कुत्ते को रोटी खिलाने से पहले प्रेमानन्द जी महाराज की ये बातें जरूर जान लें | Premanand Ji Maharaj ke Pravachan
Premanand Ji Maharaj ke Pravachan : एक व्यक्ति ने प्रेमानन्द जी महाराज से एक अत्यंत गूढ़ और भावुक प्रश्न पूछा, “गुरु जी, मेरा मन जीव-जंतु, पशु-पक्षियों की सेवा में ही ज्यादा लगता है जैसे की कुत्ते को रोटी खिलाना (Kutte Ko Roti Khilana), चिड़ियाओं को दाना-पानी देना और गौ सेवा इत्यादि। मैं अपनी कमाई का अधिकतर हिस्सा इसी सेवा में लगाता हूँ। क्या यह सही है?”
प्रेमानन्द जी महाराज (Premanand Ji Maharaj) ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा, “यह बहुत अच्छा है। अहंकार रहित होकर सेवा की जाए तो भगवान की ही प्राप्ति हो जाती है। क्योंकि हर जीव-जंतु, पशु-पक्षी के रूप में भगवान ही विराजमान होते हैं। जैसे कि संत नामदेव जी महाराज ने एक कुत्ते में भगवान को देखा और उसे प्रकट किया था।”
प्रेमानन्द जी (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) ने आगे श्री एकनाथ जी महाराज की कथा सुनाई। एक बार श्री एकनाथ जी महाराज गंगोत्री से गंगाजल लेकर रामेश्वर के लिए जा रहे थे। यह यात्रा उन्होंने कई भक्तों के साथ प्रारंभ की थी। जब वे रामेश्वर के निकट पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि एक गधा प्यास से तड़प रहा है। श्री एकनाथ जी महाराज ने विचार किया कि रामेश्वर जी को तो सब जल चढ़ाते हैं, पर यह प्यासा गधा तड़प रहा है, इसे कोई जल पिलाने वाला नहीं। उन्होंने गधे के पास जाकर उसका सिर गोद में लिया और ‘हर हर महादेव’ कहते हुए गंगाजल पिला दिया। उनके साथियों ने हंसते हुए कहा, ‘इतनी मेहनत करके गंगाजल लाए और गधे को पिला दिया! लेकिन तब भगवान रामेश्वर स्वयं प्रकट होकर बोले, ‘मैं ही इस गधे के रूप में था। तुमने मुझे गधे में पहचाना, इसलिए मैं तुम्हारी दया से द्रवित होकर प्रकट हुआ हूँ।
प्रेमानन्द जी (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) ने इस कथा के माध्यम से समझाया कि हर कण में भगवान शिव हैं, और यदि हम निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं, तो भगवान स्वयं हमें दर्शन देते हैं। इसीलिए पशु-पक्षियों की सेवा भगवान की सेवा है। लेकिन यह सेवा अहंकार रहित होनी चाहिए। यदि सेवा में अभिमान आ जाता है, तो उसका पुण्य समाप्त हो जाता है। प्रचार-प्रसार के बजाय सेवा गुप्त रखनी चाहिए, और यही सच्ची भक्ति है।
उन्होंने कहा, “यदि कोई आपसे पूछे कि आपने पक्षियों की सेवा की है, तो विनम्रता से उत्तर दें कि आप अपनी सेवा भी सही से नहीं कर पाते, पक्षियों की सेवा की बात दूर है। पुण्य कार्य को छुपाना चाहिए, क्योंकि जब हम पुण्य का ढिंढोरा पीटते हैं, तो उसका फल नष्ट हो जाता है। अगर पाप की बात आती है, तो उसे स्वीकार करें, इससे वह नष्ट हो जाएगा।”
प्रेमानन्द जी (Premanand Ji Maharaj) ने यह भी बताया कि सेवा करते समय यह भाव होना चाहिए कि भगवान ही हमारे सामने इन जीवों के रूप में उपस्थित हैं। जब हम पक्षियों को दाना डालते हैं या पशुओं को भोजन कराते हैं, तो यह सोचें कि ‘हे भगवान, आप ही इन रूपों में सेवा स्वीकार कर रहे हैं।’ इस भाव से की गई सेवा सच्ची भक्ति का रूप ले लेती है और इससे भगवान की प्राप्ति का मार्ग सरल हो जाता है।
सेवा के लिए अर्जित धन का भी महत्व है। गलत तरीके से अर्जित धन से की गई सेवा का कोई मूल्य नहीं होता, जबकि ईमानदारी से कमाए गए धन से की गई छोटी-से-छोटी सेवा भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। प्रेमानन्द जी (Premanand Ji Maharaj) ने राधा बाबा की कथा सुनाई, जिसमें बाबा ने भागवत कथा के बाद केवल उसी व्यक्ति से दक्षिणा लेने का निर्णय किया जिसका धन पवित्र था। एक गरीब घास खोदने वाला व्यक्ति अपने सवा रुपए लेकर आया और बाबा ने उसी से दक्षिणा स्वीकार की। बाबा ने स्पष्ट किया कि सच्ची सेवा और दक्षिणा धर्मपूर्वक कमाए धन से होनी चाहिए, चाहे वह छोटी हो या बड़ी।
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अंत में, प्रेमानन्द जी (Premanand Ji Maharaj ke Pravachan) ने कहा कि पशु-पक्षियों की सेवा से हमें यह सीखना चाहिए कि हम भगवान को केवल मूर्तियों में ही नहीं, बल्कि हर जीव-जंतु में देखें। यही भक्ति की सच्ची परिभाषा है। सेवा निस्वार्थ और पवित्र होनी चाहिए, और तब ही वह हमें सच्चे अर्थों में भगवान की प्राप्ति की ओर ले जाती है।
इसलिए, जो भी सेवा हम करते हैं, उसे प्रचारित न करें, बल्कि ईश्वर को धन्यवाद दें कि उन्होंने हमें सेवा करने का अवसर दिया। इस भावना के साथ की गई सेवा ही सच्ची सेवा मानी जाती है।