Bhagavad Gita 2.48 : भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, कार्य करते समय कभी भी आसक्ति भाव मन में मत रखो। बिना आसक्ति भाव के कार्य करने का अर्थ है कि, कार्य करते समय उससे किसी भी तरह के फल की आशा मत रखो | तुम…Read More
Read MoreAuthor: शिवा सारंग शर्मा
शिवा सारंग शर्मा ने जयपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और 8 वर्षों तक एक कंपनी में कार्य किया। इनका जन्म अलवर, राजस्थान में हुआ। इसके बाद इन्होंने "My Gyanalaya" ग्रुप की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति, सनातन और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना है। ज्ञानशाला वेबसाइट भी इसी समूह का हिस्सा है। वे विभिन्न रूपों में डिजिटल कंटेंट बनाते हैं और ज्ञानशाला वेबसाइट पर एक लेखक, संपादक, और एडमिन के रूप में कार्यरत हैं।
Bhagavad Gita 2.47 || अध्याय ०२ , श्लोक ४७ – भगवद गीता
Bhagavad Gita 2.47 : यह बात सही है कि तुम अपने कर्मों को करने के लिए पूरी तरह से मुक्त हो, यह तुम्हारे ऊपर है की तुम क्या कर्म करते हो क्या कर्म नहीं करते हो तुम किस कर्म को किस तरीके से एवं किस दक्षता के साथ करते हो इस पर तुम्हारा पूरा पूरा अधिकार है |
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