Govind Dev Ji History : भगवान श्री कृष्ण की 5000 वर्ष पुरानी दिव्य मूर्ति | स्वयं श्री कृष्ण के प्रपौत्र ने करवाया था निर्माण
Govind Dev Ji History : आज हम आपको ले चल रहे हैं एक ऐसे दिव्य स्थल पर जो न केवल जयपुर बल्कि सम्पूर्ण भारत में श्रीकृष्ण भक्ति का प्रमुख केंद्र है। यह स्थल है गोविंद देव जी का मंदिर। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के उस रूप को समर्पित है जिसे ब्रजनाभ, श्रीकृष्ण के प्रपौत्र ने स्वयं भगवान के स्वरूप के अनुसार 5000 वर्ष पूर्व स्थापित किया था। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य प्रतिमा को देखकर एक अलग ही ऊर्जा का अनुभव होता है, और यही कारण है कि इसे जयपुर का “दिल” कहा जाता है।
गोविंद देव जी की उत्पत्ति
मंदिर में स्थित भगवान श्रीकृष्ण की यह मूर्ति विशेष रूप से ब्रजनाभ द्वारा निर्मित की गई थी। ऐसा माना जाता है कि ब्रजनाभ ने अपने दादी से श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप का वर्णन प्राप्त कर उनकी हू-ब-हू छवि बनाने का निश्चय किया था। लेकिन इस मूर्ति का निर्माण एक बार में नहीं हो सका। पहली मूर्ति में केवल भगवान के पैर श्रीकृष्ण से मिलते थे, दूसरी मूर्ति में उनकी छाती का हिस्सा, और तीसरी मूर्ति पूर्ण रूप से श्रीकृष्ण के समान बनी। इस तीसरी प्रतिमा को गोविंद देव जी के नाम से जाना जाता है, जो जयपुर के सिटी पैलेस परिसर में स्थित है। इस प्रतिमा को “वज्राकृत” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ ब्रजनाभ द्वारा निर्मित स्वरूप से है।
ब्रजनाभ ने इस मूर्ति (Govind Dev Ji History) के साथ ही श्रीकृष्ण की अन्य दो प्रतिमाएँ भी बनाई थीं – एक मदन मोहन जी के नाम से करौली में स्थापित है और दूसरी गोपीनाथ जी के नाम से जयपुर में स्थित है। इन तीनों प्रतिमाओं की भक्तों में गहरी मान्यता है और ये वृंदावन एवं जयपुर को जोड़ती हैं।
यक्षों का शासन और मूर्तियों का छुपाया जाना
ब्रजनाभ के बाद मथुरा पर यक्ष जाति के शासकों का प्रभुत्व हो गया। उनके अत्याचारों से मथुरा की जनता और धार्मिक स्थल संकट में आ गए, जिसके चलते भगवान श्रीकृष्ण के इन तीनों विग्रहों को पुजारियों ने भूमि में छुपा दिया। समय के साथ ये प्रतिमाएँ (Govind Dev Ji History) वर्षों तक भूमि के भीतर रही और जनता इनके बारे में लगभग भूल चुकी थी।
चैतन्य महाप्रभु का प्रयास
लगभग 500 वर्ष पूर्व, चैतन्य महाप्रभु वृंदावन के पवित्र स्थलों को पुनः खोजने का कार्य कर रहे थे। भागवत पुराण और ध्यान के आधार पर वे इन स्थानों को पहचानने का प्रयास कर रहे थे। 1525 ईस्वी में, चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूप गोस्वामी के स्वप्न में भगवान गोविंद देव जी (Govind Dev Ji History) ने दर्शन देकर वृंदावन के गोमा टीले में अपनी स्थिति का संकेत दिया। रूप गोस्वामी ने भगवान की दिव्य प्रतिमा को जमीन से निकाला और साधारण कुटिया में उसकी प्राण प्रतिष्ठा की। यह भक्तों के लिए एक चमत्कारिक घटना थी, जिसने इस क्षेत्र में भक्तों की धारा को आकर्षित किया।
जयपुर में गोविंद देव जी का आगमन
