श्रीमद्भगवद्गीता का पूरा सार समझा देंगे ये 10 श्लोक | Shrimad Bhagwat Geeta ke Shlok in Hindi

Shrimad Bhagwat Geeta ke Shlok in Hindi

श्रीमद्भगवद्गीता का पूरा सार समझा देंगे ये 10 श्लोक | Shrimad Bhagwat Geeta ke Shlok in Hindi

श्रीमद्भागवत गीता, (Shrimad Bhagwat Geeta ke Shlok in Hindi) जो कि भगवान श्री कृष्ण की दिव्य वाणी है, जीवन के हर पहलू को समझने का मार्गदर्शन प्रदान करती है। यह हमें बताती है कि जीवन को कैसे जीना चाहिए, और किस तरह की सोच और कर्म हमें आत्मज्ञान की ओर ले जाते हैं। इस ब्लॉग में हम गीता के 10 अति महत्वपूर्ण श्लोकों पर चर्चा करेंगे जो हमें गीता का सार समझाने में मदद करेंगे।

1. धर्म की रक्षा और दुष्टों का विनाश

श्लोक: “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानेर भवति भारत। अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।” (अध्याय 4, श्लोक 7)

सार:
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जब भी धर्म की हानि होती है और अधर्म का उन्नयन होता है, तब वह स्वयं अवतार लेते हैं। यह श्लोक हमें समझाता है कि धर्म और अधर्म का संघर्ष हमारे अंदर होता है और भगवान तब प्रकट होते हैं जब हमारे हृदय में धर्म की ग्लानी बढ़ जाती है।

2.साधुओं की रक्षा और दुष्टों का नाश

श्लोक: “परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।”(अध्याय 4, श्लोक 8)

सार:
भगवान श्री कृष्ण का यह श्लोक दर्शाता है कि उनका अवतार साधुओं की रक्षा और दुष्टों का नाश करने के लिए होता है। यह भी बताता है कि हर युग में भगवान का अवतार एक विशेष उद्देश्य से होता है।

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3.अवतार का दिव्य स्वरूप

श्लोक: “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। त्यक्त्वा देहम पुनर्जन्म नैति मां एति सोऽर्जुन।”(अध्याय 4, श्लोक 9)

सार:
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति उनके दिव्य जन्म और कर्म को समझता है, वह पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है। यह श्लोक दर्शाता है कि दिव्य ज्ञान प्राप्त करने से आत्मा को मोक्ष मिलता है।

4.कर्म और इच्छाओं का संबंध

श्लोक: “संगात्संजायते कामः संगात्क्रोधोऽभिजायते। क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृति विभ्रमः।”(अध्याय 2, श्लोक 62)

सार:
यह श्लोक हमें बताता है कि इंद्रियों के विषयों में आसक्ति से इच्छाएं और क्रोध उत्पन्न होते हैं। इससे मानसिक विकार होते हैं जो बुद्धि और स्मृति को प्रभावित करते हैं। इसलिए विषयों से दूर रहना और संतुलित रहना आवश्यक है।

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5. क्रोध और बुद्धि का संबंध

श्लोक:
“क्रोधात्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृति विब्रमा। स्मृति भ्रंशाद बुद्धि नाशो बुद्धिनाशात् प्रणश्यति।”(अध्याय 2, श्लोक 63)

सार:
यह श्लोक बताता है कि क्रोध से मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है, जिससे स्मृति भ्रमित होती है और बुद्धि का नाश हो जाता है। इस प्रकार, क्रोध मानव को अपने मार्ग से भटका देता है।

6.सच्चे ज्ञान की प्राप्ति

श्लोक: “श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परं शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।”(अध्याय 4, श्लोक 39)

सार:
जो व्यक्ति श्रद्धा और संयम के साथ ज्ञान की प्राप्ति करता है, उसे शीघ्र ही परम शांति प्राप्त होती है। यह श्लोक ज्ञान की महत्ता और उसकी प्राप्ति के लिए संयम की आवश्यकता को दर्शाता है।

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7.भगवान के प्रति भक्ति और शरणागति

श्लोक: “सर्वधर्मान् परित्यज्य मां एकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा सुकहा ।” (अध्याय 18, श्लोक 66)

सार:
भगवान श्री कृष्ण इस श्लोक में कहते हैं कि सभी धर्मों को छोड़कर केवल उनकी शरण में आओ। वे सभी पापों से मुक्त करेंगे और मोक्ष देंगे। यह श्लोक बताता है कि केवल भगवान की शरण में जाकर ही आत्मा को पूर्ण शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।

8.आध्यात्मिक साधना और ओम

श्लोक: “ओमिति एकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्। य: प्रयाती त्यजं देहं स याति परमां गतिम्।”(अध्याय 8, श्लोक 13)

सार:
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति अंतकाल में “ओम” का स्मरण करता है और शरीर को त्याग देता है, वह परमगति प्राप्त करता है। यह श्लोक ओम की महत्ता और उसकी साधना की आवश्यकता को दर्शाता है।

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9.आध्यात्मिक साधना और अंतकाल

श्लोक: “अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।”(अध्याय 9, श्लोक 22)

सार:
जो लोग भगवान की निरंतर भक्ति और ध्यान करते हैं, भगवान उनकी सारी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हैं और उनके जीवन में योगक्षेम का पालन करते हैं। यह श्लोक भक्ति और ईश्वर की सहायता की पुष्टि करता है।

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10.असंतुलित विचार और आत्म-नाश

श्लोक: “इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्तितौ। तयोर्नवशमागच्छेत् तौ ही अस्य परायणौ।”(अध्याय 3, श्लोक 34)

सार:
इस श्लोक में बताया गया है कि इंद्रियों के विषयों में राग और द्वेष के प्रति संयम बनाए रखना आवश्यक है। ये मानसिक विकार व्यक्ति के मन और आत्मा को प्रभावित करते हैं।

इन श्लोकों से यह स्पष्ट होता है कि श्रीमद्भागवत गीता न केवल जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाती है, बल्कि हमें एक संतुलित और आध्यात्मिक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। इन श्लोकों की गहरी समझ हमें आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाती है, और हमें जीवन के विभिन्न संघर्षों का सामना करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।