Love Marriage : प्रेम विवाह करना सही या गलत? प्रेमानन्द जी महाराज ने दिया जबाव

Love Marriage : प्रेम विवाह करना सही या गलत? प्रेमानन्द जी महाराज ने दिया जबाव

Love Marriage : प्रेम विवाह करना सही या गलत? प्रेमानन्द जी महाराज ने दिया जबाव

आजकल के समय में प्रेम विवाह (Love Marriage) का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। कई बच्चे अपने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ जाकर अपने जीवन साथी का चुनाव करते हैं। यह एक ऐसा विषय है जो समाज, परिवार और यहां तक कि माता-पिता के मनोविज्ञान पर भी असर डालता है। इसके कई पहलू हैं जो माता-पिता और बच्चों दोनों को समझने की आवश्यकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि महाराज जी (Premanand ji Maharaj) द्वारा दिए गए उपदेशों के अनुसार माता-पिता को इस मामले में क्या करना चाहिए और बच्चों के मनोविज्ञान को कैसे समझा जा सकता है।

 प्रेम विवाह: बच्चों की धारणा और विश्वास

आज की पीढ़ी अपने जीवन के प्रति ज्यादा स्वतंत्र सोच रखती है और वे अपने फैसलों को खुद लेना पसंद करते हैं। जब वे किसी से प्रेम करते हैं, तो उन्हें लगता है कि वे अपने जीवन साथी का चुनाव कर सकते हैं। अक्सर वे इस सोच के साथ रहते हैं कि उनका प्रेम ही सबसे सच्चा है। लेकिन, वे यह भूल जाते हैं कि प्रेम केवल आकर्षण या भावनात्मक जुड़ाव नहीं है, बल्कि यह एक बड़ा दायित्व और जिम्मेदारी भी है।

जब बच्चे प्रेम विवाह (Love Marriage) के बारे में सोचते हैं, तो वे अपने माता-पिता से यह बात कहने में हिचकिचाते हैं। उन्हें डर होता है कि कहीं उनके माता-पिता उनकी बात को नकार न दें या समाज क्या कहेगा। इसी डर की वजह से वे अपने निर्णय को छुपाने लगते हैं, और जब उनके फैसले में कोई समस्या आती है, तब वे खुद को अकेला पाते हैं।

 माता-पिता की भूमिका

महाराज जी (Premanand ji Maharaj) के अनुसार, माता-पिता का यह कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों का सही मार्गदर्शन करें। उन्हें समझना चाहिए कि आज के समय में बच्चे बुद्धिमान तो हैं, लेकिन उनमें विवेक की कमी है। वे सही-गलत का निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं। यही कारण है कि कई बार उनका प्रेम केवल आकर्षण या वासना पर आधारित होता है। इस स्थिति में, माता-पिता को समझदारी से अपने बच्चों का मार्गदर्शन करना चाहिए।

  1. दोस्ताना व्यवहार अपनाएं

माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों के प्रति दोस्ताना व्यवहार अपनाएं। जब बच्चे महसूस करेंगे कि उनके माता-पिता उनके साथ दोस्त की तरह पेश आ रहे हैं, तो वे अपने दिल की बात खुलकर कह पाएंगे। इससे बच्चों में माता-पिता के प्रति भरोसा बढ़ेगा, और वे जीवन के महत्वपूर्ण फैसलों में अपने माता-पिता का मार्गदर्शन स्वीकार करेंगे।

  1. धैर्य और समझदारी से काम लें

जब बच्चे अपने प्रेम संबंध के बारे में बताते हैं, तो माता-पिता को तुरंत गुस्सा करने या हड़बड़ी में निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें धैर्यपूर्वक उनकी बात सुननी चाहिए और यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उनके बच्चे का प्रेम सच्चा है या केवल एक अस्थायी आकर्षण।

  1. दोनों पक्षों की जांच करें

महाराज जी (Premanand ji Maharaj) ने कहा है कि माता-पिता को दोनों पक्षों की जांच करनी चाहिए। पुत्र और पुत्री दोनों के परिवारों के बारे में जानकारी लें, उनके आचरण, व्यवहार और उनके भविष्य के विचारों को समझें। अगर वे एक-दूसरे के प्रति सच्चे हैं और उनका आचरण ठीक है, तो माता-पिता को उनके प्रेम का समर्थन करना चाहिए।

 समाज का भय और माता-पिता की दुविधा

समाज के भय से माता-पिता अक्सर अपने बच्चों के प्रेम संबंधों को स्वीकार करने में हिचकिचाते हैं। उन्हें लगता है कि समाज उनकी आलोचना करेगा या उनका सम्मान कम हो जाएगा। लेकिन, यह ध्यान देना जरूरी है कि समाज की अपेक्षाओं के बजाय अपने बच्चों की खुशियों को प्राथमिकता देना चाहिए।

