Meet Premanand Ji Maharaj : प्रेमानंद जी महाराज से मिलने का मेरा व्यक्तिगत अनुभव
Meet Premanand Ji Maharaj : 15 नवंबर 2024, देव दीपावली (कार्तिक पूर्णिमा) के दिन अपने माता पिता के साथ, बृज यात्रा के लिए जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह योजना हमने एक दिन पहले ही बनाई थी, इसलिए काफी प्रयत्न के बाद भी किसी होटल या धर्मशाला में ऑनलाइन रूम बुक (Online Hotel Booking in Vrindavan) नहीं हो पाया।
तीन दिन के सरकारी अवकाश (गुरुनानक जयंती जो शुक्रवार को थी, शनिवार और रविवार अवकाश) की वजह से ज्यादातर होटल और धर्मशाला के रूम रिजर्व हो चुके थे और प्रत्येक स्थल पर आम दिनों से अधिक भक्तों की भीड़ थी।
इस परिस्थिति में एक भजन की पंक्ति याद आई ” जहां ले चलोगे वहीं मैं चलूंगा, जहां नाथ रख दोगे वहीं में रहूंगा” यह याद करके और सब ईश्वर पर छोड़ कर हम हमारी बृज यात्रा के लिए निकल गए।
प्रथम दिन | 15 नवंबर : सर्वप्रथम , मार्ग में हम गोवर्धन जी के रुके वहां माता पिता ने गिरिराज जी के दीप दान किया और कुसुम सरोवर के दर्शन करके हम आगे वृंदावन की ओर बढ़ गए।
अब हमारा पहला कार्य था, रुकने के लिए किसी रूम की व्यवस्था करना। हमने कई जगह कोशिश की परन्तु हर जगह रूम बुक मिले।
ऐसे में एक “बृजरज” नाम से रिसोर्ट दिखा जो कि नया ही बना था। वहां लिखा था कि यहां शादी और पार्टी कार्यक्रम के लिए रूम बुक किए जाते हैं। यहां कोई रूम, रुकने के लिए मिल सकता है इसकी मुझे बिल्कुल भी आशा नहीं थी परन्तु फिर भी पिता जी वहां पूछने के लिए चले गए। सौभाग्य से वहां ठहरने के लिए हमें रूम मिल गया। भगवान की कृपा से रुकने के लिए यह एक अच्छी जगह सिद्ध हुई क्योंकि यहां पार्किंग की व्यवस्था तो थी ही साथ में मात्र 1 किलोमीटर के अंदर वह स्थल था जहां से प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन किए जा सकते थे। वृंदावन के अन्य प्रमुख स्थल भी 3 किलोमीटर के अंदर ही थे।
माता जी की इच्छा थी कि आज रात्रि को प्रेमानंद जी (Meet Premanand Ji Maharaj) के दर्शन के लिए अवश्य जाएंगे। हम वृंदावन में शाम के लगभग 5:30 बजे के आसपास पहुंचे थे। समय का सदुपयोग करने के लिए, पिताजी ने कहा पहले हम संतों के आश्रम जैसे नीम करौली बाबा आश्रम और देवरहा बाबा के आश्रम जाकर संतों का आशीर्वाद लेंगे। पिताजी प्रेमानन्द जी महाराज के दर्शन करने के लिए सहमत नहीं थे क्योंकी उन्हें यह ढोंग और आडंबर लग रहा था। वे नीम करौली बाबा और देवराह बाबा को तो संत मानते थे परंतु प्रेमानन्द जी को वे एक साधारण मनुष्य मानते थे। इसलिए हमने पहले नीम करौली बाबा आश्रम और देवरहा बाबा के आश्रम जाने की ही योजना रखी।
परन्तु स्थानीय निवासियों ने बताया नीम करौली बाबा और देवरहा बाबा के स्थल यहां से दूर हैं इसलिए उत्तम यह रहेगा कि आप पहले बांके बिहारी जी और अन्य मंदिरों के दर्शन कर लें।
