भगवान श्री राम ने सीता माता का त्याग क्यों किया? यह रहा पूरा और सही जवाब | Why did Shree Ram Left Sita?

भगवान श्री राम ने सीता माता का त्याग क्यों किया? यह रहा पूरा और सही जवाब | Why did Shree Ram Left Sita?

भगवान श्री राम ने सीता माता का त्याग क्यों किया? यह रहा पूरा और सही जवाब | Why did Shree Ram Left Sita?

भगवान श्री राम द्वारा माता सीता का त्याग : रामायण की कथा में भगवान श्री राम और माँ सीता के बीच वियोग एक गूढ़ और संवेदनशील विषय है। इस पर सवाल उठाए जाते हैं कि क्या श्री राम का माँ सीता का त्याग न्यायसंगत था या नहीं? आध्यात्मिक, कार्मिक, और सामाजिक दृष्टिकोण से इस घटना का विश्लेषण करना आवश्यक है। साथ ही, इस घटना पर माँ सीता के दृष्टिकोण और उनकी इच्छाओं को भी समझना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह त्याग केवल श्री राम का नहीं, बल्कि माँ सीता के जीवन का भी एक अभिन्न हिस्सा है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

श्री राम और माँ सीता दोनों ही दिव्य अवतार हैं। श्री राम विष्णु के अवतार हैं और माँ सीता देवी लक्ष्मी का। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह कहा जाता है कि दोनों के बीच कोई वास्तविक वियोग हो ही नहीं सकता। उनका वियोग केवल सांसारिक लीला का हिस्सा था। इस दृष्टि से देखें तो यह समझ आता है कि श्री राम और माँ सीता ने अपने-अपने कर्तव्यों को निभाने के लिए सांसारिक जीवन में अलगाव सहा। यह घटना उनके द्वारा हमें जीवन में त्याग, धर्म और कर्तव्य का महत्व सिखाने के लिए हुई।

Why did Shree Ram Left Sita?

कार्मिक दृष्टिकोण:

कार्मिक दृष्टिकोण से यह घटना उत्तरकांड के ही 51वे स्वर्ग, महर्षि भृगु के श्राप से जुड़ी मानी जाती है। श्राप के कारण भगवान विष्णु को बार-बार अपनी पत्नी का वियोग सहना पड़ा, चाहे वह रावण द्वारा सीता जी का हरण हो या बाद में उनका त्याग। इस दृष्टिकोण से श्री राम और माँ सीता का वियोग पहले से तय था। ऐसे में यह एक प्रकार से विधि का विधान था, जिसे बदलना संभव नहीं था।

सामाजिक दृष्टिकोण:

जैसी की आम मान्यता है, राजा बनने के बाद श्री राम जी अपना रूप बदलकर अयोध्या नगर का भ्रमण कर रहे थे। वहीं पर एक धोबी के मुँह से उन्होंने अपना अपमान और सीता जी की अप कीर्ति सुन ली थी और जिसके बाद सीता जी का त्याग कर दिया था। अब यहाँ पर आक्षेप लगाने वाले कहते हैं कि एक धोबी के चलते, एक धोबी के मुँह से बोली हुई बात से श्रीराम जी ने अपनी प्रिय पत्नी का त्याग कर दिया।  यह बात सच नहीं है, सच यह है कि पूरा का पूरा समाज ही यह कह रहा था, सिर्फ एक धोबी ही नहीं था। जिसकी वजह से श्री राम जी को इस पर एक निर्णय लेना था।

इसके बारे में उत्तरकांड में ही दिया गया है। अगर आप 43वां  स्वर्ग देखें तो वहाँ पर श्री राम जी से पूछ रहे हैं कि अयोध्यावासी उनके बारे में, लक्ष्मण जी के बारे में, भरत जी के बारे में और सीता जी के बारे में क्या बातें कर रहे हैं?

तब भद्र जी कहते हैं कि अयोध्या वासी बहुत ढेर सारी शुभ बातें और बहुत ढेर सारी अशुभ बातें, उनके बारे में कर रहे हैं। जिस पर श्री राम जी स्वयं कहते हैं कि मेरी प्रजा जो शुभ बातें कर रही है, मैं उसका ही आचरण करूँगा और जो अशुभ बातें कर रही है, जो उनको नहीं पसंद आ रहा है वह कार्य मैं नहीं करूँगा। यही मेरा राज़ धर्म है तो यहाँ पर भद्र जी फिर राम जी को वो वो बात बताते हैं जो हर एक व्यक्ति चौराहे, सड़क और हर एक जगह पर उनके बारे में बात कर रहा है।

Why did Shree Ram Left Sita?