महाराज जी के अनुसार, समाज का डर अब इतना महत्व नहीं रखता जितना कि अपने बच्चों की सुरक्षा और उनके भविष्य को संवारना है। जब बच्चे आपके मार्गदर्शन के बिना अपनी राह चुनते हैं, तो उनके जीवन में कई कठिनाइयाँ आ सकती हैं। इसलिए, माता-पिता को समाज के डर से ऊपर उठकर अपने बच्चों का समर्थन करना चाहिए।

 बच्चों में विवेक की कमी और प्रेम विवाह के परिणाम

आजकल के बच्चों में विवेक की कमी होती है। वे किसी भी आकर्षण को प्रेम समझ लेते हैं और जल्दी-जल्दी निर्णय ले लेते हैं। लेकिन, जब वे इस प्रेम को वास्तविकता में परिवर्तित करने का प्रयास करते हैं, तो वे कई बार असफल हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, विवाह के बाद उनके संबंधों में कड़वाहट आ जाती है, और तलाक जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रेम विवाह के मामले में अक्सर देखा गया है कि शुरुआती आकर्षण के बाद जब जिम्मेदारियों और संघर्षों का सामना करना पड़ता है, तब वे अपने निर्णय पर पछताते हैं। ऐसे में माता-पिता का सहयोग बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। यदि माता-पिता पहले से ही उन्हें समझा पाते हैं कि विवाह केवल एक भावनात्मक जुड़ाव नहीं है बल्कि एक जिम्मेदारी भी है, तो बच्चे अपने निर्णय को समझदारी से ले सकते हैं।

 विवाह में शुद्धता और संयम का महत्व

महाराज जी (Premanand ji Maharaj) के अनुसार, प्रेम विवाह (Love Marriage) तभी सफल हो सकता है जब उसमें शुद्धता और संयम हो। जो बच्चे अपने संबंधों में पवित्रता और संयम रखते हैं, वे एक स्वस्थ और सफल विवाह का निर्वाह कर सकते हैं। इसके विपरीत, जो बच्चे अनियंत्रित और व्यभिचारी होते हैं, उनका विवाह जीवन में सफलता नहीं मिलती। वे एक स्थायी संबंध नहीं बना पाते और हमेशा अस्थिरता का सामना करते हैं।

इसलिए, बच्चों को यह समझना चाहिए कि विवाह का संबंध केवल शारीरिक आकर्षण तक सीमित नहीं होता। यह एक पवित्र बंधन है जिसमें मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक एकता की भी आवश्यकता होती है। इसी कारण, बच्चों को अपने माता-पिता के अनुभवों और विचारों का सम्मान करना चाहिए और उनसे मार्गदर्शन लेना चाहिए।

 माता-पिता के लिए सुझाव

बच्चों को खुलकर अपनी भावनाएँ व्यक्त करने दें। जब बच्चे अपनी बात कह पाएंगे, तो आप उनके विचारों को बेहतर समझ सकेंगे।

बच्चों के निर्णय को पूरी तरह से नकारें नहीं, बल्कि उनका सही मार्गदर्शन करें। अगर आप उनके फैसले का सम्मान करेंगे, तो वे भी आपके विचारों का आदर करेंगे।

समाज के डर से बच्चों की खुशियों को नजरअंदाज न करें। बच्चों की भलाई और सुख को प्राथमिकता दें।

बच्चों को समझाएं कि विवाह केवल एक आकर्षण नहीं है, बल्कि एक जिम्मेदारी है। उन्हें यह सिखाएं कि एक सफल विवाह में धैर्य, समर्पण और परिपक्वता की आवश्यकता होती है।

यह भी पढें – Premanand Ji Maharaj ने Intercaste Marriage को लेकर बता दी ऐसी बात जो…

 निष्कर्ष

प्रेम विवाह  (Love Marriage) का चलन बढ़ता जा रहा है, और इसमें कोई बुराई नहीं है, जब तक कि दोनों पक्ष एक-दूसरे के प्रति ईमानदार और सच्चे हैं। माता-पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों के फैसलों में उनका समर्थन करें, लेकिन इसके साथ ही यह सुनिश्चित करें कि उनका निर्णय समझदारीपूर्ण हो। बच्चों को भी यह समझना चाहिए कि उनके माता-पिता का अनुभव और ज्ञान उनके जीवन के लिए एक मूल्यवान संपत्ति है।

महाराज जी (Premanand ji Maharaj) के अनुसार, माता-पिता और बच्चों के बीच दोस्ताना संवाद और सहयोग से ही प्रेम विवाह के फैसले को सही दिशा दी जा सकती है। समाज की अपेक्षाओं से ऊपर उठकर अपने बच्चों का साथ देना और उन्हें सही मार्गदर्शन देना ही सच्चा माता-पिता का धर्म है।