महाराज जी से भक्त ने पूछ ली अंतिम इच्छा, मिला यह सुन्दर जवाब | Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap

महाराज जी से भक्त ने पूछ ली अंतिम इच्छा, मिला यह सुन्दर जवाब | Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap

महाराज जी से भक्त ने पूछ ली अंतिम इच्छा, मिला यह सुन्दर जवाब | Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap

Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap : एक वार्तालाप में महाराज जी से भक्त द्वारा पूछा जाता है की “गुरुदेव, यदि आपको आपकी अंतिम इच्छा के बारे में राधा रानी से कुछ मांगने का अवसर मिले, तो आप क्या मांगेंगे?” प्रेमानंद जी महाराज का उत्तर इस प्रश्न में उनकी भक्ति, समर्पण और गहन आध्यात्मिक दृष्टिकोण को प्रकट करता है।

महाराज जी ने अपनी बात प्रारंभ करते हुए कहा कि उनकी कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं है। वे बोले, “मेरी अंतिम इच्छा तो पहले ही पूरी हो चुकी है। मेरे प्यारे, मेरी लाड़ली राधा रानी, जो मेरे जीवन का आधार हैं, मुझे पहले ही सब कुछ प्रदान कर चुकी हैं। अब मेरी कोई अलग से अंतिम इच्छा नहीं हो सकती। जो भी सेवा मैं कर रहा हूँ या करवाया जा रहा है, वह सब उन्हीं की इच्छा का परिणाम है।”

समर्पण का भाव: इच्छा से परे

महाराज जी (Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap) का मानना है कि जब भक्त अपने प्रभु के सान्निध्य में होता है, तो उसकी सभी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं। वह एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, “जैसे घड़ी का सेल (बैटरी) केवल घड़ी चलाने के लिए होती है, वैसे ही मेरा शरीर और जीवन राधा रानी की सेवा के लिए है। जब तक उनकी इच्छा है, मैं इस शरीर से सेवा करता रहूँगा।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि भगवान या राधा रानी से कुछ मांगने का विचार तब तक आता है, जब तक मन में इच्छाओं का भार है। परंतु, जब भक्त पूरी तरह से समर्पित हो जाता है, तो वह अपने लिए कुछ नहीं मांगता। उसकी सारी इच्छाएं भगवान की सेवा में लीन हो जाती हैं।

मेरे तो गिरधर गोपाल” का वास्तविक अर्थ

प्रेमानंद जी (Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap) ने मीरा बाई के प्रसिद्ध भजन “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई” का संदर्भ देते हुए कहा, “जब आप कहते हैं कि आपके लिए भगवान के अलावा कोई और नहीं है, तो यह केवल शब्दों में नहीं होना चाहिए। इसका अर्थ है कि आपका शरीर, मन, और आत्मा सब प्रभु को समर्पित हैं। अगर आप यह कहने का साहस रखते हैं, तो यह भी मानिए कि आपकी सभी इच्छाएं और जरूरतें अब उनकी मर्जी पर निर्भर करती हैं।”

प्रेम और कष्ट का संबंध

महाराज जी (Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap) ने प्रेम और कष्ट के संबंध पर चर्चा करते हुए कहा, “जो सच्चा प्रेम करता है, वह अपने प्रियतम से दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकता। राधा रानी ने जब हमें इस संसार में भेजा, तो हमारे सभी कष्टों के बावजूद, उनका प्रेम और ममता हमारे साथ रही। यदि किसी को कष्ट सहना पड़ा, तो वह भी उनका ही दिया हुआ प्रसाद है।”

उन्होंने बताया कि प्रेम में आत्मा के स्तर पर ऐसी स्थिति आ जाती है कि भक्त कष्ट को भी आनंद की तरह अनुभव करता है। “यदि राधा रानी हमें 100 ग्राम कष्ट देती हैं, तो उसके साथ 1 किलो आनंद भी प्रदान करती हैं,” उन्होंने हंसते हुए कहा।

शरणागति और साधना का महत्व

प्रेमानंद जी (Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap) ने साधना और शरणागति के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जब तक कोई व्यक्ति भगवान के प्रति समर्पण नहीं करता, तब तक वह अपने जीवन के कष्टों से मुक्त नहीं हो सकता। “जब भक्त अपने कर्मों का फल भोगने को तैयार हो जाता है और अपने सारे अच्छे-बुरे कर्म भगवान को समर्पित कर देता है, तभी उसे शांति प्राप्त होती है।”

अंतिम सेवा की प्रेरणा

जब प्रेमानंद जी (Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap) से पूछा गया कि उनकी अंतिम सेवा क्या होगी, तो उन्होंने बड़ी सरलता से कहा, “मेरी अंतिम सेवा वही होगी जो राधा रानी मुझसे कराना चाहेंगी। मैं उनसे पूछूँगा कि इस शरीर के अंतिम क्षणों में वे मुझसे क्या सेवा करवाना चाहती हैं। मेरा कोई अपना कुछ भी नहीं है, सब कुछ उन्हीं का है।”

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समाप्ति: भक्ति की चरम स्थिति

प्रेमानंद जी (Premanand Ji Maharaj Ekantik Vartalap) का उत्तर उनकी भक्ति और साधना की गहराई को दर्शाता है। उनकी अंतिम इच्छा केवल राधा रानी की इच्छा का पालन करना है। यह दर्शाता है कि सच्चे भक्त की सारी इच्छाएं उसके प्रभु में विलीन हो जाती हैं।

यह कथा हमें यह समझने का संदेश देती है कि भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण से जीवन की सभी उलझनें समाप्त हो जाती हैं। इच्छाओं और मोह को छोड़कर, जब हम पूरी तरह से प्रभु को समर्पित हो जाते हैं, तब ही हमें सच्चा आनंद प्राप्त होता है।

राधे राधे!