Ravan Puja on Dussehra: रावण की 10 खास बातें जिसकी वजह से आज भी होती है उसकी पूजा
Ravan Puja on Dussehra : रामायण (Ramayan) एक ऐसा महाकाव्य है जो सदियों से भारतीय संस्कृति और साहित्य का अहम हिस्सा रहा है। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित इस ग्रंथ में भगवान राम की रावण (Ravan) पर विजय को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में देखा जाता है। दशहरे के अवसर पर हम रावण का दहन करते हैं, जो बुराई और अधर्म का प्रतीक माना जाता है। लेकिन रावण केवल सिर्फ एक खलनायक नहीं था, बल्कि वह एक जटिल और बहुआयामी व्यक्तित्व था। वह एक विद्वान, शिव भक्त, शक्तिशाली शासक, और एक कुशल वीणा वादक था। आइए, इस ब्लॉग में हम रावण की दस खास बातों पर चर्चा करते हैं जिसकी वजह से आज भी कई जगह रावण की पूजा (Ravan Puja on Dussehra) की जाती है।
रावण की शक्ति और ज्ञान
रावण को वेदों और शास्त्रों का ज्ञाता माना जाता था। वह एक महान विद्वान और संस्कृत का उत्कृष्ट ज्ञाता था। रावण भगवान शिव का परम भक्त था और उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था। उसकी भक्ति और तपस्या इतनी तीव्र थी कि उसने शिव को प्रसन्न करके उनसे वरदान प्राप्त किए थे। शिव की भक्ति में, उसने “शिव तांडव स्तोत्र” की रचना की, जो आज भी शिव भक्तों के बीच प्रचलित है। यह सभी वजहों में एक मुख्य वजह है जिसकी वजह से दशहरा पर आज भी रावण की पूजा (Ravan Puja on Dussehra) की जाती है।
रावण का परिवार और वंश
रावण का जन्म एक महान ऋषि विश्वश्रवा और राक्षस कुल की राजकुमारी कैकसी से हुआ था। उसके पिता ब्रह्मा के पुत्र थे, और उसकी वंशावली में ऋषि पुलस्त्य का नाम आता है, जो सप्त ऋषियों में से एक थे। रावण का वंश इसलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि वह आधा ब्राह्मण और आधा राक्षस था, जो उसके जीवन के विरोधाभासों को दर्शाता है। ऋषि पुत्र होने की वजह से भी कुछ लोग रावण को आज भी पूजते ((Ravan Puja on Dussehra) है।
रावण की वीणा
रावण केवल एक युद्ध विद्या का ज्ञाता नहीं था, बल्कि वह एक कुशल वीणा वादक भी था। उसने अपनी एक भुजा को तोड़कर वीणा बनाई थी और अपने नसों को तार बना दिया था। यह कला उसके भीतर के कलाकार और संगीत प्रेमी को दर्शाती है, जिसने उसे केवल युद्धरत खलनायक से अधिक कुछ बनाया। इसलिए रावण को एक कलाकार के रूप में भी पूजा (Ravan Puja on Dussehra) जाता है।
रावण कुशल शासक
रावण ने लंका पर शासन किया, जिसे उसने अपने सौतेले भाई कुबेर से जीत लिया था। उसके शासनकाल में लंका विज्ञान, कला, और संस्कृति के क्षेत्र में उन्नति कर रही थी। रावण के अधीन लंका को स्वर्ण नगरी कहा जाता था और वह एक उन्नत सभ्यता का प्रतीक थी। उसकी कुशल प्रशासनिक क्षमताएं उसे एक सक्षम शासक के रूप में प्रस्तुत करती हैं। इसलिए एक सफल शासक के रूप में भी रावण को पूजा (Ravan Puja on Dussehra) जाता है।
रावण का वरदान और श्राप
रावण ने 11,000 वर्षों तक गोकुल पर्वत पर कठोर तपस्या की थी और ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया था कि वह किसी देवता, गंधर्व, या राक्षस द्वारा मारा नहीं जा सकेगा। लेकिन उसने मनुष्य की उपेक्षा की, जिसे उसके पतन का कारण माना जाता है। उसे यह भी श्राप मिला था कि एक बंदर द्वारा लंका का विनाश होगा, जिसे हम हनुमान द्वारा लंका जलाने के रूप में देखते हैं। अपने तपस्वी स्वभाव की वजह से भी रावण को पूजा (Ravan Puja on Dussehra) जाता है।
भगवान विष्णु के द्वारपाल
रावण और उसका भाई कुंभकर्ण भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय के अवतार थे, जिन्हें अपने दुर्व्यवहार के कारण पृथ्वी पर जन्म लेने का श्राप मिला था। रावण और कुंभकर्ण का जन्म उसी श्राप का परिणाम था, जिसमें वे भगवान विष्णु के दुश्मन के रूप में जन्मे थे।
मंदोदरी से विवाह
रावण की पहली पत्नी मंदोदरी थी, जो असुरों के राजा मायासुर और अप्सरा हेमा की बेटी थी। मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ और वह एक आदर्श पत्नी के रूप में जानी जाती थी। मंदोदरी का चरित्र भी रावण की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो उसकी व्यक्तिगत और पारिवारिक जिम्मेदारियों को दर्शाता है।
माँ सीता का अपहरण और श्रीराम से युद्ध
रामायण की मुख्य कथा रावण द्वारा माँ सीता के अपहरण और उसके परिणामस्वरूप श्रीराम के साथ युद्ध पर आधारित है। रावण ने माँ सीता का अपहरण किया था, लेकिन उसने कभी उनका अपमान नहीं किया। इसके बावजूद, यह कार्य उसकी सबसे बड़ी भूल साबित हुआ, जिसने अंततः उसके पतन को सुनिश्चित किया।
रावण के दस सिर का रहस्य
रावण को “दशानन” या “दसमुख” के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है दस सिर वाला। उसके दस सिर केवल उसकी शारीरिक संरचना का हिस्सा नहीं थे, बल्कि उसके अंदर के दस गुणों का प्रतीक थे—क्रोध, लोभ, मोह, काम, द्वेष, अहंकार, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष, और धोखा। ये दस सिर रावण के अंदर के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं, जो उसकी आंतरिक जटिलता और संघर्ष को उजागर करते हैं। ये 10 गुण हर आम मनुष्य में कुछ ना कुछ मात्रा में अवश्य पाए जाते हैं।
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रावण का अंतिम संदेश
भगवान राम से युद्ध के दौरान, जब रावण मृत्युशैया पर था, तब भगवान राम ने लक्ष्मण को रावण से ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा। रावण ने लक्ष्मण को तीन महत्वपूर्ण बातें सिखाईं—पहली, किसी भी शुभ कार्य को तुरंत करना चाहिए, दूसरी, दुश्मन को कभी भी कमजोर नहीं समझना चाहिए, और तीसरी, जीवन के रहस्यों को दुनिया के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए। यह दिखाता है कि रावण सिर्फ एक खलनायक नहीं था, बल्कि एक ज्ञानी व्यक्ति भी था, जिसकी शिक्षा आज भी महत्वपूर्ण है। यही वे वजह हैं जिनकी वजह से दशहरा के दिन रावण को कई जगह पूजा (Ravan Puja on Dussehra) जाता है।