Bodhidharma History in Hindi : चीन से नहीं, भारत से ऐसे होई कुंग फू की शुरुआत : बोधिधर्म की कहानी

bodhidharma history in hindi by Sadhguru

Bodhidharma History in Hindi : कुंग फू का भारत से चीन तक का सफर: बोधिधर्म की कहानी सद्गुरु द्वारा

बोधिधर्म (Bodhidharma History in Hindi), जिन्हें कुंग फू और शाओलिन मार्शल आर्ट्स के जनक के रूप में जाना जाता है, का जीवन अद्वितीय और प्रेरणादायक है। सद्गुरु द्वारा सुनाई गई उनकी यह कहानी भारत से चीन तक की एक अद्भुत यात्रा को दर्शाती है, जिसमें उन्होंने न केवल बौद्ध धर्म का प्रचार किया, बल्कि एक महान मार्शल आर्ट्स परंपरा की नींव भी रखी।

बोधिधर्म की यात्रा

सद्गुरु बताते हैं, लगभग 1500 साल पहले, भारत के पल्लव वंश के एक राजकुमार ने अपनी राजसी जीवनशैली को त्यागकर बौद्ध भिक्षु बनने का निर्णय लिया। यह राजकुमार थे बोधिधर्म (Bodhidharma History in Hindi), जिन्होंने अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए उत्तर दिशा की ओर यात्रा प्रारंभ की। उनकी यात्रा का लक्ष्य बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार था। यह यात्रा उन्हें चीन तक ले गई, जहां उन्होंने शाओलिन मंदिर में अपनी योग और ध्यान की शिक्षा को स्थापित किया।

चीन में आगमन और सम्राट से मुलाकात

सद्गुरु ने बताया की जब बोधिधर्म चीन पहुंचे, तो उनके आगमन की खबर पूरे साम्राज्य में फैल गई। चीन के सम्राट, जो बौद्ध धर्म के प्रति गहरी रुचि रखते थे, ने बोधिधर्म के स्वागत के लिए अपनी साम्राज्य की सीमा तक यात्रा की। सम्राट ने से मुलाकात की और अपनी बौद्ध धर्म के प्रति निष्ठा और समर्पण का वर्णन किया। सम्राट ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में कई मेडिटेशन हॉल्स और बगीचे बनवाए हैं और बौद्ध शास्त्रों का अनुवाद करवाया है। सम्राट ने बोधिधर्म से पूछा कि क्या इन सभी कार्यों के कारण उन्हें निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त होगा?

बोधिधर्म का उत्तर

बोधिधर्म (Bodhidharma History in Hindi) ने सम्राट को गंभीरता से देखा और कहा, “तुम घोर नरक में जलोगे।” यह उत्तर सुनकर सम्राट हतप्रभ रह गए। बोधिधर्म ने समझाया कि सम्राट अपने कार्यों का हिसाब-किताब रखते हुए मोक्ष की आशा कर रहे हैं, जो कि आत्मज्ञान के मार्ग में बाधक है। बोधिधर्म ने कहा कि सच्चा मोक्ष केवल निःस्वार्थ भाव और कर्म के साथ किया गया कार्य ही प्रदान कर सकता है।

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शाओलिन मंदिर और मार्शल आर्ट्स का उदय

बोधिधर्म ने शाओलिन मंदिर के पास एक गुफा में ध्यान लगाया। वहां उन्होंने 9 वर्षों तक ध्यान किया। इस दौरान, शाओलिन के एक सेनापति, जनरल सेन, ने बोधिधर्म के शिष्य बनने की इच्छा जताई। लेकिन बोधिधर्म ने उन्हें कोई उत्तर नहीं दिया। जब सेन ने अपने समर्पण और शौर्य का प्रदर्शन करते हुए अपनी बायीं भुजा काट दी और बर्फ़ पर खून बहाया, तब बोधिधर्म ने उन्हें शिष्य रूप में स्वीकार किया।

जनरल सेन को कुंग फू की शिक्षा दी गई, जो बाद में शाओलिन मंदिर की एक महत्वपूर्ण परंपरा बन गई। शाओलिन मार्शल आर्ट्स को आज भी कलरीपयट्टु की जननी माना जाता है, जिसे भारत के अगस्त्य मुनि द्वारा विकसित किया गया था। यह मार्शल आर्ट न केवल शारीरिक रक्षा के लिए था, बल्कि यह योग का एक उल्लासमय रूप भी था, जो व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और ऊर्जा प्रणाली को संतुलित करता था।

ब्रूस ली और मणिपूरक की शक्ति

बोधिधर्म (Bodhidharma History in Hindi) की शिक्षा और शाओलिन मार्शल आर्ट्स का प्रभाव आज भी महसूस किया जा सकता है। ब्रूस ली जैसे महान मार्शल आर्टिस्ट ने भी इस परंपरा को आगे बढ़ाया। ब्रूस ली ने अपनी मणिपूरक ऊर्जा का उपयोग करके अद्भुत शक्तियों का प्रदर्शन किया। मणिपूरक ऊर्जा का सही उपयोग व्यक्ति को असीम शक्ति प्रदान कर सकता है, लेकिन इसका अनुचित उपयोग जीवन को खतरे में डाल सकता है।

निष्कर्ष

बोधिधर्म की यात्रा और उनके द्वारा स्थापित शाओलिन मार्शल आर्ट्स ने दुनिया को एक नई दिशा दी। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची शिक्षा और आत्मज्ञान केवल बाहरी कार्यों से नहीं, बल्कि आंतरिक विकास और निःस्वार्थ कर्म से प्राप्त होता है। बोधिधर्म का जीवन आज भी हमें प्रेरित करता है कि हम अपने भीतर की शक्तियों को पहचानें और उन्हें सही दिशा में उपयोग करें।

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