दीपावली पर क्यों करते हैं लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा | 99% हिन्दू नहीं जानते सही जवाब | Laxmi Puja on Diwali

दीपावली पर क्यों करते हैं लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा | 99% हिन्दू नहीं जानते सही जवाब | Laxmi Puja on Diwali

दीपावली पर क्यों करते हैं लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा | 99% हिन्दू नहीं जानते सही जवाब | Laxmi Puja on Diwali

Laxmi Puja on Diwali : दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा का जो विधान है, उसका गहरा पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व है। ये परंपरा केवल धन की देवी लक्ष्मी को ही नहीं, बल्कि संपन्नता, उन्नति और सफलता के प्रतीक के रूप में गणेश जी को भी शामिल करती है।

लक्ष्मी पूजन का पौराणिक आधार

दीपावली को अमावस्या की रात मनाई जाती है, जब कार्तिक मास का अंधेरा चरम पर होता है। पद्म पुराण के अनुसार, कार्तिक मास की इस अमावस्या पर देवी लक्ष्मी की पूजा (Laxmi Puja on Diwali) का विधान बताया गया है। पद्म पुराण एक प्राचीन ग्रंथ है, जो लगभग 2000 वर्षों से हमारे धार्मिक जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है।

इसके अनुसार, देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु शयन को चले जाते हैं और अगले चार महीने तक योग निद्रा में रहते हैं। देवोत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु जागृत अवस्था में आते हैं। इससे पहले, अमावस्या पर माता लक्ष्मी की आराधना करके हम अपनी पूजा अर्चना को पूर्ण करते हैं ताकि विष्णु जागरण के पूर्व हमारी समृद्धि की देवी का आशीर्वाद मिल सके।

लक्ष्मी शब्द का सही अर्थ

लक्ष्मी को केवल धन की देवी नहीं माना जाता है। संस्कृत भाषा में लक्ष्मी शब्द ‘लक्ष’ से निकला है जिसका अर्थ होता है – देखना, समझना, और लक्ष्य को प्राप्त करना। यह लक्ष्मी की परिभाषा को विस्तारित करता है, जहाँ लक्ष्मी का अर्थ केवल धन से जुड़ा नहीं होता, बल्कि इसे हर उस शक्ति के रूप में देखा गया है जो व्यक्ति को लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग पर प्रेरित करती है। प्रश्न उपनिषद और ऋग्वेद में भी लक्ष्मी का वर्णन ‘श्री’ के रूप में किया गया है, जो सुख, समृद्धि और मानसिक शांति का प्रतीक है। यजुर्वेद में भी श्री का उल्लेख है, जो प्रत्येक मानव को इच्छित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आशीर्वाद देती है।

लक्ष्मी पूजन (Laxmi Puja on Diwali) का तात्पर्य केवल धनलाभ से नहीं, बल्कि सुख-समृद्धि, आत्मिक संतोष और समाज में सन्मान प्राप्ति से भी है। इसीलिए ऋग्वेद के 10वें मंडल में लक्ष्मी को केवल धन नहीं, बल्कि कल्याणकारी शक्ति के रूप में सम्मानित किया गया है। यह शक्ति विद्या, स्वास्थ्य, प्रेम, तथा जीवन के विभिन्न अन्य सुखों को प्राप्त करने का माध्यम भी बनती है।

लक्ष्मी और अलक्ष्मी का महत्व

प्राचीन समय में, लक्ष्मी को ‘लक्षण’ से जोड़कर देखा गया था। अच्छे कार्यों द्वारा अर्जित धन और समृद्धि को ‘लक्ष्मी’ कहा जाता था जबकि बुरे कार्यों से प्राप्त संपत्ति को ‘अलक्ष्मी’ कहा जाता था। अथर्ववेद के अनुसार, मनुष्य में जन्म के समय कुछ अच्छे और बुरे लक्षण होते हैं, जिन्हें हम लक्ष्मी और अलक्ष्मी के रूप में जानते हैं। व्यक्ति का धर्म यह है कि वह दुर्लक्ष यानी बुरे लक्षणों को छोड़कर अच्छे लक्षणों को अपनाए। इस प्रकार लक्ष्मी का संबंध केवल धन से नहीं, बल्कि जीवन के अच्छे गुणों और सकारात्मक लक्षणों से भी है।

लक्ष्मी और श्री का सामंजस्य

लक्ष्मी केवल धन के अर्थ में सीमित नहीं है। पुराणों में लक्ष्मी के आठ रूप बताए गए हैं, जिनमें धन लक्ष्मी, विजय लक्ष्मी, विद्या लक्ष्मी, धैर्य लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी आदि शामिल हैं। हर रूप का अर्थ जीवन में विभिन्न प्रकार की समृद्धि से है। श्री शब्द का अर्थ भी यही है, जो सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक है। प्रश्न उपनिषद में ईश्वर से श्री और विद्या की प्राप्ति की कामना की जाती है, जो आत्मिक और भौतिक संतुष्टि दोनों को प्राप्त करने की दिशा में व्यक्ति का पथप्रदर्शन करता है।

लक्ष्मी पूजन का ऐतिहासिक प्रमाण

समय के साथ-साथ पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में देवी लक्ष्मी की आइकोनोग्राफी या मूर्ति की छवि विकसित हुई है, जिसमें उन्हें कमल के फूल पर बैठे हुए और अपने हाथ से धन की वर्षा करते हुए दिखाया गया है। यह प्रतीकात्मक चित्रण दर्शाता है कि लक्ष्मी मात्र धन की देवी नहीं हैं, बल्कि वे हर प्रकार की समृद्धि और विकास का प्रतिनिधित्व करती हैं। समुद्र मंथन की कथा के अनुसार, जब लक्ष्मी जी का जन्म हुआ, तब वे पृथ्वी पर समृद्धि और खुशहाली लेकर आईं।

गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है?

लक्ष्मी पूजन (Laxmi Puja on Diwali) के साथ गणेश पूजन का समावेश भी विशेष महत्व रखता है। गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘बुद्धि के देवता’ के रूप में माना जाता है। जब हम लक्ष्मी की पूजा करते हैं, तो उसका उद्देश्य केवल भौतिक समृद्धि नहीं, बल्कि लक्ष्मी के समग्र रूप को प्राप्त करना होता है। इसके लिए बुद्धि, ज्ञान और सभी प्रकार की विघ्नों का नाश आवश्यक होता है। गणेश जी का पूजन समृद्धि के साथ शांति और सफलता के लिए किया जाता है ताकि हमारे लक्ष्यों के मार्ग में कोई विघ्न न आए।

पुराणों में यह उल्लेख मिलता है कि लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा (Laxmi Puja on Diwali) करने से व्यक्ति की भौतिक और आत्मिक दोनों ही आवश्यकताएँ पूर्ण होती हैं। यही कारण है कि दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश की संयुक्त पूजा का विधान है। यह पूजा हमें यह शिक्षा देती है कि जीवन में धन के साथ-साथ बुद्धि, ज्ञान और सकारात्मक सोच भी आवश्यक है।

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उपसंहार

दीपावली पर लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा (Laxmi Puja on Diwali) का उद्देश्य केवल धन अर्जन या लक्ष्मी प्राप्ति तक सीमित नहीं है। यह पर्व हमें जीवन में धन के साथ संतुलित दृष्टिकोण, बुद्धिमत्ता, और सकारात्मकता को अपनाने की प्रेरणा देता है। लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा हमें यह सिखाती है कि केवल भौतिक संपत्ति का महत्व नहीं है, बल्कि सही सोच, उचित मार्गदर्शन और सकारात्मक प्रयास से ही जीवन में वास्तविक लक्ष्यों की प्राप्ति होती है।