कार्तिक पूर्णिमा की वजह से भक्तों की भारी संख्या वृंदावन की परिक्रमा कर रही थी तो हम भी पैदल ही बांके बिहारी जी की तरफ बढ़ गए।
हमने बांके बिहारी जी के मंदिर जाने की काफी कोशिश की परंतु हमें आस पास के अन्य मंदिरों के दर्शन तो हो गए लेकिन हम बांके बिहारी जी मंदिर नहीं पहुंच पाए।
अब लगभग शाम के 8:30 बज चुके थे जो कि दर्शन बंद होने का समय होता है। अब हम इस्कॉन में प्रसाद ग्रहण करके, हमारे रूम की और चले गए। शायद बांके बिहारी जी भी यही चाहते थे कि हम पहले संतों के समाधि स्थल पर जाकर आशीर्वाद ले और फिर उनके दर्शन करें।
लंबी यात्रा और पद यात्रा की वजह से शरीर थक चुका था परन्तु अभी भी हमारी योजना यही थी कि आज रात्रि 2 बजे प्रेमानंद जी महाराज (Meet Premanand Ji Maharaj) के दर्शन करेंगे। मैंने इस योजना के साथ मोबाइल में अलार्म भर दिया और हम सभी सो गए।
दूसरा दिन | 16 नवंबर : रात्रि में अलार्म बजा या नहीं मुझे नहीं पता, हमारी नींद सीधे सुबह 6:30 बजे खुली। हमारी रात्रि में बाबा (Meet Premanand Ji Maharaj) के दर्शन की इच्छा धरी की धरी रह गई।
हमने कहा जैसी ईश्वर की इच्छा, अब सुबह 7:30 बजे ही हम नीम करौली बाबा के समाधि स्थल दर्शन करने के लिए चले गए। स्थल पर बहुत ही अद्भुत और शांत वातावरण था। मंदिर में प्रवेश करते ही बाबा के समय की हनुमान जी की मूर्ति के दर्शन किए, भक्त हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे थे, हमने भी वहां बैठ कर हनुमान चालीसा का पाठ किया।
जीवन में प्रथम बार ऐसा हुआ जब किसी मंदिर में बैठ कर मन इतना अधिक भावुक हो गया हो। यहां आने की बहुत लंबे समय से इच्छा थी जो अब पूरी हो गई थी। समाधि स्थल पर संपूर्ण दर्शन करने के बाद हम ब्रह्मऋषि देवरहा बाबा की समाधि स्थल की तरफ बढ़ गए। एक नाव की सहायता से यमुना नदी पार करके करके हम बाबा की समाधि स्थल पहुंचे। यहां का वातावरण भी मन को अत्यंत शांति देने वाला था। पिता जी की काफी इच्छा थी, बाबा की समाधि के दर्शन करने की जो भलीभांति प्रकार से पूर्ण हुई।
इसके बाद हमने निधिवन और फिर शाम को आखिरकार प्रभु इच्छा से बांके बिहारी जी के बहुत ही सुंदर दर्शन किए। बिहारी जी की छवि देख कर मन प्रसन्न हो गया। इसके बाद इस्कॉन मंदिर और प्रेम मंदिर के दर्शन हुए।
इस संध्या के बाद अब जो रात्रि आने वाली थी वो हमारी इस यात्रा की आखिरी रात्रि थी क्योंकि सुबह हमें बरसाना और नंदगांव के लिए निकलना था। आज कैसे भी करके प्रेमानंद जी के दर्शन (Meet Premanand Ji Maharaj) करने थे, अब मैं इसके लिए मोबाइल के अलार्म पर निर्भर नहीं हो सकता था इसलिए माता पिता के सोने के बाद भी में जगा रहा।
