अच्छे कर्म करने पर भी दुख क्यों मिलता है? प्रेमानन्द जी महाराज ने बताया राज | Premanand Ji Maharaj on Karma
Premanand Ji Maharaj on Karma : हमारे जीवन में यह सवाल अक्सर उठता है कि जब कोई व्यक्ति धर्मपूर्वक, ईमानदारी और अच्छे कर्म करता है, तो भी उसे दुखों का सामना क्यों करना पड़ता है। इस जिज्ञासा का समाधान संत चैतन्य प्रेमानन्द जी अपने वचनों में अत्यंत सरल और सटीक तरीके से करते हैं। उनके अनुसार, यह स्थिति हमारे कर्मों और उनके परिणामों के गहरे विज्ञान को समझने की आवश्यकता पर जोर देती है।
पाप और पुण्य का संगम
संत प्रेमानन्द जी कहते हैं कि मानव शरीर की रचना पाप और पुण्य के योग से होती है। इस संसार में ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जिसने केवल पुण्य किए हों या केवल पाप। हमारे पूर्वजन्मों के कर्म (Premanand Ji Maharaj on Karma), चाहे वे अच्छे हों या बुरे, वर्तमान जीवन में हमें उनके परिणाम स्वरूप सुख-दुख का अनुभव कराते हैं।
उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति वर्तमान में धर्म और अच्छे कर्म कर रहा है, लेकिन उसे फिर भी दुख झेलना पड़ रहा है, तो इसका कारण यह है कि उसके पूर्व जन्मों के पाप कर्म अब फलीभूत हो रहे हैं। दूसरी ओर, जो व्यक्ति वर्तमान में बुरे कर्म करता है और फिर भी सुखी दिखता है, यह उसके पूर्व जन्मों के पुण्य कर्मों का फल है।
वर्तमान और पूर्व कर्मों का प्रभाव
संत जी (Premanand Ji Maharaj on Karma) समझाते हैं कि वर्तमान के अच्छे कर्मों का फल अवश्य मिलेगा, लेकिन उसका समय निर्धारित होता है। जिस प्रकार एक किसान बीज बोने के बाद तुरंत फसल नहीं काट सकता, उसी प्रकार अच्छे कर्मों का फल भी समय के साथ प्राप्त होता है।
यह भी सच है कि वर्तमान में जो व्यक्ति पाप करता है, उसे अपने पापों का दंड अवश्य मिलेगा। यदि कोई व्यक्ति आज अमीर और सुखी दिखता है, लेकिन बुरे कर्म करता है, तो भविष्य में उसे पापों का दंड भोगना ही पड़ेगा।
धर्म की कसौटी और सहनशीलता
संत प्रेमानन्द (Premanand Ji Maharaj on Karma) जी धर्म का महत्व बताते हुए कहते हैं कि धर्म पर चलने वाले व्यक्ति को प्रारंभ में कष्टों का सामना करना पड़ सकता है। धर्म की राह पर चलना एक कसौटी के समान है, जो हमारी सहनशीलता और आस्था की परीक्षा लेती है। लेकिन अंततः धर्म का परिणाम शुभ और आनंदमय होता है।
महाभारत के उदाहरण में, पांडवों को धर्म पर चलने के बावजूद कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने वनवास और अज्ञातवास झेला, लेकिन अंततः धर्म की विजय हुई और उन्हें हस्तिनापुर का राज्य प्राप्त हुआ। दूसरी ओर, दुर्योधन और कौरवों का पतन हुआ, भले ही वे अपने समय में सुखी दिखते थे।
वास्तविक धर्म और पाखंड का अंतर
संत जी (Premanand Ji Maharaj on Karma) स्पष्ट करते हैं कि वास्तविक धर्म और पाखंड में बड़ा अंतर है। यदि कोई व्यक्ति धर्म का दिखावा करता है—जैसे दान करते समय अपनी प्रसिद्धि का प्रचार करना या तिलक और माला पहनकर भीतर से बेईमानी करना—तो वह सच्चा धर्मात्मा नहीं हो सकता। ऐसा व्यक्ति दुख और विनाश को अवश्य प्राप्त करेगा।
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सुख और आनंद का अंतिम परिणाम
संत प्रेमानन्द (Premanand Ji Maharaj on Karma) जी कहते हैं कि धर्म और अच्छे कर्म का परिणाम सुदामा जी की कथा में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। सुदामा जी ने अपने जीवन में बहुत कष्ट सहे, लेकिन उनके धर्म और भक्ति के कारण अंत में उन्हें द्वारिका जैसे वैभव और सम्मान की प्राप्ति हुई।
अच्छे कर्म करने वाला व्यक्ति भले ही थोड़े समय के लिए दुखी दिखाई दे, लेकिन उसका भविष्य उज्ज्वल और आनंदमय होता है। जैसे एक दीपक धीरे-धीरे जलता है और प्रकाश फैलाता है, वैसे ही धर्मात्मा का जीवन धीरे-धीरे परम सुख की ओर अग्रसर होता है।
निष्कर्ष
संत प्रेमानन्द जी (Premanand Ji Maharaj on Karma) का संदेश हमें यह सिखाता है कि दुख जीवन का हिस्सा है, लेकिन अच्छे कर्म और धर्म की राह पर चलने से हमारा जीवन न केवल शांतिमय होता है, बल्कि हमें परम आनंद और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। यह हमें अपने कर्मों और उनकी शक्ति में आस्था रखने की प्रेरणा देता है।
“धर्मो रक्षति रक्षितः” अर्थात् धर्म की रक्षा करने वाले की धर्म स्वयं रक्षा करता है। यह जीवन का अपरिहार्य सत्य है, और हमें इसे समझकर अपने जीवन को सही दिशा में ले जाना चाहिए।