जब जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह को गोविंद देव जी की मूर्ति (Govind Dev Ji History) के बारे में जानकारी मिली, तो वे दर्शन के लिए वृंदावन आए और उन्होंने भगवान के लिए 1590 में सात मंजिला मंदिर का निर्माण करवाया। हालांकि बाद में मुगलों ने इस मंदिर की चार मंजिलों को नष्ट कर दिया, परंतु मूर्ति को पुजारी शिवराम गोस्वामी ने सुरक्षित रख लिया। औरंगजेब के समय में मंदिरों के तोड़े जाने पर शिवराम गोस्वामी ने भगवान राधा गोविंद जी को बैलगाड़ी में सांगानेर के गोविंदपुरा ले गए। आमेर के राजा मानसिंह ने गोविंदपुरा को भगवान की जागीर के रूप में दे दिया।
जयपुर में गोविंद देव जी का मुख्य मंदिर
जयपुर के संस्थापक सवाई जयसिंह को भगवान ने स्वप्न में दर्शन (Govind Dev Ji History) देकर जयपुर के चंद्र महल के पास मंदिर स्थापित करने का निर्देश दिया। इस निर्देश के बाद सवाई जयसिंह ने जय निवास के पास गोविंद देव जी का विशाल मंदिर निर्माण शुरू करवाया, जो 1735 में पूरा हुआ। यह मंदिर इस प्रकार से बना है कि चंद्र महल में स्थित महाराजा के शयन कक्ष से भगवान के दर्शन किए जा सकें। मंदिर के गर्भगृह में राधा और गोविंद जी के साथ चैतन्य महाप्रभु और गौर गोविंद की प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं।
सखियों की प्रतिमाएँ और मंदिर की विशेषता
राधा रानी की सेवा के लिए मंदिर (Govind Dev Ji History) में उनकी प्रिय सखियों, विशाखा सखी और ललिता सखी की प्रतिमाएँ भी स्थापित की गईं। सवाई जयसिंह ने विशाखा सखी की प्रतिमा को राधा रानी के पास स्थापित किया, जबकि ललिता सखी की प्रतिमा का निर्माण सवाई प्रताप सिंह ने किया। मंदिर के निर्माण में लगभग पाँच वर्ष का समय लगा और इसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया, जो इसे एक विशिष्ट शाही स्वरूप देता है। गर्भगृह में सोने और चांदी से सजी हुई दीवारें हैं, और यह स्थान हरियाली से घिरे एक विशाल क्षेत्र में फैला है।
मंदिर का वास्तु और महत्व
गोविंद देव जी का मंदिर (Govind Dev Ji History) एक विशाल ग्रिड संरचना में बना है, जिससे यह एक महल की भाँति दिखता है। इसमें भगवान के दर्शन हॉल में 5000 से अधिक लोग एक साथ बैठ सकते हैं, और इसके चारों ओर अन्य लगभग 20 मंदिर भी स्थित हैं जहाँ भक्त भगवान के दर्शन करने आते हैं। जयपुर के शाही परिवार ने इस मंदिर को अपनी श्रद्धा का केंद्र माना है और इसी कारण इसे जयपुर का प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है।
यह मंदिर न केवल जयपुर बल्कि पूरे भारत में श्रीकृष्ण भक्तों के लिए एक पवित्र धरोहर है। यहाँ हर वर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं और भगवान गोविंद देव जी के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। यह मंदिर राधा-कृष्ण भक्ति की परंपरा को जीवंत बनाए रखता है और ब्रज क्षेत्र के अलावा जयपुर को भी वृंदावन के समान ही महत्ता देता है।
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समापन
मित्रों, गोविंद देव जी का यह मंदिर (Govind Dev Ji History) हमें हमारे संस्कृति की महानता और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति का महत्व दर्शाता है। यहाँ आकर मन को शांति और ऊर्जा मिलती है, जो हमें आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करती है। आशा है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी।