प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन : जब कण कण में भगवान हैं तो हम मंदिर क्यों जाएँ? यह रहा जवाब

प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन : मंदिर क्यों जाएँ?

प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन

हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन में, एक प्रश्न जो अक्सर उठता है, वह है भगवान का अस्तित्व—वह कहाँ हैं, और हमें उनकी उपासना कैसे करनी चाहिए। यह प्रश्न उतना ही पुराना है जितना कि मानव सभ्यता का इतिहास। इस संदर्भ में प्रेमानंद जी महाराज का यह उत्तर हमारे लिए एक गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन : भगवान कण-कण में हैं, तो फिर मंदिर क्यों जाएँ?

प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन में पूछा गया, “यदि भगवान कण-कण में विद्यमान हैं, तो हम मंदिरों और गुरुद्वारों में उन्हें क्यों ढूंढ रहे हैं?” यह प्रश्न न केवल धार्मिक दृष्टिकोण को चुनौती देता है, बल्कि हमारे विश्वास और उपासना की दिशा पर भी प्रकाश डालता है। महाराज जी ने इस प्रश्न का उत्तर बड़े ही सटीक और सरल तरीके से दिया। 

उनका कहना है कि यदि आपको भगवान का अनुभव कण-कण में हो रहा है, तो आपको मंदिर में भी उनकी उपस्थिति का अनुभव क्यों नहीं हो रहा? इसका अर्थ यह है कि हमारी बुद्धि अभी परिपक्व नहीं हुई है। हम अपनी आध्यात्मिक यात्रा में केवल एक ही पक्ष को देख रहे हैं और दूसरे पक्ष को नकार रहे हैं। यदि हम मानते हैं कि भगवान कण-कण में हैं, तो वही भगवान मंदिर में भी हैं, और मूर्तियों में भी। 

मान्यताओं का महत्व

प्रेमानंद जी महाराज पूछते हैं की क्या आप वास्तव में कण कण में भगवान को अभी अनुभव कर सकतें है? नहीं कर सकते इसीलिए मान्यताओं का सहारा लिया जाता है जिसकी सह्यता से आप उस स्तर पर पहुँच सकें | जैसे किसी गणित के प्रश्न को हल करने के लिए हम ‘मान लो’ का सहारा लेते हैं, उसी प्रकार आध्यात्मिक जीवन में भी हम मान्यताओं के आधार पर चलते हैं। यदि किसी ने मंदिर को भगवान का स्थान मान लिया है, तो उसमें कोई गलत बात नहीं है। जब आप कण-कण में भगवान को अनुभव करने लगेंगे तो आप उसे मंदिर की मूर्ति में भी करने लगेंगे क्योंकि वो उन्हीं कणों से बनी है |

निंदा और स्तुति का अंत

प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन में इस बात पर जोर दिया कि जब हमारा ज्ञान पूर्ण हो जाता है, तब विरोध और समर्थन का कोई स्थान नहीं रह जाता। यदि हम किसी व्यक्ति को मूर्ति की पूजा करते हुए देखते हैं, तो हमें यह मान लेना चाहिए कि वह भी उसी ब्रह्म की पूजा कर रहा है, जिसे हम कण-कण में मानते हैं। 

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प्रेमानंद जी का यह दृष्टिकोण कि “वो कुछ नहीं हैं और वही सब कुछ हैं,” इस बात को स्पष्ट करता है कि भगवान का स्वरूप केवल साकार या निराकार में सीमित नहीं है। वह सर्वव्यापी हैं और हर रूप में, हर स्थान में विद्यमान हैं। इस प्रकार, किसी की निंदा करना या किसी की पूजा की आलोचना करना हमारे आध्यात्मिक ज्ञान की कमी को दर्शाता है

गुरु का महत्व

प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन में इस बात पर भी जोर दिया कि गुरु का महत्व कितना बड़ा है। चाहे आप साकार उपासक हों या निराकार, बिना गुरु की कृपा के ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है। गुरु ही वह माध्यम हैं जो हमें साकार से निराकार की ओर, और निराकार से साकार की ओर ले जाते हैं। 

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गुरु की उपासना भी एक प्रकार की साकार उपासना ही है। जब हम गुरु का सम्मान करते हैं, उन्हें प्रणाम करते हैं, उनकी आरती करते हैं, तो हम साकार रूप में उनकी पूजा कर रहे होते हैं। यही साकार उपासना हमें निराकार ब्रह्म की ओर ले जाती है। 

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निष्कर्ष

प्रेमानंद जी महाराज के प्रवचन से यह स्पष्ट होता है कि भगवान के स्वरूप को लेकर जो भी भेदभाव हम करते हैं, वह केवल हमारी अज्ञानता का परिणाम है। जब हमारा ज्ञान पूर्ण हो जाता है, तो हम समझते हैं कि भगवान हर जगह हैं—कण-कण में, मंदिर में, मूर्ति में, और हर उस स्थान पर जहाँ हम उनकी उपस्थिति को अनुभव करते हैं।

इसलिए, हमें अपनी उपासना को किसी एक स्थान या रूप तक सीमित नहीं करना चाहिए। भगवान सर्वत्र हैं, और उनकी उपासना कहीं भी, किसी भी रूप में की जा सकती है। यही सच्चा ज्ञान है, और यही हमारी आध्यात्मिक यात्रा का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए और किसी अन्य की आलोचना या विरोध में अपना समय और ऊर्जा व्यर्थ करने से बचना चाहिए |

|| राधे राधे ||

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