भगवान श्री राम का माँ सीता को छोड़ने का पूरा सच | कुमार विश्वास ने खोली दी उत्तरकाण्ड की पोल
एक ऐसा प्रश्न है जो सदियों से विवाद का कारण बना हुआ है: क्या भगवान राम ने सच में अपनी पत्नी सीता को वन में छोड़ किया था? यह सवाल राम के जीवन के सबसे कठिन क्षणों में से एक है और इसका उत्तर खोजने के लिए हमें उनके जीवन की गहराई से जांच करनी होगी।
कुमार विश्वास जी ने इस विषय पर गहन विचार व्यक्त किए हैं और उनके विश्लेषण ने इस विवाद को समझने के लिए एक नई दृष्टि प्रदान की है। उनका तर्क वाल्मीकि रामायण और उत्तरकांड के आधार पर है, जिसमें कई बातें ऐसी हैं जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या सीता का निर्वासन सच में हुआ था या यह एक मिथक है जो समय के साथ विकसित हुआ।
राम और सीता का संबंध
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, भगवान राम और माता सीता का संबंध प्रेम और सम्मान का प्रतीक था। रामायण के एक प्रसंग में, जब भगवान राम वनवास पर जा रहे थे, तब माता सीता ने राम के साथ जाने की जिद की। उन्होंने कहा कि वह राजमहल छोड़कर वन में राम के साथ रहेंगी, उनके साथ कष्ट झेलेंगी, और उनका मार्गदर्शन करेंगी। सीता ने राम से कहा, “मैं तुम्हारे साथ चलूंगी और वन के कांटे, कंकड़-पत्थर साफ कर दूंगी ताकि तुम्हें कोई कष्ट न हो।” यह माँ सीता और श्री राम के प्रेम और समर्पण का उदाहरण है।
राम, जिन्होंने अपने जीवन के हर पहलू में मर्यादा का पालन किया, सीता को वन में ले जाने के लिए मजबूर हुए, क्योंकि वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकती थीं। उन्होंने सीता को समझाने की कोशिश की, लेकिन अंत में उन्हें अपनी पत्नी के साथ वन गमन करना पड़ा। इस प्रसंग से यह स्पष्ट होता है कि राम और सीता का संबंध बहुत गहरा और प्रेमपूर्ण था।
वाल्मीकि रामायण और उत्तरकांड
वाल्मीकि रामायण का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि इसमें सात कांड और 24,000 श्लोक हैं। यह महाकाव्य भगवान राम के जीवन की गाथा है और इसमें उनके चरित्र, कर्तव्य, और आदर्शों का सुंदर वर्णन मिलता है। लेकिन उत्तरकांड, जो रामायण का अंतिम कांड है, में कई विद्वानों ने संदेह जताया है। उत्तरकांड में राम द्वारा सीता को वन में छोड़ने का उल्लेख है, लेकिन इसे प्रक्षिप्त माना जाता है, यानी यह बाद में जोड़ा गया है।
कुमार विश्वास जी के अनुसार, वाल्मीकि रामायण की शैली और भाषा उत्तरकांड से बहुत भिन्न है। उत्तरकांड में कई ऐसी बातें हैं जो वाल्मीकि रामायण के अन्य कांडों से मेल नहीं खातीं। इससे यह संदेह होता है कि यह कांड बाद में जोड़ा गया है, ताकि भगवान राम की छवि को धूमिल किया जा सके। यह धारणा उस समय के समाज में फैली भ्रांतियों और षड्यंत्रों का परिणाम हो सकती है।
सीता का निर्वासन: एक मिथक?
