जाने भारत के किस किस हिस्से में कैसे कैसे मनाई जाती है मकर संक्रांति | Makar Sankranti Celebrated in Different States
Makar Sankranti Celebrated in Different States : भारत का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक खजाना सदियों से अपनी विविधता और एकता के लिए जाना जाता है। इस विविधता का सुंदर उदाहरण है मकर संक्रांति। जब पूरे भारत में एक ही समय पर अलग-अलग नामों से उत्सव मनाए जाते हैं, तो यह सवाल उठता है—क्या ये अलग-अलग त्योहार हैं, या सिर्फ एक त्योहार के विभिन्न स्वरूप?
इस ब्लॉग में, हम मकर संक्रांति (Makar Sankranti) और इसके विभिन्न राज्यों में मनाए जाने वाले रूपों को समझने की कोशिश करेंगे। साथ ही, इसके पीछे की परंपराओं, पौराणिक कथाओं और वैज्ञानिक महत्व को भी जानेंगे।
मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व
मकर संक्रांति (Makar Sankranti Celebrated in Different States) का सीधा संबंध सूर्य की गति और खगोलीय परिवर्तनों से है। संस्कृत में ‘संक्रांति’ का अर्थ होता है ‘गति’। यह पर्व उस समय को दर्शाता है जब सूर्य मकर राशि (कर्क से मकर) में प्रवेश करता है।
यह घटना न केवल खगोलीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सर्दी के मौसम के अंत और गर्मी के मौसम की शुरुआत का संकेत देती है। इसे ‘उत्तरायण’ कहा जाता है, जब सूर्य दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ता है।
पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ
1. महाभारत की कथा:
पौराणिक मान्यता के अनुसार, भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागने के लिए उत्तरायण का इंतजार किया था। ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति (Makar Sankranti) के दिन मृत्यु को प्राप्त होने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
2. संक्रांति देवी की कथा:
एक और मान्यता के अनुसार, संक्रांति (Makar Sankranti Celebrated in Different States) को एक देवी के रूप में माना गया है, जिन्होंने ‘संकरासुर’ नामक राक्षस का वध किया था।
विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति का उत्सव
उत्तर भारत: लोहड़ी का जोश और उल्लास
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में मकर संक्रांति को लोहड़ी (Lohri) के रूप में मनाया जाता है।
• प्रथाएं:
लोहड़ी की रात को अलाव जलाया जाता है। तिल, रेवड़ी, मूंगफली, और गुड़ की आहुति देकर परिक्रमा की जाती है। इसके बाद इन्हें बांटकर खुशियां मनाई जाती हैं।
• कथा:
यह पर्व दुल्ला भट्टी के सम्मान में भी मनाया जाता है, जिन्होंने गरीबों की मदद की थी।
पश्चिम भारत: पतंगों की उड़ान
महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान में यह पर्व (Makar Sankranti) पतंगबाजी और तिल-गुड़ के लड्डुओं के साथ मनाया जाता है।
• पतंगबाजी:
पतंग उड़ाना सूर्य के करीब समय बिताने का प्रतीक है।
• तिल-गुड़:
“तिल गुड़ घ्या, गोड़ गोड़ बोला” कहावत से मीठा बोलने और सकारात्मकता फैलाने का संदेश दिया जाता है। तिल का सेवन शरीर को गर्म रखने में मदद करता है।
पूर्वी भारत: गंगा स्नान और सामूहिक उत्सव
उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में गंगा या अन्य नदियों में डुबकी लगाकर दिन (Makar Sankranti) की शुरुआत होती है।
• स्नान का महत्व:
यह नकारात्मकता और पापों को दूर करने का प्रतीक है।
• आसन:
आसाम में इसे ‘माघ बिहू‘ के रूप में मनाया जाता है। ‘मेजी’ नामक लकड़ी और बांस का अलाव जलाया जाता है और सामूहिक भोज का आयोजन किया जाता है।
दक्षिण भारत: पोंगल का स्वाद और परंपरा
तमिलनाडु में मकर संक्रांति (Makar Sankranti Celebrated in Different States) को पोंगल (Pongal) के रूप में मनाया जाता है। यह चार दिनों तक चलने वाला उत्सव है।
• भोगी पर्व:
पुराने और बेकार वस्त्रों को अलाव में जलाकर शुरुआत होती है।
• पोंगल:
दूध और चावल को मिट्टी के बर्तन में उबालकर सूर्य देव को अर्पित किया जाता है।
• कोलम:
घर के प्रवेश द्वार पर चावल के आटे से बनाए गए सुंदर अलंकरण बनाए जाते हैं।
वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व
1. स्वास्थ्य लाभ:
सर्दी के बाद की धूप शरीर के लिए लाभदायक होती है। तिल और गुड़ जैसी गर्म तासीर वाली चीजों का सेवन शरीर को मौसम के बदलाव के लिए तैयार करता है।
2. सामाजिक संदेश:
यह पर्व (Makar Sankranti) परस्पर प्रेम, भाईचारे और कृतज्ञता का संदेश देता है। अलग-अलग नाम और परंपराएं होने के बावजूद, सभी राज्यों में इसका मूल संदेश एक ही है—प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना।
3. वैश्विक परिप्रेक्ष्य:
भारत के अलावा नेपाल, थाईलैंड और कंबोडिया में भी यह पर्व अपने-अपने तरीकों से मनाया जाता है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति (Makar Sankranti Celebrated in Different States) केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का उत्सव है। यह न केवल खगोलीय घटनाओं का वैज्ञानिक प्रमाण है, बल्कि हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य में जीने का संदेश भी देता है।
विभिन्न राज्यों में इसके अलग-अलग रूप इस बात का प्रमाण हैं कि भारत की विविधता में एकता कितनी गहरी और मजबूत है।
तो, इस मकर संक्रांति (Makar Sankranti) पर न केवल उत्सव मनाएं, बल्कि इसके पीछे छिपे ज्ञान, परंपराओं और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करें।