The Lallantop Exposed : Sadhguru को लेकर लल्लनटॉप की खुल गई पोल | हो गया पूरी तरह Exposed

The Lallantop Exposed : Sadhguru को लेकर लल्लनटॉप की खुल गई पोल | हो गया पूरी तरह Exposed

The Lallantop Exposed : Sadhguru को लेकर लल्लनटॉप की खुल गई पोल | हो गया पूरी तरह Exposed

The Lallantop Exposed : लल्लनटॉप यूट्यूब चैनल जिसे लोग उसकी निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए पसंद करते हैं इसी वजह से आज इस चैनल के 30 मिलियन से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं। लेकिन वर्तमान में इस चैनल ने सद्गुरू (Sadhguru) को लेकर कुछ ऐसा किया जो कि आज इसकी निष्पक्ष पत्रकारिता पर सवाल खड़े करता है। लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) की यह हरकत कई Viewrs को पसंद नहीं आई तो उन्होंने चैनल की विडियोज पर काफी सारे कमेंट करके विरोध दर्ज किया। लेकिन इनमें से कई viewrs का यह भी कहना था कि उनके विरोध को दबाने के लिए, उनके द्वारा किए गए कमेंट्स को चैनल की तरफ से डिलीट कर दिया गया।

अब सवाल यह उठता है लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) ऐसा क्या कर रहा है जो इसके और सद्गुरू के फॉलोवर्स को पसंद नहीं आ रहा है और जो इसकी निष्पक्ष पत्रकारिता पर सवाल खड़ा करता है। इस आर्टिकल में हम विस्तार से इसी के बारे में बात करेंगे।

लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) पर काफी पहले से यह आरोप लगता आया है कि सद्गुरू को लेकर ज्यादातर इसकी एप्रोच नकारात्मक रही है। यह चैनल सद्गुरू को लेकर आई हर एक नेगेटिव न्यूज को जोर शोर से प्रस्तुत करता है लेकिन वहीं जब कोई पॉजिटिव न्यूज आती है तो उसे काफी हद तक इग्नोर कर दिया जाता है।

जैसे एक वीडियो में यह बताया कि सद्गुरु के आश्रम से 6 लोग लापता हैं|

लेकिन इसके आगे की खबर जिसमें बताया जाना था कि 6 में से 5 गुमशुदा लोग मिल चुके हैं उनके केस भी बंद हो चुके हैं| इस पर आपको लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) की मुश्किल ही कोई वीडियो मिलें। जो की नीचे दी गई है…

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अब इस पॉजिटिव न्यूज पर कोई वीडियो क्यों नहीं बनाई गई, क्यों इस खबर की पहुंच को सीमित रखा गया, यह सब लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) की मंशा पर एक प्रश्नचिन्ह लगता है, यह वही प्रश्न चिन्ह “?” है जो इन्हें अपनी इस वीडियो के थंबनेल में लगाना था।

 

आइए अब जरा इसकी भी बात कर लेते हैं।

यह सब शुरू हुआ लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) की इस वीडियो से…

जिसमें बताया गया, एक रिटायर्ड प्रोफ़ेसर ने ईशा फाउंडेशन पर आरोप लगा दिया है कि उनकी दो पढ़ी-लिखी बेटियों का ‘ब्रेनवॉश’ कर उन्हें ईशा योग केंद्र में रखा जा रहा है। वो इस मामले को लेकर मद्रास हाई कोर्ट गए। जहां जस्टिस S.M. सुब्रमण्यम और जस्टिस वी शिवगणनम की पीठ ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु सदगुरु जग्गी वासुदेव से सवाल पूछा कि जब उन्होंने अपनी बेटी की शादी कर दी है, तो वो दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और सांसारिक जीवन त्यागकर संन्यासियों की तरह रहने के लिए क्यों कह रहे हैं।

इसके बाद High court के कहने पर एक SP ऑफिसर के साथ 150 पुलिस वाले जांच के लिए Isha Foundation भी भेजे गए।

इसके बाद 3 Oct को इसी Case को लेकर लल्लनटॉप की यह वीडियो आती है…

जिसके Thumbnail पर लिखा जाता है फंस गया सद्गुरू का ईशा फाउंडेशन, No Question Mark (!)। इसे देखकर आसानी से कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि जो आरोप ईशा फाउंडेशन पर लगाए गए वो सही साबित हुए और अब वो इसमें फस चुका है। लेकिन जब आप अंदर पूरी न्यूज देखते हैं तो पता लगता है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है और सुप्रीम कोर्ट का आदेश ईशा फाउंडेशन के समर्थन में आया है ना कि अगेंस्ट में। शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के निर्देश के बाद शुरू हुई पुलिस की कार्रवाई पर रोक लगा दी और कहा कि हाई कोर्ट को आदेश पारित करते समय अधिक सतर्क रहना चाहिए था और ऐसे संस्थानों में आर्मी या पुलिस को घुसने नहीं दिया जा सकता।

