कार्तिक मास का व्रत क्यों करना चाहिए? प्रेमानंद जी महाराज ने समझाया

कार्तिक मास का व्रत क्यों करना चाहिए? प्रेमानंद जी महाराज ने समझाया

कार्तिक मास का व्रत क्यों करना चाहिए? प्रेमानंद जी महाराज ने समझाया

कार्तिक मास का व्रत : कार्तिक मास हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। यह महीना भक्ति, उपासना और व्रत के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस अवधि में भगवान श्री कृष्ण और देवी राधा की विशेष पूजा की जाती है। प्रेमानंद जी महाराज ने इस महीने के महत्व को गहराई से समझाया है, और उनके उपदेश हमें सच्ची भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।

कार्तिक मास का महत्व

कार्तिक मास की शुरुआत दीपावली के बाद होती है। यह महीना धार्मिक दृष्टि से अनेक महत्वपूर्ण अवसरों से भरा हुआ है, जैसे एकादशी, पूर्णिमा और तुलसी विवाह। भक्त इस समय विशेष रूप से व्रत और अनुष्ठान करते हैं, जिससे उन्हें भगवान की कृपा प्राप्त होती है। प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, कार्तिक मास का व्रत हमें प्रभु के चरणों में गहरी श्रद्धा और प्रेम में लाता है।

प्रेमानंद जी महाराज का दृष्टिकोण :कार्तिक मास 

प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि कार्तिक मास का व्रत केवल अनुशासन नहीं, बल्कि यह आत्मिक उन्नति का मार्ग है। वे कहते हैं, “हम कभी भी निषेध नहीं करते; व्रत का उद्देश्य प्रभु के प्रति प्रेम और भक्ति बढ़ाना है।” यह विचार हमें बताता है कि व्रत का असली मतलब भगवान के प्रति निष्ठा और प्रेम को बढ़ावा देना है।

अनुष्ठान का महत्व

प्रेमानंद जी महाराज ने इस बात पर जोर दिया है कि कार्तिक मास में अनुष्ठान का विशेष महत्व है। उनका कहना है कि इस महीने में किए गए कार्तिक मास का व्रत और साधना हमें भागवत प्रेम की ओर अग्रसर करते हैं। उन्होंने कहा, “हमेशा हमें अनुष्ठान में रहना चाहिए।” इसका तात्पर्य है कि भक्ति का यह क्रम निरंतर जारी रहना चाहिए।

भक्ति का सही अर्थ

प्रेमानंद जी महाराज ने भक्ति के सच्चे अर्थ को स्पष्ट किया है। वे बताते हैं कि भक्ति केवल नियमों और रिवाजों का पालन नहीं है, बल्कि यह हमारे हृदय की गहराई से जुड़ी एक भावना है। कार्तिक मास का व्रत करने का असली उद्देश्य है अपने मन में भगवान के प्रति प्रेम और श्रद्धा को जगाना।

कार्तिक मास के व्रत की विधि

कार्तिक मास का व्रत रखने की विधि सरल है। प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, हमें अपने मन में निस्वार्थ भाव से प्रभु की आराधना करनी चाहिए। वे कहते हैं, “कोई भी अनुष्ठान करें, उसका फल होना चाहिए प्रिया प्रीतम का प्रेम।” इसका अर्थ है कि व्रत का मुख्य उद्देश्य प्रेम और भक्ति होना चाहिए।

कार्तिक मास में भक्ति की विशेषता

इस महीने में भक्ति का एक अद्वितीय पहलू है, जो इसे अन्य महीनों से अलग बनाता है। प्रेमानंद जी महाराज ने कहा, “हमारे लिए हर दिन, हर क्षण प्रभु के चिंतन में रहना चाहिए।” इससे यह स्पष्ट होता है कि कार्तिक मास में की गई भक्ति हमें भगवान के निकट लाती है।

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निष्कर्ष

कार्तिक मास का व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें आत्मिक विकास और प्रेम की ओर ले जाता है। प्रेमानंद जी महाराज का संदेश है कि भक्ति का असली अर्थ प्रभु के प्रति हमारे हृदय में प्रेम और अनुराग को जगाना है। इसलिए, हमें कार्तिक मास में व्रत करते समय अपनी भावना से प्रभु की आराधना करनी चाहिए।

इस प्रकार, कार्तिक मास का व्रत हमें न केवल धार्मिक अनुशासन में बंधता है, बल्कि सच्ची भक्ति की ओर भी अग्रसर करता है। यह महीना हमें सिखाता है कि प्रेम और भक्ति के मार्ग पर चलकर ही हम सच्ची शांति और आनंद प्राप्त कर सकते हैं। मित्रों अगर आपको यह जानकारी पसंद आई है तो अपने परिवारजनों और मित्रों के साथ अवश्य साझा करें।