रावण की पूजा करना सही या गलत? प्रेमानन्द जी महाराज ने दिया जवाब
प्रेमानन्द जी महाराज ने अपने प्रवचनों में रावण की पूजा को एक गहरी आध्यात्मिक दृष्टि से समझाया है। उनके अनुसार, रावण कोई साधारण व्यक्ति नहीं था, बल्कि भगवान के प्रमुख पार्षदों में से एक था। रावण-कुम्भकर्ण, जो कि भगवान विष्णु के जय-विजय नामक पार्षद के अवतार थे, भगवान की इच्छा से इस धरती पर जन्म लेकर असुर के रूप में आए। महाराज बताते हैं कि रावण ने राम के विरुद्ध जो भूमिका निभाई, वह मात्र एक लीला थी, जिसे भगवान ने मनुष्य को शिक्षा देने, अपने बल और वैभव को प्रदर्शित करने के लिए किया था।
रावण को समझने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह शिव का महान भक्त था और एक विद्वान ब्राह्मण था। उसके भीतर देवत्व था, और उसे भगवान विष्णु के निर्देश पर ही राक्षसी भूमिका निभानी पड़ी। महाराज ने कहा कि यह मात्र भगवान की लीला का हिस्सा था, जिसमें रावण को यह पात्र निभाना पड़ा ताकि भगवान राम के बल और शक्ति को प्रदर्शित किया जा सके।
रावण की पूजा: आध्यात्मिक दृष्टिकोण
प्रेमानन्द जी महाराज के अनुसार, कुछ स्थानों पर रावण की पूजा होती है, और इसे पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता। महाराज मानते हैं कि रावण को सीधे तौर पर भगवान के विरोधी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
भारत में रावण की पूजा को लेकर कई स्थानों पर विभिन्न मान्यताएँ हैं। जहाँ कई स्थानों पर रावण का पुतला जलाकर उसकी निंदा की जाती है, वहीं कुछ जगहों पर रावण को एक आदर्श राजा, विद्वान, और शिव भक्त के रूप में पूजा जाता है। महाराज ने स्पष्ट किया कि किसी भी महापुरुष की पूजा उसकी विशेषताओं और उसके द्वारा निभाए गए पात्र के आधार पर की जाती है। रावण के मामले में भी, कुछ लोग उसकी शिव भक्ति और ज्ञान के कारण उसकी पूजा करते हैं।
रावण की भूमिका और रामायण
रामायण की आरती के दौरान रावण का भी जिक्र आता है, क्योंकि रावण का जन्म, कर्म और उसका पात्र भगवान की लीला का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। महाराज ने कहा कि रामायण में राम का यशगान करने के साथ-साथ रावण का भी उल्लेख होता है, क्योंकि उसके बिना रामायण की कथा पूरी नहीं होती। रामायण के आरती में भी रावण की उपस्थिति इस बात का संकेत है कि भगवान राम के विरोधी पात्र भी किसी न किसी दिव्य उद्देश्य से जुड़े होते हैं।
प्रेमानन्द जी महाराज ने बताया कि जय-विजय, जो रावण और कुंभकर्ण के रूप में जन्मे, वे भगवान के ही पार्षद थे, और उन्होंने भगवान के आदेश पर यह भूमिका निभाई। उनका उद्देश्य भगवान के बल और पराक्रम को प्रदर्शित करना था। इसलिए, यदि कोई रावण की पूजा करता है, तो इसे पूरी तरह से नकारात्मक दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए।
यह भी पढ़ें : रावण की 10 खास बातें जिसकी वजह से आज भी होती है उसकी पूजा
रावण और वर्तमान समय में पूजा
प्रेमानन्द जी महाराज ने कहा कि वर्तमान समय में भी रावण के वंशज या उसके अनुयायी यदि उसकी पूजा करते हैं, तो हमें उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि रावण की पूजा उस समय की परंपराओं, मान्यताओं और धर्म के आधार पर की जाती है। हालाँकि महाराज ने स्पष्ट किया कि हमारे भारत में रामचरित्र की पूजा अधिक प्रचलित है, और रावण को उसके दैत्य भाव के कारण नकारात्मक भूमिका में प्रस्तुत किया जाता है।
उन्होंने यह भी बताया कि रावण का चरित्र और उसके कर्मों को लेकर समाज में विभिन्न मत हो सकते हैं, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि वह भगवान के पार्षद थे और उन्होंने भगवान के निर्देशानुसार ही यह भूमिका निभाई। इसलिए, रावण की पूजा को लेकर कोई कट्टर विचारधारा नहीं होनी चाहिए, और हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी मान्यताओं के अनुसार किसी महापुरुष की पूजा करता है।