अब आप में से कई लोग होंगे जो कहेंगे कि ठीक है थंबनेल में Clickbait के लिए ऐसा लिख दिया होगा, अंदर तो कम से कम सही खबर दिखाई है। तो इसके लिए आपको थंबनेल का यह खेल समझना होगा। Youtube पर जितने लोग किसी वीडियो के थंबनेल को देखते हैं उनमें औसतन 5% लोग ही वीडियो पर क्लिक करते हैं| Lallantop के केस में हम इसे 10% लेकर चलते हैं जो कि बहुत ज्यादा है|

लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) की इस वीडियो को 4 नवंबर तक 6 लाख 50 हजार से ज्यादा लोग देख चुके हैं, मतलब कि 60 लाख 50 हजार से ज्यादा लोग ऐसे होंगे जो सिर्फ थंबनेल देख कर, बिना वीडियो पर क्लिक करे आगे निकल गए होंगे|
अगर इस प्रतिशत को 10% की जगह औसत प्रतिशत मतलब कि 5% लिया जाए तो इन लोगो की संख्या 1 करोड़ 30 लाख हो जाती है जिन्होंने बिना पूरी न्यूज देखे सिर्फ थंबनेल देखकर अपनी एक नकारात्मक राय सद्गुरू और ईशा फाउंडेशन के लिए बना ली होगी।

अब इससे आप समझ सकते हैं कि किसी भी व्यक्ति के बारे में अगर आप कोई Narrative सेट करना चाहे तो आप यह आसानी से Thumbnail के माध्यम से कर सकते हैं, मात्र अलग अलग खबरों पर अपने Narrative के हिसाब से Thumbnail लगा कर। वीडियो के अंदर की न्यूज सही है तो इसलिए आप पर कोई गलत खबर दिखाने की कार्यवाही भी नहीं कर सकता।

अपना पसंदीदा Narrative सेट करने के लिए आप एक काम और कर सकते हैं, अगर आप को दोनों ही खबरें कवर करनी है तो वे खबरें जो आपके एजेंडे में सेट होती हैं उनकी पहुँच (reach) ज्यादा रखें, Youtube पर आकर्षित करने वाला थंबनेल लगाएं,खबरों को अपने सभी सोशल मीडिया अकाउंट पर डालें और अगर कोई ऐसी खबर आती है जो आपके एजेंडे में सेट नहीं होती तो उस खबर को, या तो आप कवर ही ना करें या फिर अपने आप को निष्पक्ष दिखाने के लिए कवर करनी है तो इसे कम से कम प्लेटफॉर्म पर उसे पोस्ट करें जिससे कोई यह ना कहे कि आपने इसे कवर ही नहीं किया।

और अगर आपको यूट्यूब पर उस खबर को दिखाना ही है तो Thumbnail को इस तरह से नीरस रखा जाए कि कोई इस वीडियो पर जल्दी से ना तो क्लिक करे और ना ही Thumbnail देख कर खबर के बारे में कोई अंदाजा लगाया जा सके, जैसा कि लल्लनटॉप ने अपनी आगे की इस वीडियो के साथ किया जो कि इन्होंने 18 अक्टूबर को अपलोड की..

इस वीडियो में बताया गया कि Supreme Court ने ईशा फाउंडेशन को क्लीन चिट दे दी है और कहा है कि दोनों महिलाएं नाबालिक हैं और अपनी इच्छा से वहां रह रही हैं। इनके साथ किसी भी तरह की जोर जबरदस्ती नहीं की गई है।

लेकिन आप देख सकते हैं कि अभी तक इस खबर को मात्र 66 हजार लोगों ने ही देखा है। जिसका कारण हो सकता है वही Thumbnail वाला खेल जिसके बारे में मैंने आपसे पहले बात की। अगर लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) की मंशा साफ होती तो पहले वाली खबर की तरह इस पर भी बहुत कुछ लिखा जा सकता था जैसे कि सद्गुरू की ईशा फाउंडेशन को मिली क्लीन चिट, ईशा फाउंडेशन का सच आया सामने इत्यादि|