आखरी दिन | 17 नवंबर : 01:15 AM पर मैंने माता पिता दोनों को जगाया और हम बाबा के दर्शन करने के लिए निकल गए। पिताजी भी बेमन से जाने के लिए राजी हो गए। सभी भक्त रात्रि में लंबी लाइन लगा कर बाबा के दर्शन (Meet Premanand Ji Maharaj) के लिए खड़े थे। इसी लाइन में हम भी खड़े हो गए। कई भक्त सड़क पर फूलों से रंगोली बनाने लगे तो कई भक्त राधा राधा का जाप करने लगे। किसी ने बताया कि बाबा “श्री कृष्ण शरणम” नामक जगह से 1 बजे के आस पास निकलते हैं और लगभग 2:15 के आस पास जहां हम खड़े थे वहां पर आते हैं। यहाँ से आगे फिर बाबा सत्संग और ध्यान के लिए “श्री हित राधा केली कुंज” आश्रम जाते हैं।
अचानक पिताजी को कुछ काम याद आया और वो उस लाइन हटकर कहीं चले गए। लेकिन मैं और मेरी माँ वही खड़े होकर उस क्षण का इंतजार करने लगे, जब बाबा के हमें दर्शन होंगे। बाबा के आने से पहले उनके अनुयायी मार्ग की व्यवस्था सही करने लगे, भक्तों की भीड़ को व्यवस्थित करने लगे, जिससे कि बाबा के दर्शन सभी को प्राप्त हो सकें।
कुछ समय इंतजार करने के बाद चारों तरफ जयकारे लगने लगे, जिससे पता लग गया कि, अब बस वह क्षण आने वाला है जिसका इंतजार लंबे समय से था। एक पुलिस की गाड़ी के बाद बाबा की मंडली आती नजर आई। बाबा धीरे धीरे चलते हुए आते नजर आए। मुख पर हल्की सी मुस्कान लिए, बाबा सभी को आशीर्वाद देते हुए तो कभी हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए, जहां हम खड़े थे वहां बढ़ रहे थे।
यह सब देख मैं और अन्य सभी भक्त राधा राधा करके नाचने लगे। बाबा जैसे ही हमारे समीप आए उन्होंने दोनों हाथों से आशीर्वाद दिया और जैसे ही मेरी नजर बाबा की नजर से मिली में तुरंत अपनी जगह पर बाबा के चरणों में झुक गया। मेरी माता का मन दर्शन पाकर भावुक हो गया और उनकी आँखें आनंद के आंसुओं से भर गईं। प्रेमानन्द जी के दर्शन पा कर माँ और मेरा मन पूर्णतः आनंद से भर गया।
इसके बाद जब मैं पिताजी से मिला तो पता लगा वो हम से भी बहुत आगे दर्शन के लिए पंक्ति में खड़े हो गए थे और सिर्फ हमारा ही नहीं उनका भी मन दर्शन पाकर आनंद से भर गया था। दर्शन पा कर उन्हें कुछ ऐसा अनुभव हुआ की उनके विचार प्रेमानन्द जी को लेकर पूरी तरह से बदल गए। इसके बाद उन्होंने कहा की “वाकई में प्रेमानद जी महाराज भी उसी स्तर के संत हैं, जिस स्तर के नीम करौली बाबा और देवराह बाबा हैं”।
इस तरह, ईश्वर की कृपा से हम सभी को बाबा के बहुत ही सुंदर और दिव्य दर्शन (Meet Premanand Ji Maharaj) एवं आश्रीवाद प्राप्त हो गया। बाबा के चेहरे पर वही तेज और शांति थी जिसके बारे में हमने सिर्फ पहले सुना था। बाबा की यह छवि सदैव के लिए आंखों में बस गई। बाबा के जाने के बाद उनके चरण जिन फूलों की रंगोली से हो कर गुजरे थे उसके कुछ पुष्प मैंने बाबा के आशीर्वाद के तौर पर रख लिए।
इसके बाद हमने नंदगांव और बरसाना होते हुए हम घर आ गए और ईश्वर की कृपा से हमारी बृज यात्रा पूर्ण रूप से सफल हो गई।
|| राधे राधे ||