Karwa Chauth ki Kahani : करवा चौथ पर हर सुहागन जरूर सुने, यह करवा चौथ की पौराणिक कथा
Karwa Chauth ki Kahani : करवा चौथ का व्रत हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। इस व्रत के पीछे कई पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई हैं, जिनमें से एक प्रसिद्ध कथा साहूकार की बेटी की है, जिसे आज हम विस्तार से सुनेंगे।
करवा चौथ की पौराणिक कथा | Karwa Chauth ki Kahani in Hindi
एक समय की बात है, एक साहूकार था जिसकी सात बेटे और एक प्यारी बेटी थी। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा। उसने ठान लिया कि वह चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही अपना व्रत खोलेगी। दिन भर उसने व्रत के नियमों का पालन किया और चंद्रमा का बेसब्री से इंतजार करती रही।
साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे। वे उसे भूख से व्याकुल नहीं देख सकते थे, इसलिए उन्होंने नगर के पास एक पहाड़ी पर दीपक जलाकर चलनी के पीछे रख दिया। उन्होंने अपनी बहन से कहा, “देखो बहन, चाँद निकल आया है। अब तुम अपना व्रत खोल सकती हो।” भाई की बात मानकर साहूकार की बेटी ने चंद्रमा को अर्घ्य दिया और व्रत खोलने की तैयारी करने लगी।
हालांकि, उसकी भाभियों ने उसे चेताया, “यह तो तुम्हारा झूठा चांद है। हमारा चांद अभी निकलने वाला है।” परंतु वह भूख से व्याकुल थी, इसलिए उसने भाभियों की बात अनसुनी कर दी और भोजन करने बैठ गई। पहले निवाले के साथ ही उसे छींक आ गई, दूसरे में बाल निकल आया, और तीसरा निवाला उठाते ही उसके ससुराल से संदेश आया कि उसका पति गंभीर रूप से बीमार है।
करवा चौथ की पौराणिक कथा | Karwa Chauth ki Kahani in Hindi
वह अपने पति की स्थिति सुनकर परेशान हो गई और तुरंत ससुराल के लिए निकल पड़ी। उसकी माँ ने उसे विदा करते समय कहा, “बेटी, रास्ते में जो भी मिले, उसके पैर छूना और जो भी तुझे ‘सदा सुहागन रहो’ का आशीर्वाद दे, उसे अपने पल्ले में बांध लेना।” साहूकार की बेटी ने माँ की बातों को मान लिया और पूरे रास्ते जो भी उसे मिला, उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेती रही।
जब वह अपने ससुराल पहुंची, तो देखा कि उसके पति का शव तैयार रखा गया है। उसे यह देखकर बहुत दुःख हुआ। वह अपने पति के शव के पास बैठकर जोर-जोर से रोने लगी और लोगों से कहा, “मैं इन्हें जाने नहीं दूंगी।” ससुराल वाले उसे शांत करने की कोशिश करते रहे, लेकिन वह नहीं मानी। अंततः उसे श्मशान ले जाया गया, लेकिन वहां भी वह अपने पति को जलाने नहीं दे रही थी। इस पर ससुराल वाले नाराज हो गए, लेकिन उसने किसी की बात नहीं सुनी।
उसने अपने पति के शव के पास एक झोपड़ी में रहने का निश्चय किया। वह दिन में दो बार पति की सेवा करती और हर चौथ का व्रत रखती। हर बार जब चौथ माता प्रकट होतीं, तो वह उनसे अपने पति के प्राण मांगती। चौथ माता हर बार कहतीं, “मुझसे बड़ी चौथ माता आएंगी, उन्हीं से अपने पति के प्राण मांगना।” इस तरह कई चौथ माता आईं और चली गईं।
करवा चौथ की पौराणिक कथा | Karwa Chauth ki Kahani in Hindi
अंततः कार्तिक मास की चौथ माता आईं, जिनसे साहूकार की बेटी ने व्रत की पूरी तैयारी की थी। उसने 16 श्रृंगार और करवा मंगवाए और चौथ माता के स्वागत के लिए सज-धजकर तैयार हो गई। जब चौथ माता प्रकट हुईं, तो उसने उनके पैर पकड़ लिए और बोली, “माता, मेरा सुहाग मुझे वापस दे दीजिए।”
चौथ माता ने पहले उसे कई परीक्षाओं से गुजारा, लेकिन साहूकार की बेटी ने हार नहीं मानी। अंततः माता ने उसकी भक्ति और दृढ़ता से प्रसन्न होकर उसके पति के प्राण वापस कर दिए। माता ने अपने काजल, मेंहदी और सिंदूर से उसके पति के शरीर पर छींटा दिया, जिससे वह जीवित हो गया।
करवा चौथ की पौराणिक कथा | Karwa Chauth ki Kahani in Hindi
साहूकार की बेटी का पति जब जीवित हो गया, तो उसकी छोटी ननद ने यह खबर पूरे परिवार को दी। परिवार वाले गाजे-बाजे के साथ उसे लेने आए और उसकी सास भी उसकी भक्ति और शक्ति के आगे नतमस्तक हो गई। चौथ माता ने उसकी झोपड़ी को महल में बदल दिया, और साहूकार की बेटी का जीवन सुख और समृद्धि से भर गया।
इस प्रकार, करवा चौथ की इस कथा को सुनने और सुनाने से व्रती महिलाओं को अपने पति के दीर्घायु होने का आशीर्वाद मिलता है, और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। यह कथा हमें यह भी सिखाती है कि सच्चे मन से की गई पूजा और समर्पण कभी व्यर्थ नहीं जाते। जय चौथ माता!