Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi : कैसा था महाराज जी का बचपन? क्या है रात्री में उठने का रहस्य? यह रहा सम्पूर्ण जवाब

Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi : कैसा था महाराज जी का बचपन? क्या है रात्री में उठने का रहस्य? यह

Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi : कैसा था महाराज जी का बचपन? क्या है रात्री में उठने का रहस्य? यह रहा सम्पूर्ण जवाब

Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi : प्रेमानंद जी महाराज का जीवन एक ऐसी कहानी है जो समर्पण, साधना और अनुशासन की प्रेरणा देती है। उनके बचपन से ही उनके जीवन में भक्ति और तपस्या का विशेष महत्व था। उनका बचपन उनके जीवन की नींव था, जहां उन्होंने संयम, अनुशासन और ईश्वर प्राप्ति के प्रति समर्पण का मार्ग चुना।

सर्दी में भी अनुशासन का पालन | Premanand Ji Maharaj Childhood

प्रेमानंद जी महाराज ने (Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi) अपने बचपन में सर्दी के दिनों में भी कभी कंबल ओढ़ने की आदत नहीं डाली। उनका मानना था कि यदि कंबल ओढ़ेंगे, तो आलस्य आ जाएगा और दिनचर्या बिगड़ जाएगी। सर्दी के मौसम में, जब अधिकांश लोग गर्म कपड़ों में सोते हैं, महाराज जी केवल साधारण वस्त्र पहनकर भजन और ध्यान करते। उनका यह कठोर अनुशासन उनकी साधना के प्रति उनकी अटूट लगन को दर्शाता है।

बाल्यकाल से ही ब्रह्म मुहूर्त में जागना

महाराज जी (Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi) ने बचपन में ही ब्रह्म मुहूर्त में जागने की आदत विकसित कर ली थी। वे 2 बजे रात्रि में उठकर भगवान का स्मरण करते। उनके गुरुजी ने उन्हें यह आदत डाली कि जब किसान हल जोतने के लिए सुबह जल्दी उठ सकते हैं, तो एक साधक क्यों नहीं।

उनके गुरुजी का कहना था, “जो भगवत प्राप्ति का लक्ष्य रखता है, उसे आलस्य से दूर रहना चाहिए।” इस विचार ने प्रेमानंद जी के जीवन को गहराई से प्रभावित किया और उन्होंने इसे अपने जीवन का अंग बना लिया।

जीवन में माया और मनोरंजन से दूरी

प्रेमानंद जी के बचपन (Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi) से ही माया और संसारिक आकर्षण से कोई संबंध नहीं था। उन्होंने कभी खेल-कूद में रुचि नहीं दिखाई और न ही उन्होंने दोस्त बनाने की आवश्यकता महसूस की। उनके मन में केवल एक ही लगन थी—भगवान की प्राप्ति।

उनका कहना था कि “संसार और मनोरंजन में रुचि लेना, समय और साधना को व्यर्थ करना है।” उन्होंने कभी टीवी नहीं देखा और न ही झूठी फिल्मों या नाटकों में रुचि दिखाई। उनके अनुसार, यह संसार ही झूठा है, तो उसमें झूठा मनोरंजन देखना व्यर्थ है।

वृंदावन और गंगा किनारे का जीवन

प्रेमानंद जी (Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi) ने 13 वर्ष की आयु में वृंदावन में अपना जीवन बिताने का निर्णय लिया। वहां उन्होंने गंगा किनारे तपस्या की और जीवन के सभी भौतिक सुखों को त्याग दिया। 13 से 35 वर्ष की आयु तक उन्होंने केवल साधना और भजन पर ध्यान केंद्रित किया।

उनके भोजन का कोई निश्चित साधन नहीं था। वे गंगा के किनारे जो भी उपलब्ध होता, उसी से संतोष करते। कभी-कभी उन्हें सात दिनों तक भोजन नहीं मिलता, लेकिन उन्होंने कभी अपनी साधना नहीं छोड़ी। उनके जीवन का लक्ष्य केवल ईश्वर प्राप्ति था, और इसके लिए वे हर परिस्थिति को स्वीकार करते।

आत्मसंयम और नियम के प्रति दृढ़ता

प्रेमानंद जी (Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi) का जीवन आत्मसंयम और नियमों के पालन का अद्भुत उदाहरण है। उन्होंने कभी अपने नियमों से समझौता नहीं किया। चाहे उनकी सेहत खराब हो, बुखार हो, या किडनी की समस्या हो, वे हमेशा अपने नियमों का पालन करते।

उनका कहना था, “नियम ही प्रेम को प्राप्त कराने का माध्यम है। यदि नियम नहीं है, तो प्रेम प्राप्त नहीं हो सकता।” उन्होंने अपने जीवन में कभी अलार्म का सहारा नहीं लिया। उनके मन का अनुशासन ऐसा था कि वे अपने निर्धारित समय पर स्वतः जाग जाते।

संतान और सामाजिक बंधनों से परे

प्रेमानंद जी का जीवन (Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi) एकांत और भगवत चिंतन का था। उन्होंने कभी मित्रता या रिश्तों में समय व्यर्थ नहीं किया। उनका मानना था कि भगवान की कृपा से उन्हें यह समझ प्राप्त हुई है कि जीवन का असली उद्देश्य केवल भगवान की प्राप्ति है।

साधना और तप का प्रभाव

उनके जीवन (Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi) का हर क्षण साधना और तप से जुड़ा हुआ था। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, उन्होंने कभी अपने लक्ष्य से ध्यान नहीं हटाया। उन्होंने गंगा किनारे तपस्या करते हुए कड़ी सर्दी, बारिश, और गर्मी को सहन किया।

उनका कहना था, “भगवान की प्राप्ति के लिए कष्टों की परवाह नहीं करनी चाहिए। कष्ट वही सह सकता है, जिसका लक्ष्य दृढ़ होता है।”

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प्रेमानंद जी का संदेश

प्रेमानंद जी महाराज का बचपन और उनका जीवन (Premanand Ji Maharaj Life Story in Hindi) यह सिखाता है कि ईश्वर प्राप्ति का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन दृढ़ संकल्प और आत्मनियंत्रण के साथ सब कुछ संभव है। उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए, कोई भी साधक यह समझ सकता है कि भक्ति और तपस्या में अनुशासन और समर्पण का क्या महत्व है।

उनकी साधना और तपस्या आज भी उनके अनुयायियों को प्रेरित करती है। उनका जीवन एक आदर्श है जो यह दिखाता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित है, तो वह हर कठिनाई को पार कर सकता है और ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।