गणेश जी की स्थापना और पूजा के नियम: प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार
गणेश जी की स्थापना : प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं गणपति, जिन्हें विघ्नहर्ता और शुभ-लाभ के दाता के रूप में जाना जाता है, को हर वर्ष भक्त अपने घरों में लाते हैं और श्रद्धापूर्वक उनकी पूजा करते हैं। प्रेमानंद जी महाराज ने गणपति की पूजा के महत्व और नियमों पर अपने प्रवचनों में गहन शिक्षा दी है। आइए उनके द्वारा बताए गए नियमों और पूजा विधि को समझते हैं।
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Toggle1. गणपति स्थापना का महत्व
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, गणेश जी की स्थापना से पहले व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से पवित्रता का पालन करना चाहिए। गणपति की मूर्ति केवल उनकी कृपा को प्राप्त करने के लिए नहीं, बल्कि जीवन में शांति और समृद्धि लाने के लिए स्थापित की जाती है। महाराज जी का मानना है कि गणेश जी की स्थापना से पहले मन और घर को स्वच्छ और सकारात्मक ऊर्जा से भरना आवश्यक है।
2. पूजा स्थल का चुनाव
गणेश जी की स्थापना के लिए सही स्थान का चयन बहुत महत्वपूर्ण है। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि गणपति को पूर्व दिशा या उत्तर-पूर्व दिशा में स्थापित करना चाहिए, क्योंकि यह दिशा आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मकता से भरपूर मानी जाती है। पूजा स्थल पर सफाई और सुगंधित धूप, दीपक का होना आवश्यक है, जिससे वातावरण शुद्ध और पवित्र बना रहे।
3. गणपति पूजा के नियम
प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि गणपति की पूजा करते समय निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए:
मंत्र जाप: पूजा के समय गणपति मंत्र का जाप अनिवार्य है। महाराज जी कहते हैं कि “ॐ गण गणपतये नमः” मंत्र का नियमित रूप से उच्चारण करने से भगवान गणपति की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
स्वच्छता और संयम: पूजा करते समय व्यक्ति को पूरी तरह से स्वच्छ और संयमित रहना चाहिए। महाराज जी का मानना है कि पूजा करते समय केवल शुद्ध विचार और सकारात्मक ऊर्जा ही भगवान गणपति को प्रसन्न कर सकती है।
भक्ति भाव: प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, भक्ति में सबसे महत्वपूर्ण तत्व श्रद्धा है। गणपति की पूजा में गहन भक्ति और समर्पण का होना अनिवार्य है। केवल बाहरी विधियों से पूजा सफल नहीं होती, अपितु गणपति के प्रति सच्चे मन से की गई प्रार्थना ही फलदायी होती है।
4. आहार और संयम का पालन
गणेश जी की स्थापना के दौरान महाराज जी शुद्ध शाकाहारी भोजन का सेवन करने की सलाह देते हैं। वह कहते हैं कि इस दौरान सात्विक आहार का ही महत्व है। यह केवल शरीर को नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी पवित्र करता है। पूजा के समय शराब, मांसाहार और तामसिक भोजन से दूरी बनाए रखनी चाहिए।
5. परिवार की सहभागिता
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, गणेश जी की स्थापना में पूरे परिवार का सम्मिलित होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। गणपति पूजा का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं है, बल्कि यह पूरे परिवार की समृद्धि और शांति के लिए की जाती है। महाराज जी कहते हैं कि यदि पूरा परिवार एक साथ पूजा करता है तो गणपति की कृपा और भी शीघ्र प्राप्त होती है।
6. प्रसाद का वितरण
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, गणेश जी की स्थापना के बाद प्रसाद का वितरण करना अनिवार्य है। महाराज जी का मानना है कि प्रसाद केवल भोग नहीं, बल्कि भगवान का आशीर्वाद होता है, जिसे सभी को समान रूप से बांटना चाहिए। वह कहते हैं कि प्रसाद का वितरण परिवार और समाज में प्रेम और एकता को बढ़ावा देता है।
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7. विसर्जन का महत्व
गणेश जी की स्थापना के बाद विसर्जन की प्रक्रिया का विशेष महत्व है। महाराज जी कहते हैं कि विसर्जन से यह संकेत मिलता है कि इस संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। गणपति की मूर्ति का विसर्जन करते समय भक्तों को शांति, प्रेम और समर्पण के भाव से इसे करना चाहिए। विसर्जन केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि भगवान के प्रति अपनी आस्था और प्रेम का पुनः स्मरण है।
8.आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग
प्रेमानंद जी महाराज यह भी बताते हैं कि गणपति की पूजा केवल सांसारिक सुख-सुविधाओं के लिए नहीं की जानी चाहिए। गणपति की पूजा का वास्तविक उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति है। गणपति का ध्यान और उनकी पूजा आत्मशुद्धि और मोक्ष की ओर ले जाती है। महाराज जी का कहना है कि जो भक्त गणपति की पूजा में स्थिर मन और समर्पण से जुटता है, उसे आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही लाभ प्राप्त होते हैं।
निष्कर्ष
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, गणपति की पूजा न केवल हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है, बल्कि यह आत्मशुद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करती है। गणपति की पूजा में श्रद्धा, स्वच्छता, और भक्ति का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। गणपति की पूजा के ये नियम हमें भगवान के प्रति हमारी आस्था को और मजबूत करते हैं, जिससे हमारा जीवन सकारात्मक और संतुलित बनता है।