Does 72 hoors exist? क्या सच में होती हैं 72 हूरें, जन्नत और स्वर्ग जैसा कुछ? सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने दिया शानदार जवाब
Sadhguru on 72 Hoors : जन्नत और 72 हूरों का विषय इस्लामिक परंपरा और विश्वासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस्लामिक ग्रंथों के अनुसार, जन्नत वह स्थान है जहां धर्म के अनुसार जीवन जीने वाले लोग मरने के बाद पुरस्कृत किए जाते हैं। जन्नत में 72 हूरों का उल्लेख चार बार कुरान में मिलता है। इन्हें सुंदर, निष्कलंक और आकर्षक रूप में वर्णित किया गया है। परंतु सद्गुरु इस विचार को भौतिक जीवन की सीमाओं और मनोवैज्ञानिक प्रभाव के दृष्टिकोण से समझाते हैं।
जन्नत और हूरों की अवधारणा
सद्गुरु कहते हैं कि (Does 72 hoors exist) जो लोग अपने जीवन को दुख और कष्ट से भर लेते हैं, वे स्वर्ग (जन्नत) में आनंद और सुख की कल्पना करते हैं। जब हमारा जीवन कठिनाइयों से घिरा होता है, तो स्वर्ग जैसा स्थान, जहां सब कुछ परिपूर्ण है, एक मनोवैज्ञानिक सांत्वना प्रदान करता है। स्वर्ग की कल्पना का मुख्य उद्देश्य लोगों को आशा देना और उनके दुःख को कम करना है।
हिंदू और इस्लामिक स्वर्ग की तुलना करते हुए, सद्गुरु ने मजाकिया अंदाज में बताया कि हिंदू स्वर्ग में अच्छा खाना मिलता है, जबकि इस्लामिक स्वर्ग में 72 हूरें होती हैं। ये सभी चीजें इस आधार पर बनाई गई हैं कि लोग जीवन के बाद कुछ बेहतर प्राप्त करेंगे।
भौतिक शरीर और स्वर्ग
सद्गुरु के अनुसार (Does 72 hoors exist), इन सबकी असलियत समझने के लिए हमें यह सोचना चाहिए कि जब हम मर जाते हैं, तो हमारा भौतिक शरीर नहीं रहता। अगर शरीर नहीं है, तो फिर खाने, पीने, और हूरों का क्या महत्व? वह यह भी कहते हैं कि हिंदू परंपरा में एक अक्षय पात्र का उल्लेख मिलता है, जो हमेशा खाने से भरा रहता है। लेकिन बिना शरीर के खाने का आनंद कैसे लिया जा सकता है?
मनोवैज्ञानिक उपाय या वास्तविकता?
सद्गुरु (Does 72 hoors exist) का मानना है कि स्वर्ग और नर्क की अवधारणाएं मानव मन को शांत करने और प्रोत्साहित करने के लिए बनाई गई थीं। जब कोई व्यक्ति अत्यधिक दुख में होता है, तो यह विचार कि स्वर्ग में सब कुछ बेहतर होगा, उसे सांत्वना देता है। लेकिन इसे एक मनोवैज्ञानिक उपाय के बजाय वास्तविकता मान लेना गलत हो सकता है।
सद्गुरु (Does 72 hoors exist) ने बताया कि जैसे-जैसे मानव मस्तिष्क विकसित होता है, सवाल उठने लगते हैं। लोग यह समझने लगते हैं कि ये अवधारणाएं प्रतीकात्मक हैं। यही कारण है कि आधुनिक समय में स्वर्ग और नर्क पर विश्वास करने वाले लोगों की संख्या घट रही है।
स्वर्ग की कल्पना और आधुनिक युग
सद्गुरु (Does 72 hoors exist) कहते हैं कि आज की पीढ़ी स्वर्ग की कल्पना पर कम विश्वास करती है क्योंकि लोग तर्क और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने लगे हैं। अतीत में, स्वर्ग और नर्क का विचार अधिक प्रभावी था क्योंकि लोग इसके माध्यम से अपने जीवन को जीने का उद्देश्य खोजते थे।
अंत में
जन्नत और 72 हूरों (Does 72 hoors exist) की अवधारणा को धार्मिक परंपराओं और विश्वासों से जोड़कर देखा जा सकता है। परंतु सद्गुरु (Sadhguru on 72 Hoors) इसे भौतिक शरीर, तर्क, और मनोवैज्ञानिक उपाय के संदर्भ में समझाते हैं। उनके विचारों के अनुसार, यह विश्वास मानव मन को संभालने और संतुलित करने का एक तरीका है, लेकिन इसे वास्तविकता मान लेना हमारी सोच को सीमित कर सकता है।
स्वर्ग या जन्नत की वास्तविकता से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम अपने जीवन को कैसे जीते हैं और अपने वर्तमान में आनंद कैसे पाते हैं।