प्रयागराज महाकुंभ 2025 में आए एक ऐसे नागा बाबा M.Tech की डिग्री और 40 लाख की सैलरी छोड़ बने संत
प्रयागराज महाकुंभ 2025 हर बार एक अनोखा संगम होता है, जहां लाखों श्रद्धालु धार्मिक आस्था के साथ स्नान करने और पुण्य अर्जित करने के लिए एकत्रित होते हैं। इस महाकुंभ में विशेष रूप से नागा साधुओं का एक अलग स्थान है। नागा साधु अपने कठोर साधना और शारीरिक तथा मानसिक बल से प्रसिद्ध होते हैं। यही कारण है कि उनके जीवन के बारे में जानने की जिज्ञासा हमेशा बनी रहती है। आज हम एक ऐसे संत की कहानी जानेंगे, जिन्होंने अपनी शैक्षिक और भौतिक सफलता के बाद पूरी तरह से सन्यास लिया और एक नागा बाबा के रूप में जीवन जी रहे हैं। उनका नाम है दिगंबर कृष्ण गिरी, जो निरंजनी अखाड़े के एक प्रसिद्ध साधु हैं।
M.Tech की डिग्री और मल्टीनेशनल कंपनियों में करियर (प्रयागराज महाकुंभ 2025)
दिगंबर कृष्ण गिरी जी का जन्म एक धार्मिक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता एक प्रतिष्ठित पुरोहित थे और कृष्ण गिरी जी का पालन-पोषण धार्मिक वातावरण में हुआ। उन्होंने कर्नाटका के हासन शहर में अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और फिर सिविल इंजीनियरिंग में अपनी डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने कर्नाटका यूनिवर्सिटी से एमटेक की डिग्री पूरी की।
कृष्ण गिरी जी ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मल्टीनेशनल कंपनियों में कार्य करना शुरू किया। उन्होंने कई सालों तक इंटीरियर डिज़ाइनिंग और सिविल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में काम किया। उनकी आखिरी नौकरी दिल्ली स्थित एक प्रसिद्ध बिल्डर के साथ थी, जहां वह एक सीनियर इंजीनियर के रूप में कार्यरत थे। इस समय उनकी सैलरी पैकेज करीब 40 लाख रुपये प्रति वर्ष था, जो उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मुकाम था।
सन्यास लेने का निर्णय
हालाँकि, भौतिक सुख-सुविधाओं और करियर की ऊंचाइयों पर होने के बावजूद कृष्ण गिरी जी का मन संतुष्ट नहीं था। एक दिन उन्होंने महसूस किया कि जीवन का असली उद्देश्य केवल भौतिक चीजों में नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और साधना में छिपा है। इस एहसास ने उनके जीवन की दिशा बदल दी।
2010 में, जब उन्होंने यह महसूस किया कि उनकी आत्मा को शांति की आवश्यकता है, तो उन्होंने अपने सारे ऐशोआराम और भौतिक सुखों को छोड़कर सन्यास लेने का निर्णय लिया। उन्होंने निरंजनी अखाड़े को अपना आध्यात्मिक घर बना लिया और दिगंबर कृष्ण गिरी के नाम से पहचाने जाने लगे। इस कदम के साथ, उन्होंने आत्मा के साथ एक गहरी साझेदारी की ओर कदम बढ़ाया और बाहरी दुनिया से अलहदा होकर साधना की ओर अग्रसर हो गए।
महाकुंभ में दिगंबर कृष्ण गिरी
आज, कृष्ण गिरी जी प्रयागराज के महाकुंभ में निरंजनी अखाड़े के बाहर साधना में लीन रहते हैं। उनका रूप पूरी तरह से एक साधु जैसा है, जिसमें लंबी जटाएं, बढ़ी हुई दाढ़ी, गले में रुद्राक्ष की माला और हाथ में भगवान शिव का त्रिशूल है। त्रिशूल पर चढ़े फूल और उनकी साधना में गहरी श्रद्धा, उन्हें उनके भक्तों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पर्याप्त होते हैं।
प्रयागराज महाकुंभ 2025 में कृष्ण गिरी जी के पास आशीर्वाद लेने के लिए भक्तों की भारी भीड़ होती है। उनकी साधना और तप से प्रेरित होकर लोग उनके पास आते हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में शांति और समृद्धि की कामना करते हैं। यह दृश्य यह दर्शाता है कि भौतिक सफलता और सामर्थ्य से कहीं बढ़कर, आत्मा की शांति और साधना ही सबसे बड़ा लाभ है।
सन्यास का गहरा संदेश
कृष्ण गिरी जी की कहानी यह बताती है कि जीवन में केवल भौतिक सुखों का पीछा करना ही नहीं, बल्कि अपने आत्मिक उद्देश्यों को भी समझना और उन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उनके जीवन के इस महत्वपूर्ण मोड़ ने यह सिद्ध कर दिया कि सांसारिक जीवन की दौड़ में रुककर, आत्मा की शांति की खोज करना कितना जरूरी है। उन्होंने एक ऐशोआराम भरे जीवन को छोड़कर, साधना और तप के रास्ते को अपनाया और जीवन का असली उद्देश्य पहचानने की ओर बढ़े।
महाकुंभ में नागा साधुओं की उपस्थिति हमें यह समझने का अवसर देती है कि साधना और तप के माध्यम से हमें आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। कृष्ण गिरी जी का जीवन इस बात का प्रतीक है कि भौतिक साधनों के ऊपर आत्मिक साधना का मूल्य कहीं अधिक होता है। उनका जीवन यह सिखाता है कि किसी भी व्यक्ति को अगर सच्ची शांति चाहिए, तो उसे अपने भीतर की ओर देखना होगा और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर चलना होगा।
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निष्कर्ष
दिगंबर कृष्ण गिरी जी का जीवन यह बताता है कि अगर हम अपनी आत्मा की आवाज सुनें और भौतिकता से ऊपर उठकर अपने वास्तविक उद्देश्य की पहचान करें, तो हम भी जीवन में शांति और संतुलन प्राप्त कर सकते हैं। प्रयागराज महाकुंभ 2025 में उनके जैसे संतों से यह सिखने को मिलता है कि साधना, तप और भक्ति के मार्ग पर चलकर ही हम अपने जीवन को पूर्णता की ओर अग्रसर कर सकते हैं।
उनकी यात्रा से यह संदेश मिलता है कि हमें अपनी जीवन की प्राथमिकताओं पर विचार करना चाहिए और भौतिक संतुष्टि से परे, आत्मिक उन्नति की ओर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।