अब आप में से कुछ लल्लनटॉप के ब्लाइंड फॉलोवर या फिर हिंदी में कहें तो अंध भक्त होंगे जो कहेंगे, लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) दोनों तरह की खबरें कवर कर तो रहा है फिर इसमें बाल की खाल क्यों निकाल रहे हो, तो ऐसे में अब कुछ सवाल हैं आपसे,

अगर लालटॉप (The Lallantop Exposed) की पत्रकारिता निष्पक्ष है, इसका काम सिर्फ खबर दिखाना है बिना यह देखे कि यह खबर किसी व्यक्ति या संस्था के समर्थन में है या विरोध में तो फिर लल्लनटॉप द्वारा इस खबर को क्यों नहीं बताया गया जहां अभी अक्टूबर में ही सद्गुरू के सामाजिक कार्यों को देखते हुए Canada की तरफ से इन्हें CIF Global Indian Award दिया गया है। जबकि यह खबर खुद India Today ने अपनी वेबसाइट पर भी कवर की है।

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और यही नहीं ऐसी बहुत सी बड़ी खबरें हैं जो सद्गुरू और ईशा फाउंडेशन के सकारात्मक पक्ष को दिखाती है, इन खबरों को अंतराष्ट्रीय स्तर पर कई बड़े मीडिया ग्रुप द्वारा कवर किया जाता है, वहीं लल्लनटॉप इन सब पर चुप्पी साध जाता है क्योंकि हो सकता है यह खबरें उनकी विचारधारा के विरुद्ध हो।

मित्रों जिन सद्गुरू को लेकर लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) ने एक नकारात्मक रवैया अपनाया हुआ है और चाह रहा है कि लोगों की नजरों में सद्गुरू भी आसाराम बापू और राम रहीम जैसे फ्रॉड बाबाओं की श्रेणी में शामिल हो जाएं तो आपको बता दे कि

-ये वहीं सद्गुरू है, जिन्हें स्पीच देने की लिए ऑक्सफोर्ड, हार्वर्ड, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) और United Nation (UN) जैसे बड़े इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म्स पर स्पीच देने के लिए बुलाया जाता है, जहां ये सनातन संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं और पूरी दुनिया को भारत के योग, अध्यात्म और पर्यावरण के बारे में जागरूक करते हैं।

-ये वहीं सद्गुरू है, जिन्होनें विश्वभर में मिट्टी की घटती गुणवत्ता को लेकर इन्होंने लंदन से लेकर तमिलनाडु तक 30000 किलोमीटर की यात्रा की वो भी एक दुपहिया वाहन पर। इस यात्रा का मकसद था, पूरी दुनिया को इस बारे में जागरूक करना की अगर आज कुछ नहीं किया गया तो भविष्य में हमारे पास मिट्टी के नाम पर सिर्फ रेत रह जाएगी |

आप कल्पना कीजिए एक 65 वर्ष का व्यक्ति दुपहिया वाहन से 100 दिनों और 30000 किलोमीटर का सफर कर रहा है जहां उसे तमाम तरह के मौसमी बदलाव का सामना करना पड़ रहा है | लेकिन फिर भी वह काम में लगा हुआ है क्योंकि आज कुछ नहीं किया गया तो शायद बहुत देर हो जाए।

-ये वहीं सद्गुरू हैं, जिनकी संस्था के नाम पर एक ही दिन में सबसे ज्यादा पौधे लगाने का रिकॉर्ड भी है।

इस सब की वजह से आज विश्वभर में ईशा फाउंडेशन के 1.5 करोड़ से भी ज्यादा स्वयंसेवी है और लगभग 300 केंद्र हैं। सिर्फ यही नहीं ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो सद्गुरू और उनकी सभ्यता ने मानवता और पर्यावरण के लिए की है और अभी भी कर रही है जिनके बारे इस एक आर्टिकल में बताना संभव नहीं है।

रही बात संन्यासी बनाने की तो सद्गुरू के आश्रम में जितने संन्यासी हैं उनसे कई गुणा लोग इसी आश्रम में विवाह करने के लिए आते हैं। और जो लोग संन्यासी बनना भी चाहते हैं तो उनमें से मात्र कुछ ही लोगों को ऐसा करने की अनुमति दी जाती है ज्यादातर को गृहस्थ आश्रम में ही रहने की सलाह दी जाती है। क्योंकि संन्यास ऐसी चीज नहीं है जिसके लिए सभी काबिल हों। यही वजह है कि 17 मिलियन स्वयंसेवी में से संन्यासियों की संख्या 1% से भी बहुत कम है।

ये सब वो बातें हैं जो आपको लल्लनटॉप (The Lallantop Exposed) जैसे चैनल पर शायद ही कभी बताई जाएं।

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