मांसाहार (Non Veg) सही या गलत? प्रेमानन्द जी महाराज ने दिया जबाव
मांसाहार (Non Veg) सही या गलत? प्रेमानन्द जी महाराज का जबाव : प्रेमानंद जी महाराज द्वारा कही गई बातें हमें एक गहरे आध्यात्मिक संदेश देती हैं, जिसमें उन्होंने मांसाहार और उससे जुड़े नैतिक और धार्मिक मुद्दों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मांसाहारी व्यक्ति वास्तव में एक राक्षस के समान है, जो अपने कार्यों से न केवल अपनी आत्मा को बल्कि अपनी धार्मिकता को भी दूषित करता है।
धार्मिक अनुशासन और मांसाहार
महाराज जी ने अपने शिष्यों को यह सिखाया है कि जब वे किसी के घर भोजन के लिए जाएं, तो उन्हें यह देखना चाहिए कि उस घर में मांस (Non Veg) नहीं पकाया गया हो। यदि उस घर में मांस पकाया गया है, तो वहां का शाकाहारी भोजन भी दूषित माना जाना चाहिए। उन्होंने कहा, “जिसकी रसोई में जिन छात्रों में मांस बन चुका है तुम्हें दाल रोटी, खीर, पुआ भी दे तो नहीं खाना क्योंकि वो सब पवित्र राक्षसी रसोई है।”
यह संदेश यह स्पष्ट करता है कि मांसाहार न केवल व्यक्ति को, बल्कि उसके वातावरण को भी दूषित करता है। शुद्ध और पवित्र जीवन जीने के लिए हमें ऐसे वातावरण से बचना चाहिए।
अतिथि देवो भव और मांसाहार
अतिथि देवो भव का सिद्धांत भारतीय संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन महाराज जी ने इस पर भी विचार किया है। उनका कहना है कि अतिथि देवता वह होता है जो सात्विक आहार का सेवन करता है। जो व्यक्ति मांसाहार (Nov Veg) करता है, वह अतिथि नहीं, बल्कि असुर (राक्षस) होता है। अतः हमें यह देखना चाहिए कि हमारे अतिथि का आहार कैसा है और उसके अनुसार ही उनका स्वागत करना चाहिए।
पशुओं की हत्या और नैतिकता
महाराज जी ने पशुओं की हत्या को एक घोर अनैतिक कर्म बताया है। उन्होंने कहा कि लोग देवी-देवताओं के नाम पर पशुओं की बलि चढ़ाते हैं, लेकिन यह सही नहीं है। उन्होंने बताया कि देवी-देवताओं को बलि चढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि उपवास और तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “अम्बा के लिए करना है तो उपवास कर, तप कर, व्रत कर अपने को कष्ट दे तो मैं जानू अम्बा के लिए तेरा बलिदान है।”
यह संदेश बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें सिखाता है कि हमारे धार्मिक अनुष्ठानों में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। हमें अपने कर्मों में अहिंसा और करुणा को स्थान देना चाहिए।
मांसाहार (Non Veg) और सामाजिक पतन
महाराज जी ने मांसाहार (Non Veg) को सामाजिक पतन का एक मुख्य कारण बताया है। उन्होंने कहा कि पहले तलवार की नोक पर धर्म भ्रष्ट किया जाता था, लेकिन आज लोग स्वयं मांसाहार कर अपना धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं। उन्होंने इसे एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में देखा और कहा, “सोचो आप पैसा देके गाय का मांस खा रहे हो, हिंदू बनते हो, सनातन धर्मावलंबी बनते हो, भगत बनते हो, तिलक लगाये सारे नरक जाओगे।”
यह संदेश समाज को एक गंभीर चेतावनी देता है कि मांसाहार से न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समाज के स्तर पर भी पतन होता है। समाज को इस बुराई से बचने के लिए अपने धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों पर चलना चाहिए।
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निष्कर्ष
प्रेमानंद जी महाराज ने अपने उपदेशों में मांसाहार (Non Veg) को न केवल व्यक्तिगत, बल्कि सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी घोर अनुचित बताया है। उन्होंने मांसाहारियों को राक्षस की संज्ञा दी और उन्हें चेतावनी दी कि यदि वे अपने कर्मों को नहीं बदलते, तो उन्हें यातनाएँ भुगतनी पड़ेंगी। उन्होंने अपने शिष्यों और समाज को यह संदेश दिया कि शुद्ध और पवित्र जीवन जीने के लिए हमें मांसाहार से दूर रहना चाहिए और अपने कर्मों में अहिंसा और करुणा को स्थान देना चाहिए।
उनके ये उपदेश हमें यह सिखाते हैं कि हमारा आहार केवल शारीरिक पोषण का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारे मानसिक और आध्यात्मिक विकास का भी आधार है। मांसाहार से बचकर हम एक शुद्ध, पवित्र और आध्यात्मिक जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं, जो हमें न केवल इस जीवन में, बल्कि अगले जन्मों में भी कल्याण की ओर ले जाएगा।