीं रहता था। उनका ध्यान अपने शरीर से परे जाकर आत्मचेतना में विलीन हो चुका था।

आत्मसाक्षात्कार और मौन साधना

धीरे-धीरे लोगों को रमन महर्षि की साधना के बारे में पता चलने लगा। लोग उनसे मिलने आने लगे, और उनके पास बैठते ही उनका मन शांत हो जाता। महर्षि ज्यादातर समय मौन रहते, और सिर्फ अपने मौन से ही लोगों को शांति का अनुभव कराते। उनकी ख्याति इतनी फैल चुकी थी कि उनके घरवालों को भी पता चल गया। 

उनकी माँ ने एक बार फिर उनसे मिलने की कोशिश की, लेकिन रमन महर्षि का ध्यान पूरी तरह से आत्मान्वेषण में लगा हुआ था। उन्होंने अपने माँ को लिखा कि जीवन की नियति को बदला नहीं जा सकता, और माँ ने उनके दृढ़ निश्चय को समझकर उन्हें अकेला छोड़ दिया।

महर्षि रमन का सिद्धांत “Who am I?”

रमन महर्षि ने जीवन (Ramana Maharshi Biography in Hindi) में कभी किसी को धर्म परिवर्तन या सन्यास लेने के लिए प्रेरित नहीं किया। उनका मानना था कि चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म का हो, मुक्ति का मार्ग भीतर से ही आता है। उन्होंने “मैं कौन हूँ (Who am i)?” इस प्रश्न के उत्तर को जीवन का सबसे बड़ा सत्य माना और अपने अनुयायियों को भी इसी दिशा में प्रेरित किया। वे कहते थे कि जब आप अपने ‘मैं’ की गहराई में उतरते हैं, तो सभी दुखों और समस्याओं का अंत हो जाता है।

महर्षि की माँ की मृत्यु

1916 में, रमन महर्षि की माँ अज़गम्मल आश्रम में आकर रहने लगीं। उन्होंने अपने पुत्र से कहा कि वे चाहती हैं कि उनकी अंतिम सांसें रमन के हाथों में हों। महर्षि ने अपनी माँ की सेवा की, और जब उनकी माँ के जीवन का अंतिम समय आया, तो उन्होंने माँ के सिर पर हाथ रखा और उनकी आत्मा को परम शांति की ओर मार्गदर्शन किया। माँ अज़गम्मल की समाधि आज भी तिरुवन्नमलाई में स्थित है, और यह स्थान एक पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है।

पशुओं के प्रति प्रेम

रमन महर्षि (Ramana Maharshi Biography in Hindi) का प्रेम न केवल इंसानों के प्रति था, बल्कि पशु-पक्षियों के प्रति भी वे अत्यंत करुणामय थे। आश्रम में लक्ष्मी नाम की एक गाय नियमित रूप से आती थी, और महर्षि उसे बहुत प्यार से सहलाते थे। एक बार जब लक्ष्मी बीमार हो गई और मरणासन्न अवस्था में थी, तो महर्षि ने उसी तरह उसका ध्यान रखा जैसे उन्होंने अपनी माँ का किया था। लक्ष्मी की मृत्यु के बाद उसकी भी समाधि आश्रम में बनाई गई, जो महर्षि की अद्वितीय करुणा का प्रतीक है।

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अंतिम समय और महासमाधि

1950 तक, रमन महर्षि का शरीर काफी कमजोर हो चुका था। उन्हें ट्यूमर की समस्या थी, लेकिन वे कभी इस बात की शिकायत नहीं करते थे। उन्होंने अपने शरीर को कभी भी महत्व नहीं दिया और अपने अंतिम समय में भी यह स्पष्ट किया कि शरीर मरता है, लेकिन आत्मा अमर है। 14 अप्रैल 1950 को, रमन महर्षि ने महासमाधि ली, और उनके अंतिम शब्द थे, “मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ। मैं यहीं हूँ।” 

रमन महर्षि का जीवन (Ramana Maharshi Biography in Hindi) एक प्रेरणा है कि आत्मसाक्षात्कार से ही जीवन के सभी दुखों का अंत होता है। उनकी शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों के जीवन में शांति और आनंद का स्रोत हैं।

 
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