वाल्मीकि रामायण में सीता के निर्वासन का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। इसके विपरीत, राम और सीता के संबंध को बहुत ही आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है। राम ने कभी भी सीता के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जो उन्हें कष्ट पहुंचाए।
उत्तरकांड में सीता के निर्वासन की जो कहानी है, उसमें राम पर सामाजिक दबाव का हवाला दिया गया है। कहा जाता है कि एक धोबी ने सीता की पवित्रता पर संदेह किया और राम ने समाज की भलाई के लिए सीता को वन में भेज दिया। लेकिन वाल्मीकि रामायण की शैली और संदेश के विपरीत यह कहानी बहुत ही अविश्वसनीय लगती है। वाल्मीकि, जिन्होंने राम के जीवन का सजीव वर्णन किया, ने इस प्रसंग का कोई उल्लेख नहीं किया है। इसके अलावा, उत्तरकांड की भाषा और कथा शैली भी वाल्मीकि रामायण की शुद्धता से मेल नहीं खाती।
राम का चरित्र और सीता के प्रति उनका प्रेम
भगवान राम का चरित्र उच्चतम आदर्शों का प्रतीक है। वह कर्तव्यनिष्ठ, धर्मपरायण और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने वाले थे। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत संबंधों और अपने प्रियजनों के प्रति अपने कर्तव्यों की अनदेखी की। राम ने हर कदम पर सीता के प्रति अपने प्रेम और सम्मान को दर्शाया है।
राम का वह प्रेम, जो उन्होंने वनगमन के समय व्यक्त किया था, उनके चरित्र का हिस्सा है। उन्होंने सीता से कहा था, “मेरे लिए तो स्वर्ग भी तेरे बिना संभव नहीं है।” ऐसा कहने वाले राम, जो अपनी पत्नी के प्रति इतना स्नेह रखते थे, क्या सच में सीता को निर्वासित कर सकते थे? यह प्रश्न खुद में ही उत्तर है कि राम के चरित्र में ऐसा कोई तत्व नहीं था जो उन्हें अपनी पत्नी को अपमानित करने के लिए प्रेरित करे।
उत्तरकांड: षड्यंत्र या सत्य?
कुमार विश्वास जी ने अपने व्याख्यान में यह भी बताया कि उत्तरकांड में सीता का निर्वासन और शंभुक वध जैसे प्रसंग प्रक्षिप्त हैं, जो बाद में जोड़े गए थे। इन कहानियों का उद्देश्य राम को एक क्रूर और कठोर व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करना था, जबकि वाल्मीकि रामायण में ऐसा कुछ भी नहीं मिलता जो इस बात को सिद्ध करे। उत्तरकांड की कहानी राम को दलित और स्त्री विरोधी दिखाने के उद्देश्य से जोड़ी गई है, ताकि उनकी महिमा को धूमिल किया जा सके।
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निष्कर्ष
भगवान राम का जीवन त्याग, प्रेम, और कर्तव्य का अद्वितीय उदाहरण है। वाल्मीकि रामायण में उनका चरित्र बहुत ही आदर्शवादी और पवित्र रूप में प्रस्तुत किया गया है। राम ने कभी भी अपनी पत्नी सीता के साथ कोई अन्याय नहीं किया। उनके और सीता के संबंध में प्रेम, समर्पण और सम्मान का अटूट बंधन था।
उत्तरकांड में सीता के निर्वासन की जो कहानी है, वह वाल्मीकि रामायण की शुद्धता और सत्यता के विपरीत है। यह कहानी संभवतः बाद में जोड़ी गई थी, ताकि राम की छवि को धूमिल किया जा सके। हमें इस बात को समझना चाहिए कि राम का चरित्र आदर्शों और मर्यादाओं का प्रतीक है और उनके जीवन में ऐसा कोई कृत्य नहीं था जो उनकी पत्नी के प्रति अन्यायपूर्ण हो।
सीता का निर्वासन एक मिथक है, जिसे समय के साथ गलतफहमियों और षड्यंत्रों के माध्यम से फैलाया गया। हमें रामायण के वास्तविक संदेश को समझने की जरूरत है और इस महान महाकाव्य के आदर्शों से प्रेरणा लेनी चाहिए। राम का प्रेम और सीता के प्रति उनका समर्पण हमें यह सिखाता है कि जीवन में कर्तव्य और प्रेम का संतुलन बनाए रखना कितना महत्वपूर्ण है।