यही पर भद्र बताते हैं कि पूरे के पूरे अयोध्यावासी ये बोल रहे हैं कि श्रीराम जी ,सीता जी के प्रेम में इतना चूर हैं। उनके आलिंगन सुख में इतना चूर हो गए हैं कि उनको ये नहीं पता है कि वो 1 साल तक किसी और के यहाँ रहकर आई है। तो यहाँ पर यह बात साफ होती है कि कोई धोबी ही नहीं बल्कि पूरी की पूरी अयोध्या की जो प्रजा थी उनमें ये द्वेष आ गया था।

सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो यह त्याग पूरी तरह से श्री राम के कर्तव्य और राज धर्म से जुड़ा था। जब अयोध्या के आम नागरिकों ने सीता जी की शुद्धता पर सवाल उठाए, तो श्री राम ने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए यह कठोर निर्णय लिया। एक आदर्श राजा के रूप में श्री राम के लिए प्रजा की राय अत्यधिक महत्वपूर्ण थी। समाज की भावनाओं और प्रतिष्ठा के मद्देनज़र, उन्होंने सीता जी का त्याग किया, क्योंकि उनके लिए राजा धर्म सबसे महत्वपूर्ण था।

माँ सीता का दृष्टिकोण और इच्छा:

माँ सीता ने वाल्मीकि आश्रम में रहने की इच्छा प्रकट की थी। उन्होंने श्री राम से कहा था कि वह किसी ऋषि के आश्रम में रहकर अपने जीवन के शेष समय को अध्यात्म, शांति और साधना में बिताना चाहती हैं। उन्होंने भगवान श्री राम के निर्णय को सहजता से स्वीकार किया और वाल्मीकि जी के आश्रम में जाकर अपने पुत्रों लव-कुश का पालन-पोषण किया। माँ सीता ने अपने त्याग और धैर्य के माध्यम से यह साबित किया कि उनका जीवन केवल एक पत्नी के रूप में ही नहीं, बल्कि एक माँ, एक देवी, और एक आदर्श नारी के रूप में भी उत्कृष्ट था।

Why did Shree Ram Left Sita?

माँ सीता के लिए पति धर्म और राजधर्म के बीच का अंतर बहुत स्पष्ट था। उन्होंने स्वयं कहा था कि अगर श्री राम को राजधर्म निभाने के लिए उनसे दूर जाना पड़े, तो यह उनका कर्तव्य है कि वे इस निर्णय को स्वीकार करें। उन्होंने अपने पति के निर्णय का सम्मान किया, क्योंकि वह जानती थीं कि एक आदर्श राजा के लिए प्रजा की भलाई सर्वोपरि होती है। इसके साथ ही, उनका त्याग इस बात को दर्शाता है कि वह व्यक्तिगत दुख से ऊपर उठकर अपने पति और समाज के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करने को तैयार थीं।

भगवान राम और माँ सीता का दुख:

श्री राम और माँ सीता दोनों ही इस त्याग के बाद अत्यधिक दुखी थे। श्री राम ने सीता जी को त्यागने के बाद भी उनका सम्मान बनाए रखा। उन्होंने यज्ञों में सीता जी की स्वर्ण मूर्ति को अपनी पत्नी के रूप में रखा, और जीवनभर किसी और स्त्री से विवाह नहीं किया। श्री राम इतने शोक में चले गए थे जिसका वर्णन करते हुए वो कहते हैं “एक तरफ तो पूरा का पूरा समाज एक पूरी पूरी मेरी प्रजा है, जिसमें द्वेष भाव उत्पन्न हो गया है जो मुझे शोक ग्रसित करती है साथ में इसकी वजह से मुझे अपनी पत्नी को भी छोड़ना पड़ रहा है। मैं तो शोक के समुद्र में गिर गया हूँ “

यह दर्शाता है कि उनका सीता जी के प्रति प्रेम और सम्मान अमर था। दूसरी ओर, माँ सीता ने अपने पुत्रों की परवरिश अकेले की और जीवन के अंत में अपनी पवित्रता को प्रमाणित करते हुए धरती माँ में समा गईं।

Why did Shree Ram Left Sita?

इसके बाद अयोध्या वासियों को अपनी भूल का एहसास होता है और उनके मन में श्री राम जी और सीता जी के लिए सम्मान कई गुना बढ़ जाता है। इसीलिए आज कलयुग में भी हम श्री राम जी और सीता जी की पूजा भगवान के रूप में करते हैं।

सीता त्याग: सही या गलत?

श्री राम के इस निर्णय पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। उनके द्वारा सीता जी का त्याग नैतिक रूप से सही था या गलत, यह उस समय के सामाजिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए। श्री राम ने राजधर्म निभाया और माँ सीता ने पत्नी धर्म निभाया। इस त्याग का मूल्यांकन करते समय यह समझना आवश्यक है कि उस समय समाज की संरचना और अपेक्षाएँ क्या थीं।

यह भी पढ़ें : भगवान राम और माँ सीता का विवाह किस उम्र में हुआ था? यह रहा जवाब वाल्मीकि रामायण से

शिक्षा:

श्री राम और माँ सीता की कथा हमें जीवन में कर्तव्य, त्याग और धैर्य की शिक्षा देती है। दोनों ने अपने-अपने धर्म का पालन किया और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को सबसे ऊपर रखा। माँ सीता न   का त्याग हमें यह सिखाता है कि जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना धैर्य, साहस और आत्म-सम्मान से करना चाहिए।

Why did Shree Ram Left Sita?

निष्कर्ष:

श्री राम और माँ सीता की कथा हमें आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा देती है। उनका वियोग केवल एक सांसारिक घटना नहीं, बल्कि एक आदर्श कर्तव्य पालन और त्याग की मिसाल है। माँ सीता ने अपने त्याग के माध्यम से समाज को यह सिखाया कि एक स्त्री का सम्मान और उसका त्याग उसके सच्चे धर्म और आत्मबल का प्रतीक होता है। उनकी इच्छाएँ और दृष्टिकोण इस बात को स्पष्ट करते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में प्रेम और धर्म को सर्वोपरि रखा।