आपका प्रेम सच्चा है झूठा? पता करने के लिए सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने बताई 6 निशानियां
सच्चा प्रेम क्या होता है इसके विषय में जितनी परिभाषाएँ दी जा चुकी हैं, उतनी शायद किसी अन्य विषय पर नहीं दी गई हैं। इसी उलझन को सुलझाने के लिए हम सद्गुरु जग्गी वासुदेव के प्रवचन के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत लिए जा रहे हैं| इन्हें पढ़ने के बाद आप सच्चा प्रेम क्या होता है उसका जवाब सही मायनों में जान पाएंगे|
Table of Contents
Toggle1. सच्चा प्रेम : एक आंतरिक अनुभव
सद्गुरु के अनुसार, सच्चे प्रेम का वास्तविक अर्थ वह अनुभव है जो हमारे भीतर होता है। यह किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति को देखकर उत्पन्न होने वाली भावनाओं की मिठास है। यह मिठास किसी बाहरी कारक के कारण नहीं, बल्कि हमारी आंतरिक स्थिति के कारण होती है। प्रेम का अनुभव पूरी तरह से हमारे भीतर घटित होता है, न कि बाहरी दुनिया में। सद्गुरु बताते हैं कि अक्सर हम यह मान लेते हैं कि यह प्रेम किसी बाहरी कारण से उत्पन्न हुआ है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह पूरी तरह से हमारे अंदर का एक आंतरिक अनुभव है।
2. प्रेम का आंतरिक स्रोत
हम अक्सर किसी व्यक्ति या वस्तु को सच्चा प्रेम का कारण मानते हैं, लेकिन सद्गुरु का कहना है कि यह एक भ्रम है। प्रेम का स्रोत बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक है। यह हमारे भीतर की एक गहन और सुखद अवस्था है, जो किसी बाहरी चीज़ की प्रेरणा से उत्पन्न होती है। लेकिन अगर हम अपने आंतरिक स्वभाव से जुड़े रहते हैं, तो हमें किसी बाहरी प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होगी। सद्गुरु कहते हैं कि हमें अपने आप को एक “सेल्फ-स्टार्ट” मशीन की तरह बनाना चाहिए, जो स्वयं ही खुशी, प्रेम और उल्लास से भरी हो।
3. प्रेम संबंधों की स्थिरता
जब हम प्रेम संबंधों की बात करते हैं, तो अक्सर यह शरीर पर आधारित होता है। लेकिन सद्गुरु चेताते हैं कि जब प्रेम का आधार केवल शारीरिक आकर्षण होता है, तो यह संबंध स्थिर नहीं रह सकता। समय के साथ शारीरिक आकर्षण कम हो जाता है, और इसके कारण रिश्तों में खटास आ सकती है। सद्गुरु कहते हैं कि अगर हम चाहते हैं कि हमारे संबंध मधुर बने रहें, तो हमें अपने स्वभाव में खुश और संतुष्ट रहना सीखना होगा। जब हम अपने भीतर की खुशी को साझा करने के उद्देश्य से संबंध बनाते हैं, तो वे संबंध स्थिर और खुशहाल रहते हैं।
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4. प्रेम में धोखा: एक भ्रम का टूटना
प्रेम संबंधों में धोखा मिलना आजकल एक आम समस्या है। सद्गुरु बताते हैं कि जब हमें धोखा मिलता है, तो इसका मुख्य कारण यह होता है कि हमने अपने संबंध में कुछ ऐसी उम्मीदें पाली होती हैं जो पूरी नहीं हो पातीं।
5. सच्चा प्रेम: एक आत्मनिरीक्षण का अवसर
जब हमें प्रेम में धोखा मिलता है, तो इसे एक आत्मनिरीक्षण का अवसर समझना चाहिए। सद्गुरु कहते हैं कि यह समय है यह समझने का कि जीवन की सच्चाई क्या है। यह जीवन एक संपूर्ण अनुभव है, लेकिन अगर हम इसे अधूरा मानते हैं और इसे पूरा करने के लिए किसी दूसरे व्यक्ति या चीज़ पर निर्भर रहते हैं, तो हम कभी संतुष्ट नहीं हो सकते। हमें समझना होगा कि जीवन का हर अंश अपने आप में संपूर्ण है, और इसे किसी बाहरी चीज़ की आवश्यकता नहीं है।
6. सच्चा प्रेम: आध्यात्मिकता और आत्मज्ञान का माध्यम
प्रेम को सद्गुरु एक आध्यात्मिक आयाम से भी जोड़ते हैं। वह कहते हैं कि जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो हम उसे अपने भीतर समाहित करना चाहते हैं। यह भावना का एक स्तर है, लेकिन जब हम इसे जागरूकता के साथ करते हैं, तो यह योग बन जाता है। योग का अर्थ है “एक हो जाना”। सद्गुरु के अनुसार, प्रेम भी एक प्रकार का योग है, जहाँ हम अपने अस्तित्व को किसी दूसरे के साथ एकाकार करने का प्रयास करते हैं।
निष्कर्ष
सद्गुरु का प्रेम के बारे में यह दृष्टिकोण हमें यह समझने में मदद करता है कि प्रेम कोई बाहरी अनुभव नहीं है, बल्कि यह हमारे भीतर की एक आंतरिक स्थिति है। यह जीवन का एक संपूर्ण अनुभव है, जिसे हमें किसी बाहरी चीज़ से जोड़ने की आवश्यकता नहीं है। जब हम अपने भीतर की मिठास को पहचान लेते हैं, तो हमें प्रेम की आवश्यकता बाहरी रूप से नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से महसूस होती है। यह हमें एक संपूर्ण और संतुष्ट जीवन जीने में मदद करता है, जहाँ संबंध केवल खुशी को साझा करने के लिए होते हैं, न कि उससे कुछ पाने के लिए।
इस प्रकार, प्रेम का वास्तविक रूप सद्गुरु के अनुसार यह है कि हम अपने भीतर के स्वभाव को जानें, समझें और उसे विकसित करें। जब हम स्वयं प्रेम बन जाते हैं, तो यह दुनिया हमारे लिए स्वर्ग बन जाती है।
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