Premanand Ji Maharaj Sanyas : महाराज जी ने कैसे छोड़ा अपना घर? किन किन परेशानियों का करना पड़ा सामना?

Premanand Ji Maharaj Sanyas : महाराज जी ने कैसे छोड़ा अपना घर? किन किन परेशानियों का करना पड़ा सामना?

Premanand Ji Maharaj Sanyas : महाराज जी ने कैसे छोड़ा अपना घर? किन किन परेशानियों का करना पड़ा सामना?

Premanand Ji Maharaj Sanyas : जीवन में असाधारण बदलाव और भगवत्प्राप्ति की राह पर चलने का साहस हर किसी में नहीं होता। प्रेमानंद जी महाराज का जीवन त्याग, तपस्या और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण है। उनके द्वारा बताया गया हर अनुभव हमें यह सिखाता है कि जीवन में आने वाली कठिनाइयाँ और संघर्ष, भगवत्प्राप्ति की ओर बढ़ने वाले मार्ग में मात्र पड़ाव होते हैं, जो हमारी आस्था और धैर्य की परीक्षा लेते हैं।

घर त्यागने का निर्णय और प्रारंभिक संघर्ष

प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Ji Maharaj Sanyas) ने अपनी किशोरावस्था में ही घर छोड़ने का साहसिक निर्णय लिया। यह निर्णय उनके जीवन का सबसे बड़ा मोड़ था। घर छोड़ने के बाद, उन्होंने तीन महत्वपूर्ण प्रश्नों का सामना किया—खाना कहाँ मिलेगा? रहने की जगह कौन सी होगी? और जीवन कैसे व्यतीत होगा? इन सवालों का उत्तर उन्होंने भगवान पर पूर्ण भरोसे से दिया: “जहाँ भगवान रखेंगे, वहीं रहूंगा। जो देंगे, वही खाऊंगा।”

यह दृष्टिकोण हमें यह समझाता है कि जब हमारा विश्वास अडिग होता है, तब हर कठिनाई को पार करना संभव हो जाता है।

शराबी का उपदेश और वैकुंठ धाम का अनुभव

महाराज ने अपने अनुभवों (Premanand Ji Maharaj Sanyas) को साझा करते हुए बताया कि एक बार जब वे गंगा किनारे बैठे थे, तब एक शराबी ने उन्हें वैकुंठ धाम चलने के लिए प्रेरित किया। वहाँ उन्होंने पत्थरों से निर्मित भगवान की मूर्तियाँ देखीं और उस शराबी के शब्दों ने उनके मन में गहरा प्रभाव डाला। “तिल-तिल काटकर मूर्ति बनाई जाती है, लेकिन टूटने नहीं दी जाती, और जो टूट जाती हैं वे किसी काम की नहीं रहती।” यह वाक्य उनके जीवन का सूत्र बन गया—“टूटना नहीं, आगे बढ़ते रहना।”

यह घटना हमें यह सिखाती है कि भगवान हर रूप में उपदेश दे सकते हैं, चाहे वह शराबी ही क्यों न हो और जीवन की हर परिस्थति में स्वयं को मजबूत बना कर रखना है।

कष्टों को गले लगाना और आत्मशक्ति का निर्माण

महाराज (Premanand Ji Maharaj Sanyas) के जीवन में कठिनाइयाँ अनगिनत थीं। भोजन के अभाव से लेकर, बीमारी और अकेलेपन तक, उन्होंने हर परिस्थिति को भगवान की कृपा मानकर स्वीकार किया। उनके शब्दों में, “भगवान अपने भक्तों को ठोक-बजाकर मजबूत बनाते हैं।” यह सोच उन्हें हर विपरीत परिस्थिति में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती रही।

उनका जीवन एक उदाहरण है कि कैसे तप और समर्पण हमें मजबूत बनाते हैं। उन्होंने कभी किसी से मदद नहीं मांगी, यहाँ तक कि काशी जैसे जगहों पर भी वे केवल आकाशवृत्ति पर निर्भर रहते थे।

गंगा और काशी का अनुभव

गंगा के तटों और काशी के घाटों पर बिताया गया समय महाराज के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। वे कहते हैं कि काशी में भले ही भोजन की कोई कमी न हो, लेकिन उन्होंने गुरु द्वारा दिए गए नियम का पालन किया—“जो मिलेगा, वही लेंगे; किसी से मांगेंगे नहीं।”

उनके इस दृष्टिकोण ने यह सिद्ध कर दिया कि भक्ति और त्याग की सच्ची शक्ति आत्मनिर्भरता में है।

भगवत्प्रेम और कष्ट में भगवान का सानिध्य

प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Ji Maharaj Sanyas) का जीवन यह संदेश देता है कि सच्चे भक्त को भगवान का सानिध्य कष्ट में ही अधिक मिलता है। जब भी वे अकेलेपन या पीड़ा से गुजरे, भगवान ने उन्हें अपने प्रेम से गले लगाया। उनका कहना है, “जब मन पीड़ा से पुकारता है, तब भगवान का प्रेम अनुभव किया जा सकता है।”

मित्रता और सामाजिक जीवन

महाराज (Premanand Ji Maharaj Sanyas) ने यह भी साझा किया कि उनके जीवन में न कभी कोई मित्र था और न ही किसी से शत्रुता। यह अकेलेपन का जीवन उन्हें अधिक गहराई से आत्मा और भगवान को समझने का अवसर देता रहा।

वृंदावन वास और वर्तमान जीवन

वृंदावन में पिछले 26 वर्षों से उनका जीवन भक्ति, तप और सेवा में बीत रहा है। यहाँ उन्होंने समाज के कल्याण के लिए अपने अनुभवों को साझा करते हुए लोगों को भगवद्भक्ति की राह पर प्रेरित किया।

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सीख और प्रेरणा

प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Ji Maharaj Sanyas) का जीवन हमें यह सिखाता है कि:

  1. कठिनाइयाँ हमारे धैर्य और आस्था की परीक्षा लेती हैं, लेकिन ये हमें मजबूत भी बनाती हैं।
  2. त्याग और तपस्या ही सच्चे आनंद का स्रोत हैं।
  3. भगवान हर परिस्थिति में हमारे साथ होते हैं, बस हमें उन पर विश्वास बनाए रखना चाहिए।
  4. भक्ति का मार्ग चुनने वाले को सांसारिक सुखों और दुखों से परे रहकर केवल अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

निष्कर्ष

प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Ji Maharaj Sanyas) का जीवन त्याग, तप और भगवत्प्रेम का प्रतीक है। उनके अनुभव यह सिद्ध करते हैं कि सच्चे भक्त को हर परिस्थिति में भगवान का सानिध्य और प्रेम प्राप्त होता है। उनका यह प्रेरणादायक जीवन हमें भी यह सिखाता है कि हमें अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानकर, पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ उस पर चलना चाहिए।