Premanand Ji Maharaj ke Pravachan : मुझ पर भगवान की कृपा है या नहीं कैसे पता लगेगा? महाराज जी ने बताए 8 मुख्य लक्षण
Premanand Ji Maharaj ke Pravachan : प्रेमानंद जी महाराज के वचनों के अनुसार, जब भगवान किसी व्यक्ति पर अपनी कृपा बरसाते हैं, तो यह पहचानने के आठ स्पष्ट लक्षण होते हैं। इन लक्षणों के माध्यम से हम यह समझ सकते हैं कि भगवान हमारे साथ हैं। आइए इन आठ लक्षणों को विस्तार से समझें:
1. अपराधियों के प्रति दया और क्षमा का भाव
जिस व्यक्ति पर भगवान की कृपा होती है, उसमें अपराधियों के प्रति भी गुस्सा नहीं रहता। वह क्षमा करने में सक्षम होता है। घोर अपराध करने वाले के प्रति भी दया का भाव होना हरि कृपा का पहला लक्षण है। यदि कोई आपके साथ दुर्व्यवहार करता है और आप फिर भी शांत रहते हैं और उसे क्षमा कर देते हैं, तो यह हरि कृपा का संकेत है। यदि ऐसा न हो, तो भगवान से प्रार्थना करें कि वे आपके हृदय में क्षमा का सामर्थ्य प्रदान करें।
2. अनसूया – दोष-दर्शन का अभाव
भगवान की कृपा (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) से युक्त व्यक्ति कभी किसी में दोष नहीं देखता। वह दूसरों के सद्गुणों में भी दोष खोजने का प्रयास नहीं करता। दोष-कथन और दोष-श्रवण से बचता है। माया हमें दोष-दर्शन में फंसाकर हमारी भजन शक्ति को कमजोर करती है। इसलिए, हरि कृपा प्राप्त व्यक्ति हमेशा दूसरों के गुणों को सराहता है और उनके दोषों को नजरअंदाज करता है।
3. भीतर और बाहर से पवित्रता
हरि कृपा प्राप्त व्यक्ति का हृदय और व्यवहार दोनों पवित्र होते हैं। बाहरी पवित्रता में शरीर, वस्त्र और आचरण की स्वच्छता शामिल है, जबकि आंतरिक पवित्रता में सत्य, निष्छलता और निष्कपट भाव का होना आवश्यक है। ऐसा व्यक्ति सदैव भगवत चिंतन में लीन रहता है और अपने आचरण से पवित्रता का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
4. धर्मविरुद्ध और भजन-विरोधी कार्यों से विरत रहना
भगवान की कृपा (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) से युक्त व्यक्ति कभी ऐसे कार्य नहीं करता जो धर्म और भजन के विपरीत हों। वह हमेशा यह सुनिश्चित करता है कि उसका हर कर्म भगवान की स्मृति के साथ हो। जो कार्य हमें भगवान से दूर करते हैं, उनसे बचना आवश्यक है। हरि कृपा पात्र व्यक्ति ऐसे संसारिक कार्यों में नहीं उलझता जो उसकी भजन वृत्ति को बाधित करें।
5. भजन का फल दूसरों को अर्पित करना
हरि कृपा (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) का एक और लक्षण यह है कि व्यक्ति अपने भजन का फल दूसरों के कल्याण के लिए अर्पित करता है। वह अपने लिए कुछ नहीं चाहता और न ही अपने भजन का उपयोग व्यक्तिगत सुख के लिए करता है। भजन का मुख्य उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना और ईश्वर से जुड़ना होता है।
6. अपने भजन से कुछ न चाहना
हरि कृपा (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) पात्र व्यक्ति अपने भजन से कोई व्यक्तिगत लाभ नहीं चाहता। वह यह नहीं सोचता कि भजन से उसे कोई विशेष लाभ मिलेगा। उसकी एकमात्र इच्छा यह होती है कि उसका भजन निरंतर चलता रहे। विषय-पूर्ति या अन्य सांसारिक इच्छाएँ उसके भजन का उद्देश्य नहीं होतीं।
7. मान-सम्मान और कीर्ति से असंतुष्टि
हरि कृपा (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) प्राप्त व्यक्ति मान-सम्मान और कीर्ति को विष के समान मानता है। जब कोई उसकी प्रशंसा करता है या उसे सम्मानित करता है, तो वह इसे भगवान की लीला समझता है और किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं आने देता। वह विनम्र बना रहता है और मान-सम्मान के चकाचौंध से बचने की प्रार्थना करता है।
8. सब पर दया और ममता का अभाव
हरि कृपा पात्र (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) व्यक्ति सब पर दया और करुणा करता है लेकिन किसी के प्रति ममता नहीं रखता। करुणा और मैत्री के साथ वह सबके प्रति समान भाव रखता है। ममता से मुक्त होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ममता हमें सांसारिक बंधनों में जकड़ देती है। करुणा और मैत्री के साथ, ममता से रहित जीवन ही हरि कृपा का प्रतीक है।
निष्कर्ष
Premanand Ji Maharaj ke Pravachan : ये आठ लक्षण भगवान की कृपा को पहचानने के साधन हैं। हमें इन्हें अपने जीवन में धारण करने का प्रयास करना चाहिए। यदि आप अपने अंदर इन लक्षणों को विकसित होते देख रहे हैं, तो यह संकेत है कि भगवान आपके साथ हैं। इन लक्षणों को आत्मसात करने के लिए नियमित भजन, प्रार्थना और साधना करें। यही हरि कृपा का मार्ग है।